चरवाही
श्रृंखला 4
आत्मा और जीवन
पाठ छह – स्तुति
इब्र- 13:15- अतः हम यीशु के द्वारा स्तुतिरूपी बलिदान परमेश्वर को सर्वदा चढ़ाया करें, अर्थात् उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं।
एक संत के आत्मिक जीवन की
उच्चतम अभिव्यक्ति
स्तुति परमेश्वर की संतानों के द्वारा पूरा किया गया सर्वोच्च कार्य है। हम कह सकते हैं कि संत के आत्मिक जीवन की उच्चतम अभिव्यक्ति परमेश्वर के प्रति उसकी स्तुति है। विश्व में परमेश्वर के सिंहासन का सर्वोच्च स्थान है, फिर भी वह इस्राएल की स्तुति के सिंहासन पर विराजमान है (भज- 22:3)। परमेश्वर का नाम और यहां तक कि स्वयं परमेश्वर भी स्तुति के माध्यम से ऊँचा उठाया जाता है।
आत्मिक विजय
स्तुति पर निर्भर है
जब आप प्रार्थना करते हैं, आप अभी भी अपनी परिस्थिति के मध्य हैं। लेकिन जब आप स्तुति करते हैं, आप अपनी परिस्थिति से ऊपर चढ़ते हैं। कई बार जहां प्रार्थना असफल होती है वहाँ स्तुति काम करती है। यह बहुत ही बुनियादी सिद्धांत है। यदि आप प्रार्थना नहीं कर सकते, तो क्यों ना स्तुति करें? प्रभु ने आपकी जीत के लिए और जीत में गर्व करने के लिए एक और वस्तु आपके हाथ में रखी है।
हमें इस बुलंद आत्मा को बनाये रखना सीखना है, यह आत्मा जो सभी आक्रमण से परे है। शायद प्रार्थनाएं हमें सिंहासन तक नहीं लाती हैं, लेकिन स्तुति हमें किसी भी समय सिंहासन पर लाती हैं। प्रार्थनाएं हमें हर समय जयवंत होने में सक्षम नहीं बनाती, लेकिन स्तुति एक बार भी असफल नहीं होती है। कुछ भी स्तुति के जैसे प्रभु के हाथों को जल्दी नहीं चलाता। प्रार्थना प्रभु के हाथ को चलाने का सबसे तेज तरीका नहीं है, स्तुति सबसे तेज तरीका है।
आत्मिक विजय युद्ध पर नहीं बल्कि स्तुति पर निर्भर करती है। हमें स्तुति के द्वारा शैतान पर विजय पाना सीखना होगा। हम प्रार्थना के द्वारा ही नहीं बल्कि स्तुति के द्वारा शैतान पर विजय पाते हैं। कई लोग शैतान की क्रूरता और अपनी कमजोरियों के प्रति जागरूक हैं, और वे संघर्ष करने और प्रार्थना करने का संकल्प लेते हैं। हालांकि, हम यहां पर एक बहुत ही अद्वितीय सिद्धांत को पाते हैं आत्मिक विजय युद्ध पर नहीं बल्कि स्तुति पर निर्भर करती है।
स्तुति का अभ्यास
हमें न केवल परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए बल्कि उससे भी अधिक प्रभु की स्तुति करना सीखना चाहिए। हमें हमारी मसीही चलन के शुरूआत में स्तुति के महत्व को देखने की जरूरत है। हमें लगातार परमेश्वर की स्तुति करनी चाहिए। दाऊद ने परमेश्वर से अनुग्रह प्राप्त किया कि वह दिन में सात बार प्रभु की स्तुति करे। प्रत्येक दिन परमेश्वर की स्तुति करना एक अच्छा अभ्यास, एक बहुत अच्छी सीख, और एक बहुत अच्छा आत्मिक अभ्यास है। जब हम सुबह उठते हैं हमें परमेश्वर की स्तुति करना सीखना चाहिए। जब हम समस्याओं का सामना करते हैं, जब हम सभा में हैं, या जब हम अकेले हैं, तो हमें परमेश्वर की स्तुति करना सीखना चाहिए। दिन में हमें कम से कम सात बार परमेश्वर की स्तुति करना सीखना चाहिए। स्तुति में दाऊद को हमें हराने की अनुमति न दें। यदि हम प्रत्येक दिन परमेश्वर की स्तुति करना नहीं सीखते हैं, तो इब्रानियों 13 में कहा गया स्तुति का बलिदान रखना मुश्किल है।
प्रभु ने बालकों और
दूध पीते बच्चों के मुंह से
सामर्थ्य (स्तुति)
स्थापित की
प्रभु ने अपने बैरियों की वजह से बालकों और दूध पीते बच्चों के मुंह से सामर्थ्य (स्तुति, मत्ती- 21:16) स्थापित की, ताकि दुश्मन और बदला लेने वालों को रोक सके (भज- 8:2)। हम देख चुके हैं कि बालक और दूध पीते बच्चे मनुष्यों के बीच सबसे कम उम्र, सबसे छोटे, और सबसे कमजोर हैं, जो उनके छुटकारे में प्रभु के उच्चतम परिपूर्ण कार्य को दर्शाता है। परमेश्वर के उद्धार में, सर्वोच्च परिपूर्णता परमेश्वर की स्तुति के लिए सबसे छोटे और सबसे कमजोर को सिद्ध बनाना है।
प्रभु की स्तुति करना
मसीह के हमारे आनंद का
सर्वोच्च अनुभव होना
जब हम मसीह के छुटकारे का अत्यंत रूप से आनंद लेते हैं, तो हम प्रभु की स्तुति करने के लिए साहसी होंगे। जब हम निरुत्साहित और निराश होते हैं, हम आहें भरते और कराहते हैं। लेकिन जब हम प्रभु की स्तुति करते हैं, यह हमारा मसीह को आनंद करने का सर्वोच्च अनुभव है। मसीह का आनंद हमें इतना मजबूत बनाता है कि हम प्रभु के प्रति एक पूर्ण और सिद्ध स्तुति बोल सकते हैं। हम सभी को सीखना होगा कि स्तुति कैसे करें। यह सर्वोच्च परिपूर्ति है जिसे परमेश्वर ने मसीह द्वारा अपने छुटकारे में पूरा किया है।
कलीसिया जीवन में हम सभी को बालक और दूध पीते बच्चे बनने की आवश्यकता है। हम अपने शारीरिक उम्र में बूढ़े नही होंगे, लेकिन अपने मसीही अनुभव में हम थके और वृद्ध लोग हो सकते है। यदि हम अभी भी प्रभु में युवा हैं, तो हम सभाओं में जाते समय भी प्रभु की स्तुति करेंगे। जब हम लॉस एंजिल्स में एल्डन हॉल में थे, तो जब एक भाई सभा में जाने के लिए गाड़ी चला रहे थे, वह प्रभु की स्तुति कर रहे थे। एक पुलिसवाले ने उसे देखा, उसका पीछा किया, और उसे एक तरफ रोकने को कहा। पुलिसवाले ने भाई से पूछा कि उसके साथ क्या हुआ। तब भाई ने कहा,मैं यीशु की स्तुति कर रहा था! तब पुलिसवाले ने उसे जाने दिया। यह सभा में आने का सही तरीका है। जब हम सभा के लिए जाते हैं, तो हमें गाना चाहिए, स्तुति करनी चाहिए, और आमीन्! हालेलुयाह! आमीन्! प्रभु यीशु! आमीन्! चिल्लाना चाहिए। हम में से बहुत ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि हम बहुत बूढे हो गये हैं। बूढे होने का मतलब कमजोर होना है। हमें अधिक चिल्लाने, अधिक हालेलुयाह! कहने, अधिक आमीन! कहने, अधिक स्तुति करने की आवश्यकता है। हमारी सभा आनंदित शोर से भरी होनी चाहिए।
प्रभु अपने विरोधी की वजह से इस तरह के परिपूर्ण कार्य करता है। वह ऐसा शैतान का अपमान करने के लिए करता है। ऐसा लगता है कि परमेश्वर कहता है, शैतान, तूने इतना किया है। मैं तुझे दिखाता हूँ कि मैं कितना कर सकता हूँ। तू जो कर सकता है उसकी तुलना में मैं बहुत ही ज्यादा अधिक कर सकता हूँ। अब मेरे सभी बच्चों को देख। वे सभी बालक और दूध पीते बच्चे हैं जो मेरी स्तुति कर रहे हैं। यह स्तुति शैतान के मुंह को बंद कर देती है। हमारी स्तुति करने के द्वारा शत्रु का बोलना बंद किया जाता है। प्रभु अपने (अंदर के) विरोधियों के कारण उसके (बाहर के) दुश्मन और बदला लेने वालों को रोकने के लिए हमारे मुंह से सामर्थ स्थापित करते हैं, स्तुति को सिद्ध करते हैं।
हमारी स्तुति को
सिद्ध बनाये जाने की आवश्यकता
हम मसीही प्रभु की स्तुति कर सकते हैं, लेकिन हमारी स्तुति को सिद्ध किये जाने की जरूरत है। हमें स्वर्गो के ऊपर उनके वैभव के लिए और पृथ्वी पर उसकी महानता के लिए उसकी स्तुति करनी चाहिए। उसके बाद हम उनके देहधारण के लिए, उसके हमसे मिलने आने के लिए उनकी स्तुति कर सकते हैं। तब हमें उसके मानव जीवन, उसकी मृत्यु, उसके पुनरूत्थान, उसके आरोहण, और उसके राज्य के लिए उसकी स्तुति करने में आगे बढ़ना चाहिए। हमें इन सभी बातों के साथ उसकी स्तुति करनी चाहिए। तब हमारी स्तुति सिद्ध, पूर्ण हो जाएगी। यह स्तुति बालकों और दूध पीते बच्चों के मुंह से आती सामर्थ है। इस प्रकार की सिद्ध स्तुति प्रभु के देहधारण, मानव जीवन, मृत्यु, पुनरूत्थान, आरोहण, और इस पृथ्वी पर राज्य करने के लिए वापस आने के कार्य की अंतिम परिपूर्णता है।
जब हम प्रभु की मेज पर आते हैं, हम हर प्रकार के मानव कार्य और मानवीय बोलने को बंद करते हैं। हम अपने कार्य को बंद करते हैं। हम यहां मेज पर केवल एक कार्य करने के लिए है-उसकी स्तुति। उसकी स्तुति करने के लिए, हमें अपने कार्यो को रोकना चाहिए। इस प्रकार, प्रभु की मेज पर, हम सभी वास्तविक बालक और दूध पीते बच्चे हैं। जब हम यहां पर प्रभु की स्तुति के लिए अपने सभी कार्यों को रोक देते हैं, तो विरोधी, शत्रु, और बदला लेने वाले सभी हार जाते हैं। यह परमेश्वर के शत्रु के लिए शर्म की बात है।
हमें प्रभु की मेज की स्थिति और आत्मा में रहने की आवश्यकता है। हमारा मसीही जीवन प्रभु की मेज की तरह होना चाहिए। जब हम प्रभु की मेज के बाद घर जाते हैं, तो हमें प्रभु की स्तुति करते रहना चाहिए। हमें बहुत ज्यादा न करना सीखना होगा। दूसरी ओर, हमें आलसी नहीं होना चाहिए। मुद्दा यह है कि हमें अपने मानवीय कार्यो को रोकना चाहिए और वैसा होना चाहिए जो केवल प्रभु की स्तुति करते हैं।
THE LORD SHALL GET THE GLORY
Praise of the Lord— His Victory and Exaltation – 1095
- 1. The Lord shall get the glory
If we will sing His praise,
And angel hosts will listen
When we our voices raise;
The world around will hear us
Give glory unto God,
And Satan’s hosts will tremble
And flee our conqu’ring rod. - 2. Our mouth shut up defeats us
And wins the Devil’s smile;
So why not open battle
And chase him all the while.
By “sacrifice of praises”
And shouts of victory-
‘Twill cost us but our faces
God’s chosen fools to be! - 3. The world has never helped us
To shout our Savior’s praise,
Nor given Him the glory
Nor lent one thankful phrase;
So need we ask permission
To praise th’ ascended Lord?
Cry out! Release your spirit!
Much grace He does afford! - 4. O brothers, be not silent!
O sisters, cry aloud!
The sound shall tell God’s triumph
And blessings far abroad.
Now is the time to praise Him,
Yes now, at any cost!
O joy in your salvation,
And in His mercy boast!