चरवाही

श्रृंखला 4

आत्मा और जीवन

पाठ नौ – प्रभु के साथ एक आत्मा होना

1 कुर- 6:17-परन्तु वह जो प्रभु से संगति करता है उसके साथ एक आत्मा हो जाता है।

हम मसीह को अनुभव कर सकते हैं और मसीह को सब कुछ के रूप में ले सकते हैं क्योंकि हम उसके साथ एक आत्मा बन गए हैं। यह एक गहरा रहस्य है, फिर भी यह एक निश्चित तथ्य है जिसे हम में से प्रत्येक को, जो मसीह में विश्वास करते हैं और उसके दिव्य जीवन में उसके साथ जुड़ गए हैं, विश्वास करना, स्वीकार करना और अभ्यास करना चाहिए।

यह एहसास करना महत्वपूर्ण होना

कि हमारे पास मानव आत्मा है

जिसने पवित्र आत्मा द्वारा नया जन्म पाया है

जब मैंने इस देश में सेवकाई शुरू की, तो मैंने इस तथ्य पर जोर दिया कि हम जो मसीह में विश्वास करते हैं, हमारे पास एक नया जन्मा मानव आत्मा है, एक आत्मा जिसमें दिव्य आत्मा निवास करता है और यह कि हम प्रभु के साथ एक आत्मा हैं। कई लोगों को यह जानकर हैरानी हुई कि उनके पास आत्मा है। बेशक उन्हें पता था कि उनके पास प्राण और हृदय था, लेकिन वे मानव आत्मा को नहीं जानते थे। सभी मसीही पवित्र आत्मा के बारे में जानते हैं, लेकिन सभी यह एहसास नहीं करते कि उनके पास मानव आत्मा है। यह महत्वपूर्ण है कि वे सब जो अभी अभी कलीसिया जीवन में आए हैं, यह महसूस करें कि उनके पास एक मानव आत्मा है जो पवित्र आत्मा द्वारा नयी जन्मी है। इसके अलावा, हमारे दैनिक जीवन में हमें हमारी आत्मा का अभ्यास करना चाहिए।

परमेश्वर आत्मा होना

और मसीह

जीवन दायक आत्मा बनना

यूहन्ना 4:24 कहता है कि परमेश्वर आत्मा है। यह परमेश्वर के स्वभाव के बारे में कहता है। जहाँ तक दिव्य सार संबंधित है, परमेश्वर, पूर्ण त्रिएक परमेश्वर आत्मा है।

त्रिएक परमेश्वर तीन है-पिता, पुत्र और आत्मा। पिता स्रोत है, पुत्र पिता की अभिव्यक्ति है और आत्मा पुत्र का एहसास है (मत्ती-28:19)।

अंतिम आदम देहधारित मसीह है जो मृत्यु और पुनरुत्थान के द्वारा परमेश्वर की अंतिम अभिव्यक्ति के रूप में जीवन दायक आत्मा (1 कुर- 15:45) अर्थात जीवन का आत्मा (2 कुर-3:6, 17) बनने के लिए रूपांतरित हुआ।

हमारा केंद्र भी

आत्मा होना

1 थिस्सलुनीकियों 5:23 स्पष्ट और निश्चित रूप से प्रकट करता है कि हमारा पूर्ण व्यक्ति तीन भाग का है-आत्मा, प्राण और शरीर। शरीर हमारा सबसे बाहरी भाग है जिससे हम कार्य करते हैं और चलते हैं और जिसके द्वारा हम भौतिक चीजों से संपर्क करते हैं। प्राण वह भाग है जो व्यक्तित्व और स्वयं के रूप में हमारे शरीर और आत्मा के बीच है जिसके द्वारा हम मनोवैज्ञानिक चीजों को संपर्क करते हैं। आत्मा हमारा सबसे अंदरूनी भाग है जिसके द्वारा हम परमेश्वर को जानते हैं और आराधना करते हैं और जिसके द्वारा हम आत्मिक चीजों से संपर्क करते हैं। इसलिए, आत्मा हमारे अस्तित्व का केंद्र है और परमेश्वर के लिए महत्वपूर्ण है, यहाँ तक कि स्वर्ग और पृथ्वी से अधिक महत्वपूर्ण हैं (जक-12:1)।

एक आत्मा के रूप में

प्रभु के साथ जुड़ना

चूंकि हम प्रभु से जुड़े हुए हैं, हम प्रभु के साथ एक आत्मा हैं (1 कुर-6:17)। इसका अर्थ है कि आत्मा, जो प्रभु के आत्मा और हमारी आत्मा का मिश्रण है, हमारी और प्रभु के आत्मा दोनों है; वह हमारी आत्मा के साथ प्रभु के आत्मा का मिश्रण है और प्रभु के आत्मा के साथ हमारी आत्मा का मिश्रण है। बचाए जाने के बाद के हमारे सभी आत्मिक अनुभव, जैसे कि प्रभु के साथ हमारी सहभागिता, उसके प्रति हमारी प्रार्थना, हमारा उसके साथ जीना और उसका आज्ञापालन करना सब इस आत्मा, एक में मिश्रित हुई हमारी और प्रभु के आत्मा में है।

दैनिक जीवन में अपनी आत्मा का

अभ्यास करने की जरूरत

हमारे दैनिक जीवन में जब हम समस्याओं का सामने करते हैं, हम अपने प्राण, शरीर या आत्मा से प्रतिक्रिया कर सकते हैं। मानों एक भाई दिन के श्रम से थके हुए, काम से घर वापस आते हैं। वह अपनी पत्नी को शिकायत से भरी और उसके साथ नाखुश पाता है। भाई तीन तरीके से प्रतिक्रिया कर सकते हैं। पहला तरीका, जो विश्वव्यापी रूप से सामान्य है, प्राण में प्रतिक्रिया करना है, खासकर मन या भावना से। दूसरी संभावना है कि क्रोध से शारीरिक रूप से प्रतिक्रिया करना। तीसरा विकल्प यह है कि यह भाई अपने नयी जन्मी आत्मा का अभ्यास करने के द्वारा प्रतिक्रिया करता है। सभी विश्वासियों के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि हमारी आत्मा सर्व-सम्मिलित जीवन दायक आत्मा के द्वारा जन्मी है और अंतरनिवासित है। जो भाई अपनी पत्नी से मुश्किलों का सामना करता है, उसे अपनी आत्मा का अभ्यास करना चाहिए और उसका मार्गदर्शन करने के लिए उसे जीवन दायक आत्मा को अनुमति देनी चाहिए। तब उसे पता चलेगा की अपनी पत्नी से उसे क्या कहना है और कैसे व्यवहार करना है। इस तरह से जीने वाले भाई को यदि कोई भी देखता है तो वे महसूस करेंगे कि वह साधारण पतियों से अलग है। अपने शरीर का अभ्यास करके शारीरिक रूप से प्रतिक्रिया करने के बजाय या अपने प्राण का अभ्यास करने के बजाय वह अपनी आत्मा का अभ्यास करता है। हम सभी को हमारे दैनिक जीवन में हमारी आत्मा का अभ्यास करना जरूरी है, खासकर कि हमारे विवाहित जीवन और परिवारिक जीवन में।

प्रभु के साथ

एक आत्मा होने के द्वारा

सर्व-सम्मिलित व्यक्ति के रूप में

उसे अनुभव करने की जरूरत

क्योंकि हमारे पास एक नयी जन्मी आत्मा है, हम मसीह को अपने भाग के रूप में अनुभव कर सकते हैं और इस मसीह की सहभागिता को भी अनुभव कर सकते हैं। यदि हमारी आत्मा, आत्मा के द्वारा नहीं जन्मी और आत्मा के द्वारा अंतर्निवासित नहीं होती है तो मसीह हमारा भाग नहीं हो सकता और हम मसीह की सहभागिता में नहीं हो सकते हैं। जैसे बिजली के उपकरणों का काम करने के लिए बिजली का प्रवाह होना चाहिए, इसी तरह यदि हम मसीह को हमारे भाग के रूप में अनुभव करना चाहता है और उसकी सहभागिता को आनंद करना चाहते हैं तो हमें अपनी आत्मा में होना चाहिए। केवल तब जब उपकरणों में बिजली का प्रवाह बहता है हमारे पास वास्तव में प्रकाश, गर्म या ठण्डी हवा हो सकती है। इसी तरह, केवल प्रभु के साथ एक आत्मा होने के द्वारा हम उसें सर्व-सम्मिलित व्यक्ति के रूप में अनुभव कर सकते हैं।

पहला कुरिन्थियों 1:2 और 9 कहता है कि मसीह दोनों, उनके और हमारे हैं और हमें इस मसीह की सहभागिता में बुलाया गया है। यह सहभागिता केवल आत्मा में होती है। प्रभु की स्तुति हो कि वह जो प्रभु की संगति में रहता है, वह उसके साथ एक आत्मा है! इसलिए हमारे पास एक स्रोत है, एक झरना है और एक अतुलनीय जलाशय है। यह स्रोत मसीह अर्थात प्रक्रिया से गुजरा त्रिएक परमेश्वर अर्थात सर्व-सम्मिलित जीवन दायक आत्मा है।

 

745

1 हे प्रभु तू अब आत्मा है
हमारी आत्मा में जीता है_
दोनों एक आत्मा हो गए,
एकत्व देता है।

2 आत्मा मेरी आत्मा के साथ
सदा गवाही देती है
कि हम पिता की सन्तान हैं
और महिमा के वारिस हैं।

3 आत्मा में हम तुझे छूते
धन का आनन्द करने को
और आत्मा के रूप में देते
मिलावट के बिना।

4 आत्मा में हम सदा चले
तेरा पीछा करें
आत्मा का रूप, अगुवाई करें
रोज प्रकाश प्रदान करें।

5 आत्मा में तेरी आत्मा से
आराधाना करते हैं
तेरी आत्मा के द्वारा हमें
सामर्थ मिलती है।

6 प्रभु तेरी आत्मा के साथ
प्रार्थना भेंट करते हैं
आत्मा के रूप में तू, हममें
अवर्णनीय कराहता है।

7 हम आत्मा की ओर मुड़ते हैं
वहाँ तुझे संपर्क करें
आत्मा में दिव्य विरासत में
हम सब भागी होंगे।

8 यह क्या एकता है मेरे प्रभु
दो आत्माएं, लिपट गईं
तेरा आत्मा मेरी आत्मा में,
मेरी आत्मा तेरे आत्मा में।