चरवाही

श्रृंखला 4

आत्मा और जीवन

पाठ सोलह – महिमाकरण

इब्र- 2:10-क्योंकि जिसके लिये और जिसके द्वारा सब कुछ है, उसके लिए यह उचित था कि बहुत से पुत्रें को महिमा में  लाने के लिए, उनके उद्धार के कर्ता को दुःख उठाने के द्वारा सिद्ध करे।

परमेश्वर के संपूर्ण उद्धार में, हम नये जन्म से शुरूआत करते हैं और नवीनीकरण, पवित्रीकरण, रूपांतरण, परिपक्वता और अनुरूपीकरण और आखिरकार महिमाकरण के द्वारा मसीह के धनी जीवन को लगातार अनुभव और आनंद करते हैं। महिमान्वित होना, परमेश्वर की महिमा में प्रवेश करना, बिना नाप और सीमा के, मसीह में परमेश्वर के असीमित और अनंत जीवन को अनुभव और आनंद करना है।

परमेश्वर का उद्देश्य

1 पतरस 5:10 में हमें यह कहा गया है कि मसीह यीशु में हमें बुलाने और सभी अनुग्रह को देने में परमेश्वर का उद्देश्य यह था कि हम उनकी अनंत महिमा को आनंद कर सकें। अनन्त काल में उसने हमें अपने पूर्वज्ञान के अनुसार पूर्वनिधारित किया था और समय में उसने हमें बुलाया और हमें न्यायसंगत किया कि हम महिमान्वित हो सकें।

परमेश्वर की अगुवाई और सिद्ध बनाना

चूंकि परमेश्वर ने पूर्वनिधारित किया था कि हमें उसकी अनंत महिमा का आनंद लेना चाहिए जो हमारे उद्धार के दिन से शुरू होता है, वह हमें अपनी महिमा में ले जाता है। सभी वस्तुओं के सृष्टिकर्ता के रूप में वह सभी चीजों को निर्देशित और व्यवस्थित करता है, जिससे वे हमारे लिए काम करता है (रो- 8:28-30) कि अपने माध्यम से वह हमें अपनी महिमा में ले जा सकता है।

2 कुर- 4:17 में हम देखते हैं कि मसीही होने के लिए, प्रभु का अनुसरण करने के लिए और उसके लिए गवाही देने के लिए आज जो क्लेश हम सहते हैं पल भर का है और हल्का है। हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत महत्वपूर्ण और अनंत महिमा उत्पन्न करता जाता है।

महिमाकरण की परिभाषा

वस्तुपरक महिमाकरण

वस्तुपरक रूप से, महिमाकरण यह है कि छुड़ाए गए विश्वासियों को परमेश्वर की महिमा में भाग लेने के लिए परमेश्वर की महिमा में लाया जाता है (इब्र. 2:10; 1 पत. 5:10)। यह महिमाकरण की वस्तुपरक परिभाषा है। ऐसा लगता है कि आज परमेश्वर की महिमा दूर स्वर्गों में है और हम छुड़ाए गए जन पृथ्वी में हैं; इन दोनों को अलग करती एक बहुत बड़ी दूरी है। कभी हम महसूस करते हैं कि हम परमेश्वर की महिमा से बहुत दूर हैं, लेकिन इस प्रकार की भावना केवल आंशिक रूप से सही है।

व्यक्तिपरक महिमाकरण

व्यक्तिपरक रूप से महिमाकरण यह है कि परिपक्व विश्वासी जीवन में अपनी परिपक्वता के द्वारा जीवन में उनकी परिपक्वता के तत्व के रूप में परमेश्वर की महिमा को अपने अंदर से प्रकट करेंगे (रो- 8:17-18, 21; 2 कुर- 4:17)। यह महिमाकरण की व्यक्तिपरक परिभाषा है। हम व्यक्तिपरक महिमाकरण को चित्रित करने के लिए एक उदाहरण का उपयोग कर सकते हैं। जब बगीचे में एक फूल बढ़ने लगता है, तो यह सिर्फ एक छोटा हरा कोमल अंकुर होता है। जितना ज्यादा बढ़ता है, हालांकि, उतना अधिक परिपक्व हो जाता है। धीरे-धीरे से फूल की कलियां दिखाई देने लगती हैं। यदि आप पौधे को पानी देना जारी रखते हैं, तो यह अधिक बढ़ेगा। कुछ समय बाद पौधा खिलेगा। जब फूल पूर्ण रूप से खिलते हैं, तो यह महिमाकरण है। फूलों की महिमा बाहर से नहीं आती बल्कि यह भीतर से बाहर बढ़ता है। इसलिए, एक तरफ से, हमें महिमा की आशा है कि मसीह हमारी महिमा करने के लिए आ रहा है। यह वस्तुपरक है। दूसरी ओर, हम प्रभु के स्वरूप में रूपांतरित हो रहे हैं, महिमा की महिमा से अर्थात महिमा से महिमा तक (3:18)। यह हम पर महिमा उतर नहीं रही है; बल्कि, यह हमारे भीतर से बढ़ती महिमा है। वसंत ऋतु में जब सभी प्रकार के फूल खिलते हैं, तो इनमें से कोई भी सुंदर फूल बाहर से तने पर उतरता नहीं है। बल्कि वे पौधे के भीतर से ही बाहर निकलते हैं। यदि आप प्रभु के प्रेमी हैं, औैर यदि आप प्रभु को अपने अंदर रहने देंगे और आप प्रभु के द्वारा जीते हैं, तो जब लोग आप को देखेंगे, तो वे आप पर परमेश्वर की महिमा देखेंगे। यह महिमा वस्तुपरक नहीं बल्कि व्यक्तिपरक है।

हमारे महिमा में प्रवेश करने में दो पहलू शामिल हैं। मानों कि आप प्रभु द्वारा नहीं जीते हैं और आप मसीह को नहीं जीते हैं। आप जो कुछ पसंद करते हैं वही आप करते हैं, हालांकि बड़े पाप दुर्लभ हैं, छोटे पाप अक्सर होते हैं। यदि आप ऐसे मसीही हैं, तो आप आसानी से गुस्सा कर सकते हैं या दूसरों को घर में गुस्से से घूर सकते हैं और कलीसिया में कोई भी आपसे निपटने में सक्षम नहीं है। यदि आप ऐसे व्यक्ति हैं, तो आप पर प्रभु की महिमा नहीं है और परमेश्वर की महिमा नहीं है जो आप में देखी जा सकती है। फिर भी आप कहते हैं कि जब मसीह आता है, तो आप महिमावित हो जाएंगे और महिमा में प्रवेश करेंगे। मैं आपको यह बताना चाहूंगाः हाँ, जब मसीह लौटेगा आप महिमा में प्रवेश करेंगे, लेकिन वह महिमा, महिमा का बस छोटा सा टुकड़ा होगा। इसलिए, 1 कुरिन्थियों 15:41 में पौलुस कहता है, ‘‘सूर्य का तेज और, चाँद का तेज और है, और तारागणों का तेज और है, क्योंकि एक तारे से दूसरे तारे के तेज में अन्तर है। तारे की महिमा की सूर्य और चाँद की महिमा के साथ तुलना कैसे की जा सकती है? मुझे डर है कि प्रभु के आगमन पर, पौलुस की महिमा महान होगी और आप केवल एक छोटे से तारे होंगे जो शायद ही देखा जा सकता है। क्या आप वहाँ महिमामय होंगे? आप महिमा में महिमामय नहीं होंगे।

आज अगर आप प्रभु से प्रेम करता है, और आप अपने भीतर से प्रभु की महिमा को जीते हैं, तो प्रभु के आगमन पर, वह आपको उच्चतम स्तर की महिमा में स्थान देगा। लेकिन अगर आप अभी भी अपने पुराने तरीके से व्यवहार करते हैं-दूसरों पर गुस्से में घूरना, गपशप करना, इच्छा से आलोचना करना और शायद कभी कभी बड़ा पाप करना, आप अक्सर छोटे पाप कर रहे हैं-क्या आपको लगता है कि आप प्रेरित पौलुस जैसे महिमामय होंगे, जब प्रभु वापस आता है? महिमा प्रभु द्वारा दी जाती है, लेकिन महिमा का स्तर आपके द्वारा स्थापित किया जाना चाहिए। वहां भी लोगों का एक वर्ग है जो पराजित हो गए हैं और महिमा में प्रवेश नहीं करेंगे। वे अंधेरे में जाएंगे जहां उनका दातों को पीसना होगा।

संतों में मसीह का

महिमान्वित होना

यद्यपि हमने जो मसीह में विश्वास किया है, अभी तक महिमा में प्रवेश नहीं किया है जो परमेश्वर ने हमारे लिए पूर्वनिधारित किया था_ हमारे पास महिमा की आशा के रूप में हमारा मसीह है (कुल- 1:27)।

आज हम मसीह को हमारे जीवन के रूप में आनंद लेते हैं। जब वह प्रकट होता है, तो हम उसकी महिमा में उसकी दिव्य महिमा का आनंद लेने के लिए प्रकट होंगे (3:4)। यह महिमा हमें दासत्व से मुक्त करेगी जिसके तहत आज भ्रष्ट सृजन होता है। यह केवल एक महिमा नहीं है, जिसे हम आनंद लेना चाहते हैं, बल्कि वह महिमा भी है जिसकी पूरी सृष्टि उत्सुकता से अपेक्षा कर रही है (रो- 8:19-21)। आज वह महिमा मसीह है जो हमारे अंदर है, हमारे भीतर लगातार बढ़ रहा है। जब मसीह आता है, एक तरफ से, यह परमेश्वर है जो हमें उस महिमा में ले जाएगा और दूसरी ओर, मसीह है जो हम में महिमा के रूप में व्याप्त होग जिसमें हम प्रवेश करेंगे। यही है संतों में मसीह का महिमान्वित होना और आश्चर्य किया जाना (2 थिस- 1:10) अर्थात मसीह अपने विश्वासियों के भीतर और अपने विश्वासियों पर महिमा के रूप में उनके आनंद के रूप में प्रकट होता है।

 

गीत  949

1 मसीह महिमा की आशा, वह है मेरा जीवन
उसने नया जन्म दिया, संतृप्त किया मुझे
मेरी देह को बदलने, सामर्थ के साथ आता
उसकी महिमामय देह सा, हम होंगे।

मसीह, वह आ रहा, महिमाविन्त करने को
मेरी देह को अपने समान, रूपांतरित करेगा
वह आ रहा, आ रहा, छुटकारा को देने
संतों की महिमा करने को, महिमा की आशा में

2 मसीह महिमा की आशा, खुदा का भेद वह है
खुदा की पूर्णता बॉटता, मुझमें लाता खुदा
हर प्रकार से खुदा के साथ मिश्रित करने आता
कि हम उसकी महिमा में भागी हो

3 मसीह महिमा की आशा, पूर्ण छुटकारा है वह
देता देह को छुटकारा, मृत्यु से मुक्त करता
वह आता मेरी देह को महिमामय बनाने
विजय में सदा के लिए, मृत्यु का।