चरवाही

श्रृंखला 4

आत्मा और जीवन

पाठ दस – आत्मा के अनुसार चलना

गल- 5:25-यदि हम आत्मा के द्वारा जीवित हैं, तो आत्मा के अनुसार चलें भी।

आत्मा के अनुसार चलना हमारी मिश्रित आत्मा के अनुसार चलने से संबंधित है और यह न केवल जीवन की आत्मा की बात है लेकिन नयी जन्मी आत्मा की भी बात है। ये तीन एक साथ जुड़े हैं मसीह जो जीवन है, जीवन की आत्मा और हमारी नयी जन्मी आत्मा। जीवन के रूप में मसीह हमें जीवन की अनुभूति होने का कारण बनते हैं, पवित्र आत्मा का अभिषेक और कार्य, हमें आत्मा द्वारा सिखाये जाने का कारण बनता है, और हमारा प्रभु के जीवन की आत्मा के साथ एक आत्मा में मिश्रित होना हमें प्रभु के जीवन की अनुभूति के अनुसार हमारी आत्मा में चलने का कारण बनता है, जो जीवन की आत्मा के कार्य करने से आता है।

आत्मा जो एक में

दो आत्माओं का मिश्रित होना है

नया नियम स्पष्ट और प्रभावपूर्ण तरीके से हमें प्रकट करता है कि हम, जो परमेश्वर के जीवन की आत्मा को हमारे नयी जन्मी आत्मा में पाने के लिए पवित्र आत्मा द्वारा नया जन्म पाते हैं, परमेश्वर के साथ एक आत्मा हैं। इसका अर्थ है कि हमारी नयी जन्मी आत्मा और जीवन का आत्मा, जो हमें नया जन्म देता है, एक आत्मा के रूप में मिश्रित हैं (1 कुर- 6:17)। प्रेरित पौलुस इस मिश्रित आत्मा के अनुभवों से भरा था। इस प्रकार, उसने हमें इस मिश्रित आत्मा के अनुसार चलने के लिए कहा। यह न केवल परमेश्वर के आत्मा के अनुसार चलना है, बल्कि अपनी नयी जन्मी आत्मा का अनुसरण करने के द्वारा चलना है, जो परमेश्वर के जीवन के आत्मा के द्वारा अंतर्निवासित है।

जीवन जीना और चलना

जो विश्वासियों के पास होना चाहिए

त्रिएक परमेश्वर की चाह के अनुसार, जिसने खुद को हमारी आत्मा के साथ मिश्रित किया है, विश्वासियों के रूप में हमारा चलना न केवल वह चलना है जो पवित्रशास्त्र के अनुसार है, न ही केवल वह चलना है जो पवित्र और विजयी है, लेकिन एक वह जीना है जो हमारे भीतर आत्मा के अनुसार चलना है, जो आत्मा एक के रूप में दो आत्माओं का मिश्रण है (रो- 8:4)। इस प्रकार का जीवन जीना, हमारे शरीर, हमारा स्वयं, हमारे प्राण, और हमारे स्वाभाविक जीवन के स्थान और कार्य को खोने का कारण बनता है, और प्रक्रिया से गुजरे त्रिएक परमेश्वर, पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा को हममें पूर्ण आधार प्राप्त करने की अनुमति देता है, ताकि वह हमारे त्रिभागी अस्तित्व, आत्मा, प्राण, और शरीर के साथ स्वयं को मिश्रित करने के लक्ष्य तक पहुंच सके, यानि कि हम पूरी तरह से उसके द्वारा कब्जा किये जा सकें और हम उसके साथ भरे और संतृप्त हो सकें, अपने जीवन, अपने व्यक्ति, और अपने सबकुछ के रूप में उसे ले सकें, ताकि हम उसकी पूर्ण अभिव्यक्ति बनने के लिए पूर्ण रूप से उसके साथ एक हो सकें। यह जीवन न केवल परमेश्वर की व्यवस्था की धर्मी आवश्यकता को संतुष्ट करता है ताकि, धार्मिकता के संबंध में, वह अब और बाधित न हो; यह परमेश्वर के गृह प्रबंध के उद्देश्य को भी पूरा करता है ताकि वह अपनी पवित्रता के संबंध में, पूरी तरह से संतुष्ट हो और उसकी महिमा के संबंध में कोई कमी नहीं हो।

केवल आत्मा के अनुसार

जीना और चलना

चूंकि, आत्मा के अनुसार जीना और चलना बहुत महत्वपूर्ण है, तो हमें अपने शरीर के अनुसार नहीं अपितु अपनी आत्मा के अनुसार चलना चाहिए (आ- 4)। दरअसल किसी प्रकार का भी जीवन और चलना जो आत्मा के अलावा अन्य चीजों के अनुसार है, शरीर के अनुसार जीना और चलना है। यदि हम आत्मा के अनुसार नहीं चलते हैं, और बाइबल के अनुसार चलने का प्रयास करते हैं, तो असल में, प्रकट रूप से नहीं, हम शरीर के अनुसार चल रहे हैं। इसका कारण यह है कि हम अपनी सामर्थ के साथ बाइबल के वचनों का पालन करते हैं, जैसा कि इस्राएलियों ने अपनी सामर्थ के साथ व्यवस्था रखी थी। वह जो आत्मा के अनुसार चलता है वह सबकुछ आत्मा के द्वारा करता है अपनी खुद की सामर्थ के द्वारा नहीं। इस तरीके से, हमारा चलना केवल उसकी इच्छा के अनुसार परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए नहीं है बल्कि वह पूरा करना है जो परमेश्वर हमसे स्वयं परमेश्वर द्वारा करवाना चाहता है, जो हमारी आत्मा के साथ मिश्रित पवित्र आत्मा है।

दर्शन होने की जरूरत-

जीवन के रूप में परमेश्वर हमारे भीतर है

सबसे पहले, आप के पास दर्शन होना चाहिए अर्थात, आप के पास प्रकाशन होना चाहिए—कभी-कभी मसीही जीवन धूप की तरह, प्रभु की उपस्थिति से भरा होता है, फिर भी कभी-कभी यह बादल से छाया हुआ, यहां तक कि तूफानी और अंधकारमय भी होता है। ऐसे समय में हम खुद से सवाल पूछ सकते हैं जैसे किः क्या परमेश्वर वास्तविक है या नहीं? क्या नया जन्म वास्तविक है या नहीं? क्या परमेश्वर की आत्मा का पवित्रिकरण और रूपांतरण का कार्य वास्तविक है या नहीं? मेरा मानना है कि हम सब इस तरह की परिस्थिति में रहे हैं। लेकिन चाहे हम किसी भी तरह की परीक्षा से गुजरे हों, हमने पाया है कि हमारे भीतर कुछ है जो रद्द नहीं किया जा सकता। हम उनके अस्तित्व को इंकार नहीं कर सकते हैं—हम सभी को दर्शन देखना चाहिए कि परमेश्वर जीवन के रूप में हमारे भीतर है।

दूसरा, हमें देखना चाहिए कि विश्वासियों के रूप में, हमारे त्रिभागी मनुष्य का पुराना मनुष्य मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया है। यहां तक कि हमारे पैदा होने से पहले ही, हम क्रसीकृत हुए। तीसरा, हमें देखना चाहिए कि प्रक्रिया से गुजरे और परिपूर्ण त्रिएक परमेश्वर के आत्मा ने हमारी आत्मा को अब जीवन बनाया है। दूसरे शब्दों में, त्रिएक परमेश्वर का आत्मा हमारे जीवन के रूप में हमारी आत्मा के भीतर है, और हमें परमेश्वर को हमारे सबकुछ के रूप में आनंद करने के योग्य बनाता है। हमारे पास यह जीवन पहले फल के आनंद के रूप में हमारी आत्मा के भीतर है।

चार महत्वपूर्ण अनुभव

इस दर्शन को देखने के बाद, हमें निम्नलिखित अनुभवों की आवश्यकता है। सबसे पहले, हमें बिना किसी मिश्रित विचारों के, अपने मन को आत्मा पर लगाने की आवश्यकता है (रो- 8:6)। हमें आत्मसुधार से खुद को बेहतर बनाने या परिष्कृत करने की कोशिश करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए। आत्मा पर अपना मन लगाने का सबसे अच्छा तरीका प्रार्थना और स्तुति है। यह हमारे मन को जीवन बनायेगा। दूसरा, हमें मिश्रित आत्मा के द्वारा चलना चाहिए (रो- 8:4)। तीसरा, हमें त्रिएक परमेश्वर के आत्मा को अनुभव करना चाहिए, जो मृत्यु और पुनरूत्थान से गुजरा, न केवल आपकी आत्मा और मन को बल्कि आपकी नश्वर देह को भी जीवन दे रहा है (आ- 11)। इन अनुभवों के द्वारा, हमारी आत्मा में, हमारे प्राण में, यहां तक कि हमारी नश्वर देह में भी जीवन है। आपके अस्तित्व के तीन भाग, आत्मा, प्राण, और देह, जीवन पाएंगे।

अंत में, आत्मा के द्वारा हमें शरीर के प्रयासों को मारना चाहिए (रो- 8:13), जोकि पूरे व्यक्ति का अभ्यास हैं। हम अपने आप को मारने के द्वारा जीते हैं। इस बात के बारे में पौलुस के वचन बहुत ही रहस्यमय, गहरे, और पूर्ण हैं। वह कहता है कि हम अपने भीतर आत्मा के द्वारा अपने शरीर के प्रयासों को मारते हैं। शरीर फिल्म देखना, गुस्सा करना, मजाक करना, प्रेम करना, घृणा करना, अच्छा करना या बुरा करना चाहता हैं। इन सभी को मार देना चाहिए। यदि आप शरीर के प्रयासों को मारते हैं, तो आप जीएंगे। मसीही जीवन वह है जो मृत्यु के द्वारा जीता है। मैडम गुयोन ने इसके बारे में मृृत्यु के माध्यम से जीवन नामक एक किताब लिखी। शरीर के प्रयासों को मार देने का तरीका लगातार प्रभु की मृत्यु में रहना है। यूहन्ना 15 कहता है कि हमें प्रभु में निवास करना और रहना चाहिए। यदि आप प्रभु में बने रहते हैं, तो आपको प्रभु की मृत्यु में निवास करना और बने रहना चाहिए।

सब चीजों में

सतर्क और सावधान

होने की आवश्यकता

यदि हमें जीवन के रूप में परमेश्वर को अनुभव करना है, तो सबसे पहले हमें यह देखना चाहिए कि त्रिएक परमेश्वर हमारा जीवन बनना चाहता है। इसके लिए, उसने क्रूस पर मसीह के साथ हमारे त्रिभागी पुराने मनुष्य को समाप्त किया, ताकि त्रिएक परमेश्वर के आत्मा के रूप में वह हमारी आत्मा में आ सके, हमारी आत्मा को  जीवन बनाते हुए कि हम उसे आनंद करें। हमें अपने मन को आत्मा पर लगाना चाहिए ताकि त्रिएक परमेश्वर का आत्मा, जो हमारी आत्मा में है हमारे मन में आ सके और हमारे मन को जीवन बना सके। हमें अपनी आत्मा के अनुसार ही जीना और चलना चाहिए। यदि हम इन बातों को करते हैं, त्रिएक परमेश्वर की आत्मा, जो मृत्यु और पुनरुत्थान से गुजरा, हमारे नश्वर शरीर को जीवन देगा, इस प्रकार हमारे सम्पूर्ण अस्तित्व आत्मा, प्राण, और शरीर को जीवन बनाएगा। तब, आत्मा के द्वारा हमें शरीर के प्रयासों को मारकर जीना चाहिए। इस तरीके से हम परमेश्वर को अपने जीवन के रूप में आनंद करेंगे। अभ्यास में, हमें सतर्क और सावधान होना चाहिए, डरते हुए कि अपनी रोज़ की बातों के कुछ बिंदुओं में चाहे वह बड़े हों या छोटे, हम आत्मा के अनुसार नहीं हैं। यदि हम आत्मा के अनुसार नहीं हैं, हम उचित नहीं हैं। मैं आशा करता हूँ कि आप सभी इस अध्याय में प्रस्तुत किये गये कार्यो का अभ्यास करेंगे।

 

CHRIST MY VERY PEACE IS

Experience of Christ— By Following the Spirit – 594

1. Christ my very peace is
And my life within;
Sharing in the spirit
I unite with Him.

Following the Spirit,
Living in the Lord,
Life He doth supply me
And His peace afford.

2. To the Lord belonging,
Bound I’ll never be,
For the law of life now
Sets me wholly free.

3. Minding flesh no longer,
I’ll the spirit mind;
Self-will never follow,
But the Spirit’s find.

4. Christ within empow’rs me
Spiritual to be!
E’en my body quick’ning
By His pow’r in me.

5. Spirit with the spirit
Witnesseth in one,
I’m of God begotten,
Heir with Christ the Son.