चरवाही
श्रृंखला 4
आत्मा और जीवन
पाठ एक – प्रार्थना
कुल- 4:2-प्रार्थना में लगे रहो, और धन्यवादपूर्वक प्रार्थना में जागृत रहो।
इफ- 6:18 प्रत्येक विनती और निवेदन सहित पवित्र आत्मा में निरन्तर प्रार्थना करते रहो और यह ध्यान रखते हुए सतर्क रहो कि यत्न सहित सब पवित्र लोगों के लिए लगातार प्रार्थना करो।
प्रार्थना का अर्थ
एक असली प्रार्थना परमेश्वर और मनुष्य के बीच आपसी संपर्क है। प्रार्थना केवल मनुष्य का परमेश्वर से संपर्क करना नहीं है बल्कि परमेश्वर का मनुष्य से संपर्क करना भी है। यदि प्रार्थना में मनुष्य परमेश्वर को नहीं छूता या संपर्क नहीं करता है और परमेश्वर मनुष्य को नहीं छूता और संपर्क नहीं करता, तो वह प्रार्थना उचित मानक से कम है।
प्रार्थना में दृढ़ रहना
कुलुसियों 4:2 में पौलुस हमें प्रार्थना में दृढ़ रहने का आदेश देता है। इसका अर्थ हमें बस प्रार्थना में जारी रहना नहीं है लेकिन हमें लगातार प्रयास करते रहना चाहिए। हमारी परिस्थिति में लगभग सब कुछ प्रार्थना के विपरीत है। प्रार्थना करने के लिए हमें हमारी परिस्थितियों के ज्वार और प्रवाह के खिलाफ जाना चाहिए। यदि हम प्रार्थना करने में विफल होते हैं तो हम बहाव के साथ चले जाएंगे। केवल प्रार्थना ही हमें प्रवाह के खिलाफ जीने के लिए सक्षम कर सकती है। इसलिए, हमें प्रार्थना में दृढ़ रहना, लगातार प्रार्थना करने की जरूरत है।
हमारे प्रार्थना जीवन के विषय में
एक प्रण करना
प्रार्थना में दृढ़ रहने का प्रयास करने से पहले, आपको प्रभु के साथ अपने प्रार्थना जीवन के विषय में एक सौदा करना होगा। एक निश्चित रूप से उससे प्रार्थना करके कहना होगा, ‘‘प्रभु, प्रार्थना के इस विषय में मैं इसे सचमुच करने का इरादा रखता हूँ। मैं स्वर्ग और पृथ्वी को गवाह के लिए बुलाता हूँ कि इस समय से लेकर मेरा एक प्रार्थना जीवन होगा। मैं एक प्रार्थना रहित व्यक्ति नहीं रहूंगा। बल्कि, मैं एक प्रार्थना करने वाला व्यक्ति रहूंगा।’’ यदि आपके पास प्रभु के प्रति ऐसी प्रार्थना नहीं है तो आप प्रार्थना में ढृढ़ नहीं रह सकते। हमें उनसे कहने की जरूरत है, ‘‘प्रभु, मैं इस बात को लेकर उग्र हूँ। मैं अपने आप को आपके प्रति समर्पित करता हूँ ताकि मेरे पास एक प्रार्थना जीवन हो। प्रभु, मुझे प्रार्थना की आत्मा में रखें। यदि मैं इसे भूल जाऊॅं या इस पर ध्यान नं दूं, तो मुझे पता है कि आप इसे नहीं भूलेंगे। प्रार्थना के बारे में मुझे बार बार याद दिलाएं।’’ इस तरह की प्रार्थना प्रभु के प्रति एक प्रतिज्ञा के रूप में मानी जा सकती है। हम सभी को हमारे प्रार्थना जीवन के विषय में प्रतिज्ञा करने की जरूरत है। हमें प्रभु से कहना होगा, ‘‘प्रभु, मैं जानता हूँ कि यदि मैं इस प्रतिज्ञा को भूलता हूँ, आप इसे नहीं भूलेंगे। शुरूआत से ही, प्रभु, मैं स्पष्ट रूप से आप को जिम्मेदारी सौपना चाहता हूँ। प्रभु, मुझे जाने मत दें प्रार्थना करने के लिए मुझे याद दिलाएं।
निश्चित समय अलग करना
प्रार्थना के विषय में प्रभु के साथ ऐसा सौदा करने के बाद, हमें प्रार्थना के लिए निश्चित समय अलग करना चाहिए। उदाहरण के लिए, आप हर सुबह दस मिनट अलग कर सकते हैं। इस समय के दौरान, प्रार्थना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। हमारा रवैया ऐसा होना चाहिए कि प्रार्थना हमारा सबसे महत्वपूर्ण कार्य है और इसके साथ दखल देने की अनुमति किसी को नहीं दी जानी चाहिए। अगर हमारे पास इस तरह का रवैया नहीं है, तो हमारे पास सफल प्रार्थना जीवन नहीं हो सकता है। हर दिन चाहे हम कितना भी काम करते हैं, हम प्रार्थना के लिए कम से कम कुछ मिनट यहां और वहां अलग कर सकते हैं। हम सुबह में थोड़ा प्रार्थना कर सकते हैं। फिर दोपहर में, काम के बाद, और शाम को प्रार्थना करने के लिए अन्य समय हो सकता है। दिन के दौरान निश्चित समय अलग करने से, हम प्रार्थना करने के लिए आधा घंटा बचाने में सक्षम होंगे।
प्रार्थना- प्रभु के साथ संगति
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1 प्रार्थना से संगति करो
आत्मा में ढूढ़ उसको
उपस्थिति में कह और सुन
गुप्त स्थान में प्रतीक्षा कर
प्रार्थना से संगति करो
आत्मा में ढूढ़ उसको
उपस्थिति में कह और सुन
गुप्त स्थान में प्रतीक्षा कर
2 प्रार्थना से संगति करो
अपना हृदय पूरा खोल
देख उसको उघाड़े चेहरे से
जो सच्चा, एक मात्र
3 प्रार्थना से संगति करो
विश्वास से ढूढ़ उसको
आत्मा में छूना सीखो
देख उसको आदर से
4 प्रार्थना से संगति करो
दिखावे में कुछ न बोल
आत्मा के अनुसार ही माँग
प्रार्थना कर आन्तिरक भाव से
5 प्रार्थना से संगति करो
उत्सकुता से उसको सुन
उसकी मर्जी से प्रभावित हो
मान उसको अन्दर से
6 प्रार्थना से संगति करो
उसके मुख मंडल में स्नान
उसकी सुन्दरता से हो संतृप्त
उसके प्रताप को बिखेर