चरवाही
श्रृंखला 4
आत्मा और जीवन
पाठ चौदह – रूपांतरण
2 कुर- 3:17-18-अब यह प्रभु तो आत्मा है, और जहाँ प्रभु का आत्मा है, वहाँ स्वतन्त्रता है। परन्तु हम सब खुले चेहरे से, प्रभु का तेज मानो दर्पण में देखते हुए, प्रभु अर्थात आत्मा के द्वारा उसी तेजस्वी रूप में अंश-अंश करके बदलते जाते हैं।
रूपांतरण
परमेश्वर के जीवन का
चयापचयी कार्य होना
रूपांतरण एक बाहरी परिवर्तन या सुधार नहीं है, बल्कि विश्वासियों में परमेश्वर के जीवन का चयापचय कार्य है। रूपांतरण बाहरी रूप से कुछ सुधार करना नहीं है; यह भीतर से चयापचय का कार्य है और बाहर प्रकट होता है।
मन लीजिए कि एक व्यक्ति कुपोषित है और पतला और बीमार दिखाई देता है। वह अपने चेहरे पर कुछ पाउडर लगाने से ठीक नहीं हो सकता। बल्कि, उसकी पोषण के साथ आपूर्ति की जानी चाहिए; तो उसकी शारीरिक स्थिति ठीक हो जाएगी और उसके चेहरे का रंग स्वतः गुलाबी हो जाएगा।
यदि विश्वासी दिव्य जीवन में बढ़ने के लिए तैयार है, दिव्य जीवन का तत्व उनमें बढ़ेगा और एक चयापचय परिवर्तन लाएगा। इस प्रकार, उनका आंतरिक स्वभाव रूपांतरित हो जाएगा और उसकी बाहरी छवि भी प्रभु की छवी के रूप में रूपातरित हो जाएगी।
चयापचय की प्रक्रिया
चयापचय की प्रक्रिया में एक जीव की एक नये तत्व से आपूर्ति की जाती है। यह नया तत्व पुराने तत्व को बदल देता है और उसे निकाल देता है। इसलिए, जैसे एक जीवित प्राणी में चयापचय की प्रक्रिया होती है, इसके भीतर कुछ नया रचित हो जाता है कि पुराना तत्व बदल जाए जो दूर किया जाता है। चयापचय इसलिए, तीन बातों को शामिल करता हैः सबसे पहले, एक नए तत्व की आपूर्ति; दूसरा, इस नए तत्व के साथ पुराने तत्व को प्रतिस्थापन करना; और तीसरा, पुराने तत्व को छोड़ना या हटाना ताकि कुछ नया उत्पन्न हो सके।
हमारे भोजन खाने के पाचन और आत्मसात में चयापचय शामिल होता है। सबसे पहले हम खाना हमारे पेट में लेते हैं। इसके बाद भोजन को चयापचयी रूप से पचा दिया जाता है जिससे कि हमारे अस्तित्व की आपूर्ति हो सके ताकि पुराने को बदलने के लिए नए तत्व जोड़े जा सकें और नई कोशिकाओं को अस्तित्व में लाया जा सके। चयापचय की इस प्रक्रिया के माध्यम से हम बढ़ते हैं और मजबूत होते हैं। और उचित चयापचय के माध्यम से हमें कुछ बीमारियों से चंगे किये जा सकते हैं। चयापचय की प्रक्रिया के माध्यम से हमारी शारीरिक देह लगातार स्वस्थ होती रहती है। यह उपचार एक चिकित्सक द्वारा दी गई दवा के कारण नहीं होता है; यह वह चंगाई है जो शरीर के उचित क्रियाकलाप के कारण होती है। रोज़ चयापचय की प्रक्रिया से हम चंगाई को अनुभव कर सकते हैं।
प्रभु की ओर मुड़ने और
उसे देखने के द्वारा
रूपांतरित होना
यदि हम इस तरह के रुपांतरण की इच्छा रखते हैं, तो हमें पहले प्रभु की ओर मुड़ने के द्वारा अपनी पुरानी अवधारणाओं के विभिन्न प्रकार के पर्दें हटाने होंगे (2 कुर- 3:16) और उसे उघाड़े चेहरे के साथ देखना और उसकी महिमा को दर्पण की तरह प्रतिबिम्बित करना होगा (आ- 18) । इस तरह से हम उसकी अभिव्यक्ति के लिए महिमा के एक स्तर से महिमा के दूसरे स्तर तक प्रभु के ही स्वरूप में रुपांतरित हो रहे हैं।
प्रभु के आत्मा से
प्रभु के जैसे ही स्वरूप में
रूपांतरित होना
यह प्रभु के आत्मा से है अर्थात जीवन दायक आत्मा के रूप में मसीह से है, कि विश्वासियों को उसी स्वरूप में रुपांतरित किया जा रहा है, जैसे कि प्रभु है। हमारा नया तत्व होने के लिए इस आत्मा में भरपूर आपूर्ति शामिल है। हमें यीशु मसीह के आत्मा की भरपूर आपूर्ति का आनंद लेना चाहिए और उसे हमारे अंदर काम करने की अनुमति देनी चाहिए। यह रूपांतरण है।
मानो कि आप और एक और भाई एक साथ रहते हैं। हर दिन यह भाई प्रभात जागृति करता है, प्रार्थना करता है, बाइबल पढ़ता है और प्रभु के वचन पर ध्यान देता है। कुछ समय बाद आप निश्चित रूप से उसमें कुछ बदलाव देखेंगे।
हमारे अंदर एक आत्मा है और आत्मा के रूप में हमारी आत्मा में रहने वाला प्रभु हमारे निकट है। आप उसके साथ बात कर सकते हैं और उसके साथ सब बात में परार्मश ले सकते हैं। प्रभु का वचन कहता है, ‘‘किसी भी बात की चिन्ता मत करोः परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाए।’’ (फिल 4:6) इसलिए, अगर आपको कुछ समस्या है, तो आपको उसे बताने की जरूरत है। वह आपके भीतर है और आपके साथ आमने सामने है। त्रिएक परमेश्वर-पिता, पुत्र और आत्मा-हमें परेशान करने के लिए नहीं बल्कि हमारे सांत्वनादाता, सहायक, समर्थक बनने के लिए है। इस प्रकार आप अपने अंदर प्रभु के तत्व को प्राप्त करते हैं और चयापचय आप में निरंतर काम करेगा। परिणामस्वरूप आपके द्वारा जो बाहर अभिव्यक्त है वह मसीह है। यह मसीह को जीना हैं। वास्तव में आपको बस प्रभु के साथ लगातार बात करने का अभ्यास करने की जरूरत है; फिर स्वतः आप मसीह को जीएंगे।
दिव्यता के साथ
मानवता के मिश्रण के द्वारा रूपांतरित होना
आदम से मसीह तक, पुराने नियम से नए नियम तक, पुरानी शिक्षा से नयी शिक्षा तक और पुराने नियम की सेवकाई से नए नियम की सेवकाई तक हमारे स्थानातरण में दिव्य तत्व को हमारे अस्तित्व में जोड़ दिया गया था। अब इन दोनों तत्वों के मिश्रण ने रूपांतरण के चयापचय परिणाम उत्पन्न किया है। हमारे उघाड़े चेहरे से प्रभु को देखने और प्रतिबिंबित करने से दिव्य तत्व हमारे अंदर लगातार जोड़ा जाता है। यही कारण है कि हमें हर सुबह प्रभात जागृति की जरूरत है। प्रभात जागृति के बाद, पूरे दिन भर हमें प्रभु को देखना और प्रतिबिंबित करना है, जो जीवन दायक आत्मा है। जीवन दायक आत्मा के रूप में वह हमें स्वातंत्रता देता है। जब हम देखते और प्रतिबिंबित करते हैं हम दिव्य तत्व प्राप्त करते हैं जो रूपांतरण में परिणाम होता है।
महिमान्वित मसीह के स्वरूप में
रूपांतरण होना
हमें मसीह के महिमान्वित स्वरूप में रूपांतरित किया जा रहा है। हमारा स्वरूप जो हम हैं, महिमान्वित मसीह के समान बन जाता है। वह पवित्र है और हम भी पवित्र हैं। वह प्रेम करते हैं और हम प्रेम करते हैं। वह सहनशील है, और हम भी सहनशील है। वह गरिमा से भरा है और हम भी हैं। यह रूपांतरण द्वारा जीवन में वृद्धि है।
रूपांतरण प्रभु आत्मा से है (2 कुर- 3:18)। प्रभु आत्मा का समिश्रित शीर्षक एक व्यक्ति को दर्शाता है। आज, हमारा त्रिएक परमेश्वर प्रभु आत्मा है। उसीं से रूपांतरण अर्थात हमारी मानवता के साथ दिव्यता का मिश्रण आता है।
संक्षेप में, प्रभु को देखने और प्रतिबिंबित करने से दिव्य तत्व को अपने अस्तित्व में ग्रहण करना रूपांतरण है जिससे एक चयापचयी प्रक्रिया होती है। यह चयापचयी प्रक्रिया रूपांतरण है, तेजस्वी मसीह का वही स्वरूप जो परमेश्वर मनुष्य है को अभिव्यक्त करने के लिए दिव्यता के साथ मानवता का मिश्रण है।
अन्दरूनी जीवन के विभिन्न पहलू-
रूपान्तरण
750
1 इच्छा है यही खुदा की
हम सब पुत्र जैसे हो
यह हैं परिवर्तन कार्य
आत्मा से ही पूरा हो।
अपने जैसा प्रभु बदलो
मन, भाव व इच्छा में,
अपनी आत्मा से सीचों
भर दो पूरे जीवन से।
2 पुनःजीवित किया खुदा ने
आत्मा में जीवन द्वारा
हमें अवश्य वह बदलें
प्राण में अपने जीवन से।
3 आत्मा से बाहर वह फैलता
प्राण में हमें बदलने को
अन्दर से नया वह करता
अपने वश में करने को
4 आत्मा की अपनी शक्ति से
अपने जैसा बदले
अपनी महिमा से महिमा तक
अपने रूप में बदलें।
5 पवित्र करता वह बदलता
परिपक्व उसके जैसे
प्राण को पूर्ण वह बदलता
रूप में हो उस के जैसे।