चरवाही

श्रृंखला 3

भरोसा और आज्ञाकारिता

पाठ तीन – हमारा अंत परमेश्वर की शुरुआत है

फिल- 2:12-13-इसलिए मेरे प्रियों, जिस प्रकार तुम सदैव आज्ञा पालन करते आए हो, न केवल मेरी उपस्थिति में परन्तु अब उस से भी अधिक मेरी अनुपस्थिति में डरते और कांपते हुए अपने उद्धार का काम पूरा करते जाओ, क्योंकि स्वयं परमेश्वर अपनी सुइच्छा के लिए तुम्हारी इच्छा और कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए तुम में सक्रिय है।

पौलुस पुनरुत्थान के आधार से कह सकता हैः ‘‘डरते और कांपते हुए अपने उद्धार का काम पूरा करते जाओ, क्योंकि स्वयं परमेश्वर अपनी सुइच्छा के लिए तुम्हारी इच्छा और कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए तुम में सक्रिय है’’ (फिल- 2:12,13)।

अपने आप से

परमेश्वर की इच्छा

करने से मुक्त होना

फिल- 2:12-13 कहता है कि यह परमेश्वर है जो तुम में सक्रिय है। व्यवस्था से छुटकारे का मतलब यह नहीं है कि हम परमेश्वर की इच्छा पूरी करने से मुक्त हैं। इसका मतलब निश्चित रूप से यह नहीं है कि हम व्यवस्था रहित हो जाते हैं। यह बिल्कुल उल्टा है! इसका यह मतलब है कि हम अपने आप से इस इच्छा को करने से मुक्त हैं। हम पुराने मनुष्य के आधार से परमेश्वर को खुश करने की कोशिश नहीं करते क्योंकि हमें पूरी तरह से यकीन दिलाया जाता है कि हम ऐसा नहीं कर सकते। आखिर में अपने आप में निराशा की स्थिति पर पहुंचने के बाद ताकि हम कोशिश करना भी बंद कर देते हैं, हम प्रभु पर भरोसा करते हैं कि वह अपने पुनरुत्थान के जीवन को हम में प्रकट करेगा।

मैंने जो अपने देश में देखा है उस से मैं उदाहरण देता हूँ। चीन में, ज्यादातर बोझा उठाने वाले 120 किलो वज़न के नमक का भार उठा सकते हैं, कुछ 250 किलो तक भी। अब एक आदमी आता है जो केवल 120 किलो ले सकता है, और वहां 250 किलो का भार है। वह अच्छी तरह से जानता है कि वह इसे नहीं ले सकता है और यदि वह बुद्धिमान है तो वह कहेगाः ‘‘मैं इसे नहीं छूऊंगा!’’ लेकिन कोशिश करने का प्रलोभन मानवीय स्वभाव में गहराई से समाया हुआ है, इसलिए, यद्यपि वह उसे नहीं ले सकता, फिर भी वह कोशिश करता है। एक युवा होने के नाते मैं उन दस या बीस लोगों को देखकर अपना मनोरंजन किया करता था, यद्यपि उनमें से हर एक जानता था कि वह ऐसा नहीं कर पाएगा लेकिन वे फिर भी आते थे और कोशिश करते थे। आखिर में उसे छोड़ देना होगा और उस व्यक्ति के लिए रास्ता बनाना होगा जो इसे कर सकता है।

¹‘‘मैं इसे नहीं करूंगा_

मेरे लिए इसे करने के लिए

मैं प्रभु पर भरोसा रखता हँw

जितना जल्दी हम भी कोशिश करना छोड़ देते हैं, उतना बेहतर है क्योंकि अगर हम इस कार्य को अपने पूर्ण नियंत्रण में करते हैं, तो पवित्र आत्मा के लिए कोई स्थान नहीं बचेगा। लेकिन अगर हम कहते हैं: ‘‘मैं इसे नहीं करुंगा_ मेरे लिए इसे करने के लिए मैं आप पर भरोसा रखता हूँ तब हमें पता चलेगा कि एक शक्ति जो हम से भी ज्यादा मजबूत है, हमें ले जा रही है।

1923 में मैं एक प्रसिद्ध कैनेडियन प्रचारक से मिला। मैंने उपरोक्त पंक्तियों के साथ एक भाषण में कुछ कहा था और बाद में जब हम वापस उनके घर चल रहे थे, उन्होंने टिप्पणी की कि, रोमियों 7 की ध्वनि आजकल बहुत कम सुनाई देती है, इसे फिर से सुनना अच्छा लगा। जिस दिन मुझे व्यवस्था से छुटकारा मिला, वह पृथ्वी पर स्वर्ग का एक दिन था। कई सालों से एक मसीही होने के बाद भी मैं परमेश्वर को खुश करने की पूरी कोशिश कर रहा था, लेकिन जितना अधिक मैंने कोशिश की, उतना अधिक मैं असपफ़ल रहा। मैं परमेश्वर को विश्व में सबसे महान मांगकर्ता के रूप में मानता था, लेकिन मैंने उसकी सबसे न्यूनतम मांग को पूरा करने में भी अपने आप को निशक्त पाया। अचानक एक दिन, जैसे कि मैंने रोमियों 7 पढ़ा, प्रकाश आया और मैंने देखा कि मैं केवल पाप से नहीं बल्कि व्यवस्था से भी बच गया था। मैं अचंभे से ऊपर उछला और कहाः ‘‘हे परमेश्वर, क्या तू सचमुच मुझ पर कोई मांग नहीं कर रहा है? तब मुझे तेरे लिए और कुछ करने की जरूरत नहीं है!’’

परमेश्वर सिंहासन पर

व्यवस्था देने वाला है और

मेरे हृदय में व्यवस्था रखने वाला है

परमेश्वर की आवश्यकताओं में बदलाव नहीं हुआ है, लेकिन हम उन्हें पूरे करने वाले नहीं हैं। परमेश्वर की स्तुति हो, वह सिंहासन पर व्यवस्था देने वाला है और वह मेरे दिल में व्यवस्था रखने वाला है। जिसने व्यवस्था दी, वह स्वयं इसे रखता है। वह मांग करता है, लेकिन वही उसे पूरा करता है। जब मेरे दोस्त को पता चला कि उसे कुछ भी नहीं करना था, वह अच्छी तरह से कूद कर चिल्लाया और जो कोई इस तरह खोज करते हैं, वे सभी ऐसा कर सकते हैं। जब तक हम कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं, वे कुछ नहीं कर सकते। यह हमारी कोशिश के कारण है कि हम बार बार असफल होते हैं। परमेश्वर हमें दिखाना चाहता है कि हम कुछ भी नहीं कर सकते और जब तक पूरी तरह से हम इसे मान्यता नहीं देते, हमारी निराशा और भ्रम का अन्त नहीं होगा।

‘‘प्रभु मैं आपके लिए कुछ भी करने में असक्षम हूँ,

लेकिन मुझ में सब कुछ करने के लिए

मैं तुझ पर भरोसा रखता हूं’’

एक भाई जो विजय में आने के लिए संघर्ष करने की कोशिश कर रहा था, उसने मुझसे एक दिन कहा कि, ‘‘मुझे नहीं पता कि मैं क्यों इतना कमजोर हूँ।’’ मैंने कहा, ‘‘आपके साथ परेशानी यह है कि आप परमेश्वर की इच्छा न करने में कमजोर हैं लेकिन पूरी तरह से चीजों से दूर रहने में आप उतना कमजोर नहीं हैं। आप अभी भी कमजोर नहीं हैं। जब आपको अत्यंत कमजोरी तक कम किया जाता है और आप समझ जाते हैं कि आप कुछ भी नहीं कर सकते तब परमेश्वर सब कुछ करेगा।’’ हम सभी को इस बिंदु पर आने की जरूरत है जहां हम कहते हैं:‘‘हे प्रभु, मैं आपके लिए कुछ भी करने में असक्षम हूँ, लेकिन मुझ में सब कुछ करने के लिए मैं आप पर भरोसा रखता हूँ।’’

एक बार मैं चीन में बीस अन्य भाइयों के साथ एक जगह पर रह रहा था। उस घर में स्नान करने के लिए अपर्याप्त प्रबंध था, इसलिए हम दैनिक नदी में स्नान के लिए जाते थे। एक बार एक भाई ने अपने पैर में ऐंठन महसूस की, और मैंने अचानक देखा कि वह तेजी से डूब रहा था, इसलिए मैंने एक दूसरे भाई को इशारा किया, जो विशेषज्ञ तैराक था ताकि उनका बचाव तेजी से हो। लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ कि उन्होंने कोई कदम नहीं उठाया। बेताबी में मैंने चिल्लाकर कहाः ‘‘क्या तुम नहीं देख रहे हो कि वह आदमी डूब रहा है?’’ और दूसरे भाई भी मेरी तरह क्षुब्ध होकर, जोर से चिल्लाने लगे। लेकिन हमारा अच्छा तैराक अभी भी आगे नहीं बढ़ा। शान्त और उत्तेजनाहीन, वह अभी भी वहीं बना रहा जैसे कि वह नापसन्द कार्य को टाल रहा हो। इस बीच उस बेचारे डूबने वाले भाई की आवाज़ धीमी हो गई और उसके प्रयास कमजोर होने लगे। मैंने अपने दिल में कहाः ‘‘मैं उस आदमी से नफरत करता हूं! वह अपनी आँखों के सामने अपने भाई को डूबने दे रहा है और उसे बचाने के लिए नहीं जा रहा है।’’

लेकिन जब यह आदमी वास्तव में डूब रहा था, तैराक ने तेजी से हाथों को फिराया और उस आदमी के पास चला गया और दोनों जल्द ही किनारे पर सुरक्षित थे। फिर भी, जब मुझे अवसर मिला तो मैंने अपने विचारों का खुलासा किया, ‘‘मैंने ऐसे मसीही को कभी नहीं देखा जो अपनी fज़न्दगी को आपके समान पसंद करता है।’’ मैंने कहा, ‘‘उस संकट के बारे में सोचो जिससे आप उस भाई को बचा सकते यदि आप खुद के बारे में थोड़ा कम और उसके बारे में थोड़ा अधिक सोचते।’’ लेकिन मुझे जल्द ही पता चला कि तैराक अपने काम को मुझ से बेहतर जानता था। उन्होंने कहा, ‘‘अगर मैं पहले गया होता, उसने मुझे इतनी ज़ोर से पकड़ लिया होता कि हम दोनों डूब जाते। एक डूबने वाले आदमी को तब तक बचा नहीं सकते जब तक कि वह पूरी तरह से थक न जाए और खुद को बचाने की थोड़ी सी भी कोशिश करना छोड़ न दे।’’

जब हम मामले को छोड़ देते हैं

तब परमेश्वर उसे ले लेता है

क्या आप इस बात को देख रहे हैं? जब हम मामले को छोड़ देते हैं तो परमेश्वर इसे ले लेता है। वह तब तक इंतजार करेगा जब तक हम अपने संसाधनों के अंत में न हों और खुद के लिए और कुछ नहीं कर सके। परमेश्वर ने पुरानी सृष्टि की सभी बातों को दोषी ठहराया है और इसे क्रूस पर डाल दिया है। मांस कुछ लाभ का नहीं! परमेश्वर ने घोषित किया कि यह केवल मृत्यु के योग्य है। यदि हम वास्तव में यह विश्वास करते हैं, तो हम उसे खुश करने के लिए सभी शारीरिक प्रयासों को छोड़कर परमेश्वर के फैसले की पुष्टि करेंगे।

 

MAKE ME A CAPTIVE, LORD

Longings—For Freedom – 422

422

  • 1. Make me a captive, Lord,
    And then I shall be free;
    Force me to render up my sword,
    And I shall conq’ror be.
    I sink in life’s alarms
    When by myself I stand,
    Imprison me within Thine arms,
    And strong shall be my hand.
  • 2. My heart is weak and poor
    Until it master find:
    It has no spring of action sure,
    It varies with the wind;
    It cannot freely move
    Till Thou hast wrought its chain;
    Enslave it with Thy matchless love,
    And deathless it shall reign.
  • 3. My power is faint and low
    Till I have learned to serve:
    It wants the needed fire to glow,
    It wants the breeze to nerve;
    It cannot drive the world
    Until itself be driven;
    Its flag can only be unfurled
    When Thou shalt breathe from heaven.
  • 4. My will is not my own
    Till Thou hast made it Thine;
    If it would reach the monarch’s throne
    It must its crown resign;
    It only stands unbent
    Amid the clashing strife,
    When on Thy bosom it has leant,
    And found in Thee its life.