चरवाही

श्रृंखला 3

भरोसा और आज्ञाकारिता

पाठ चौदह – संसार से प्रेम न करना

1 यूहन्ना 2:15-16-संसार से प्रेम न करो, और न उन वस्तुओं से जो संसार में है। यदि कोई संसार से प्रेम करता है तो उसमें पिता का प्रेम नहीं है।

16 क्योंकि वह सब जो संसार में है, अर्थात् शरीर की  अभिलाषा, आँखों की लालसा और जीवन का अंहकार, पिता की ओर से नहीं परन्तु संसार की ओर से है।

संसार-परमेश्वर द्वारा रचित मनुष्य को

हड़पने के लिए शैतान द्वारा स्थापित है

संसार के लिए यूनानी शब्द, कोस्मोस, का एक से ज्यादा अर्थ है। यूहन्ना 1:29, 3:16, और रोमियों 5:12 में, यह शैतान के द्वारा उसकी दुष्ट सांसारिक प्रणाली के लिए घटकों के रूप में हड़पी और भ्रष्ट की गयी पतित मानवीय जाति को दर्शाता है। जैसे यूहन्ना 15ः19; 17:14; और याकूब 4:4 में है, 1 यूहन्ना 2:15 में, यह पृथ्वी को नहीं बल्कि एक क्रम, एक निर्धारित तरीका, एक सुव्यवस्थित प्रबंध, इस प्रकार एक क्रमित प्रणाली को दर्शाता है (जो परमेश्वर के विरोधी, शैतान द्वारा स्थापित है)। परमेश्वर ने अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए मनुष्य को इस पृथ्वी पर रहने के लिए रचा। परंतु उनके शत्रु, शैतान ने, परमेश्वर द्वारा रचित मनुष्य को हड़पने के लिए, धर्म, संस्कृति, शिक्षा, उद्योग, वाणिज्य, मनोरंजन से मनुष्यों को व्यवस्थित करके, मनुष्यों के साथ उनकी इच्छाओं, आनंद, अभिलाषा और यहां तक कि उनके भोजन, कपड़े, आवास, और परिवहन जैसे रहन सहन की जरूरतों को भोगने में भी मनुष्यों के पतित स्वभाव के माध्यम से इस धरती पर एक परमेश्वर विरोधी संसारिक प्रणाली को बनाया। इस तरह की सम्पूर्ण शैतान की प्रणाली दुष्ट जन में है (1 यूहन्ना 5:19)। ऐसे संसार से प्रेम न करना इस दुष्ट जन पर विजय प्राप्त करने का आधार है। इससे थोड़ा सा भी प्यार करना दुष्ट जन को हमें हराने और कब्जा करने के लिए आधार देना है।

संसार में वस्तुएं

देह की लालसा

1 यूहन्ना 2:16 कहता है कि वह सब जो संसार में है, अर्थात शरीर की अभिलाषा, आँखों की लालसा और जीवन का अंहकार, पिता की ओर से नहीं परंतु संसार की ओर से है। देह की लालसा और शरीर की भावुक इच्छा मुख्य रूप से देह से संबंधित है। क्योंकि भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष के फल ने मानव जाति में प्रवेश किया है, हमारी देह पतित और भ्रष्ट हो गयी है। आदम और हव्वा, अर्थात्  हमारे पहले माता पिता ने भले और बुरे के ज्ञान के वृृक्ष के फल में हिस्सा लिया। परिणामस्वरूप, एक दुष्ट तत्व मानव जाति में आया और अब यह तत्व हमारी भौतिक देह में है। अनुभव से हम जानते हैं कि एक दुष्ट शैतानी तत्व मानवीय स्वभाव में वास करता है।

आँखों की लालसा

आँखों की लालसा, आँखों के माध्यम से प्राण की भावुक इच्छा है। जब भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल मानवीय देह में आया, देह शरीर बन गया। क्योंकि देह प्राण को समेटता है, प्राण पतित देह के प्रभाव के तहत गिर गया। परिणामस्वरूप, हमारा प्राण भ्रष्ट हो गया। इस प्रकार, प्राण अर्थात हमारा मनोवैज्ञानिक अस्तित्व, पतित देह के प्रभाव के कारण लालसापूर्ण हो गया।

जीवन का अहंकार

जीवन का अहंकार भौतिक वस्तुओं का खाली घमंड, बढ़ावा, आत्मविश्वास, आश्वासन, और प्रदर्शन है।

केवल परमेश्वर को प्रेम करना

हमें संसार से छुडाने में योग्य होना

कई युवा लोग संसार को नहीं त्याग सकते। जब वे सभा में दूसरों के द्वारा उत्साहित किए जाते हैं, तो ऐसा लगता है कि वे अब फिर कभी संसार से प्रेम नहीं करेंगे। दूसरे समय ऐसा लगता है कि वे संसार से बिल्कुल अगल नहीं हो सकते। हमें अपने अंदर कुछ बेहतर होना चाहिए जो हमें संसार से प्रेम करने वाले हृदय को रोक सके। एक बार एक कला प्रर्दशन था। जबकि अधिकांश कार्यो को दूर से सराहा जा सकता था, उनमें से एक चित्र के अर्थ को समझने के लिए पास आकर इसका अध्ययन करना आवश्यक था। यह विशिष्ट चित्र, जिसमें एक बच्चे को शामिल किया गया था जो उसके आस पास फर्श पर रखे सभी सुन्दर खिलौनों से बेखबर था, एक मसीही के अनुभव को ठीक से दर्शाता है। बच्चे का ध्यान खिड़की पर केंद्रित था, और उसके पास ऊपर उठायी आँखे और फैलाए गए हाथ थे। दूर से यह दृष्य व्याकुल करने वाला था, फिर भी, ध्यान से देखने के बाद, खिड़की पर एक सुन्दर कबूतर दिखाई दिया। शीर्षक ने बताया कि इस छोटे कबूतर को पाने के लिए, बच्चे ने सब खिलौनों को फर्श पर छोड़ दिया। चित्र का सबक यह था कि कोई भी केवल सबसे श्रेष्ठ वस्तु के लिए दूसरी श्रेष्ठ वस्तु को त्याग सकता है। परमेश्वर कभी भी यह मांग नहीं करता कि हम किसी भी चीज को फेंक दें। वह हमारे सामने केवल वह रखता है जो बेहतर है। इसे प्राप्त करने के लिए, हम स्वाभाविक रूप से कई दूसरी वस्तुओं को छोड़ देगें।

एक युवा विश्वासी जो दो महीने तक मेरे साथ रहा था उसने मुझे बताया कि वह संसार को नहीं छोड़ सकता। उसने एक पुराने विशवासी से कहा आप त्याग सकते हैं क्योंकि आपने इस दुनिया के उन सब चीजों को चखा है जो संसार हमें देता है। लेकिन मैं नहीं कर सकता। इस युवा व्यक्ति को परमेश्वर में विश्वास करने के बारे में पता था, लेकिन परमेश्वर से प्रेम करने के बारे में नहीं। जबकि परमेश्वर में विश्वास करना हमें पाप से बचा सकता है, केवल परमेश्वर से प्रेम करना हमें संसार से छुडा सकता है। भाईयों और बहनों, हमें परमेश्वर के प्रेम को अपने अंदर प्रवेश करने की अनुमति देनी चाहिए। जब परमेश्वर का प्रेम प्रवेश करता है, तो संसार अपने आप चला जाता है।

प्रभु यीशु के

भावप्रवण प्रेमी होना

इफिसियों 6:24 कहता है, उन पर जो हमारे प्रभु यीशु से अभ्रष्टता में प्रेम रखते हैं, अनुग्रह होता रहे। यहां पर अनुग्रह किसके लिए दिया गया है? परमेश्वर इसे उन्हें देता हैं जो प्रभु से अभ्रष्टता में प्रेम करते हैं। अगर कोई आपसे पूछता है, क्याआप प्रभु में विश्वास करते हैं सम्पूर्ण संसार आश्चर्य करेगा कि क्या आप यह उत्तर देंगे,  मैं प्रभु से प्रेम करता हूँ।’’

1 पतरस 1:8 कहता है, तुमने तो उसे नहीं देखा, तो भी तुम उससे प्रेम करते हो। और यद्यपि तुम उसे अभी भी नहीं देखते, फिर भी उस पर विश्वास करते हो और ऐसे आनंद से आनंदित होते हो जो वर्णन से बाहर और महिमा से परिपूर्ण है। यह आयत कहती है कि हम उससे प्रेम करते हैं क्योंकि हम उस में विश्वास करते हैं। विश्वास द्वारा इस प्रेम से क्या उत्पन्न होता है? यह वह आनंद है जो वर्णन से बाहर और महिमा से परिपूर्ण है।

अंत में, भाईयों और बहनों, मैं इस बात को दोहराना चाहूंगा जो उस पुराने विश्वासी ने उस जाते हुए युवा व्यक्ति से कहाः ‘‘आप प्रभु यीशु के भावप्रवण प्रेमी बने!

 

गीत  # 1159

1 मैं यीशु तेरी सुन्दरता से कैद हूँ
मेरा हृदय खुला है विशाल,
अब मैं मुक्त सब धार्मिक बन्धनों से
सिर्फ मुझे बने रहना तुम में
जैसे मैं महिमा से निहारूं
भर हृदय दिव्य किरणों से
भर मुझे प्रभु मैं प्रार्थना करता
मिश्रित हो तेरी आत्मा मुझमें

2 चमकता आसमान मेरे ऊपर
मनुष्य पुत्र को मैं देखता
पवित्र जन की अग्नि से समाप्त
मेरा जीवन तेरे साथ चमकता
प्रभु मैंने देखा तुझे प्रताप में
निजि प्रेम और महिमा पर लज्जा,
मेरा हृदय प्रेम और स्तुति करता,
स्वाद चखा तेरे स्वादिष्ट नाम का।

3 प्रभु, मेरा संगमरमर का पात्र
तेरे प्रेम में, तोड़ती खुशी से,
प्रभु, मैं उण्डेलती तेरे सिर पर
प्रभु मैंने तेरे लिए रखा।
प्रभु मैंने त्यागा अपना सब कुछ
तुझे प्रेम करने से मैं सन्तुष्ट
प्रेम उमड़ता भीतरी भाग से मेरे
कीमती इत्र मैं करती अर्पण।

4 आओ प्रिय, सुगन्धित पहाड़ पर
कितना मैं देखने की चाह करूँ
पी, प्रभु हृदय के झरने से,
जब तक, तुझ में विश्राम करूँ
नहीं मैं अकेला आदर करूँ
पर, संतो के साथ उसकी दुल्हिन
जल्दी आ हमारा प्रेम राह देखे
प्रभु यीशु तू होगा सन्तुष्ट।