चरवाही

श्रृंखला 3

भरोसा और आज्ञाकारिता

पाठ बारह – विश्वास और आज्ञाकारिता

रो- 6:11-14-इसी प्रकार तुम भी अपने आप को पाप के लिए मृतक, परन्तु मसीह यीशु में परमेश्वर के लिए जीवित समझो।

12 इसलिए पाप को अपने विनाशी शरीर में प्रभुता न करने दो कि तुम उसकी लालसाओं को पूरा करो।

13 और न अपने शरीर के अंगों को अधर्म के हथियार बनाकर पाप को सौंपो; परन्तु अपने आप को मृतकों में से जीवित जानकर अपने अंगों को धार्मिकता के हथियार होने के लिए परमेश्वर को सौंप दो।

14तब पाप तुम पर प्रभुता करने नहीं पाएगा, क्योंकि तुम व्यवस्था के अधीन नहीं, परन्तु अनुग्रह के अधीन हो।

मसीही जीवन के केवल दो सिद्धांत हैं: पहला है विश्वास दूसरा है आज्ञाकारिता। सभी अच्छे फल इन दो सिद्धांतों का परिणाम है। प्रभु के साथ हमारी संगति में, हमें प्रतिदिन विश्वास और आज्ञाकारिता की आवश्यकता है।

वस्तुपरक और

व्यक्तिपरक सत्य

विश्वास और आज्ञाकारिता क्या है? सभी वस्तुपरक सत्य मसीह में हैं और पूरे किये गये हैं। सभी व्यक्तिपरक सत्य पवित्र आत्मा में हैं और उसके द्वारा पूरा किये जाएंगे। छुटकारा उन्नीस सौ साल पहले पूरा किया गया था, जबकि उद्धार उस दिन पूरा हुआ जब आप ने प्रभु में विश्वास किया। इसलिए, छुटकारा वस्तुपरक है; यह मसीह में पूरा किया गया था। उद्धार व्यक्तिपरक है_ यह वह है जो पवित्र आत्मा हम में पूरा करता है। इन दो बातों के क्रम को उलटा नहीं किया जा सकता है।

सभी वस्तुपरक कार्य अतीत में हैं_ वे पूरे, पूर्ण हैं और कुछ भी जोड़ नहीं सकते। सभी व्यक्तिपरक कार्य वर्तमान और भविष्य में पूरे किये जाते हैं। एक पूरा हो चुका है, दूसरा पूरा होने की प्रतीक्षा में है। एक तरफ, मृत्यु, दफनाना, पुनरूत्थान, और आरोहण पूरे किये गये हैं। कुछ वस्तुपरक ग्रहण करने और कुछ व्यक्तिपरक ग्रहण करने के लिए दो बिल्कुल विभिन्न सिद्धांतों की आवश्यकता होती है। चूंकि वस्तुपरक पूरा हो चुका है, हमें बस विश्वास करना है। चूंकि व्यक्तिपरक अब और भविष्य में पूरा होगा, हमें आज्ञा पालन करने की आवश्यकता है। अगर हम सिर्फ एक पक्ष पर ध्यान देते हैं, तो हम या तो सैद्धांतिक या तपस्वी बनने के द्वारा भटक जाएंगे। वस्तुपरक मृत्यु, पुनरूत्थान, और आरोहण हमारे विश्वास की मांग करता है। हालांकि, केवल विश्वास करना काफी नहीं है। दिन प्रतिदिन हमें आज्ञा पालन करने की भी आवश्यकता है। मसीह के साथ क्रूसीकृत होने के लिए आज्ञाकारिता की जरूरत है_ पुनरूत्थान की सामर्थ्य के लिए आज्ञाकारिता की जरूरत है_ और आरोहण के स्थान के लिए आज्ञाकारिता की जरूरत है।

उद्धारकर्ता में विश्वास करना

और पवित्र आत्मा का आज्ञा पालन करना

भाईयों और बहनों, हमें एक बाहरी उद्धारकर्ता और अंदरूनी उद्धारकर्ता की आवश्यकता है। हमें शरीर में देहधारित हुए वचन और पवित्र आत्मा में प्रकट वचन की आवश्यकता है। हमें गुलगुता के मसीह और आत्मा में मसीह की आवश्यकता है। उद्धाकर्ता जो बाहरी है हमारे विश्वास की मांग करता है, जबकि पवित्र आत्मा जो अंदर है हमारी आज्ञाकारिता की मांग करता है। विश्वास और आज्ञाकारिता को समझने के लिए अब मैं कुछ अनुभवों के बारे में बात करना चाहता हूँ।

विश्वास करना परमेश्वर के वचन को वास्तविकता में बदलना नहीं है। यह विश्वास करना है कि परमेश्वर के वचन वास्तविकता हैं। परमेश्वर का अनुग्रह तीन चीजों को शामिल करता हैः वादा, तथ्य, और वाचा। वादा कुछ ऐसा है जिसे पूरा किया जाएगा। तथ्य वो है जो पूरा किया गया है। सभी वस्तुपरक सत्य पूरे किये गये हैं और सच्चे हैं। हमें परमेश्वर से केवल यह कहने की जरूरत है, आपका वचन कहता है कि मैं मर चुका हूँ, पुनरूत्थित हो चुका हूँ, और आरोहित हो चुका हूँ। इसलिए, मैं भी कहता हूँ कि मैं मर चुका हूँ, पुनरूत्थित हो चुका हूँ, और आरोहित हुआ हूँ। सचमुच, यही तरीका है कि हम अटल रह सकते हैं। परमेश्वर ने कहा है, और ऐसा ही है।

हमें अपनी परिस्थितियों, भावनाओं, परीक्षणों, पापों, लालसाओं और अपने अशुद्ध विचारों से ज्यादा परमेश्वर के वचन में विश्वास करना चाहिए। अगर हम यह कर सकते हैं, तो हम निश्चित रूप से अलग होंगे। यह काफी नहीं है कि हम सुने। हमारे पास विश्वास होना चाहिए। हम देख सकें कि परमेश्वर ने मसीह में सब कुछ पूरा किया है।

हालांकि, हमें जानना होगा कि केवल ऐसे विश्वास करना पर्याप्त नहीं है। एक बात जो इसके पीछे आनी चाहिए आज्ञाकारिता है। एक ओर, हमें विश्वास करना चाहिए। दूसरी ओर, हमें आज्ञा माननी चाहिए। हमारी स्वयं की इच्छा नियंत्रित होनी चाहिए, और हमें प्रत्येक अंग को परमेश्वर के प्रति प्रस्तुत करना चाहिए। भाईयों और बहनों हमारे पास जीवित विश्वास होने के बाद, दिन प्रतिदिन हमें परमेश्वर की आज्ञा माननी सीखना होगा।

ऐसा एक समय होना चाहिए जब हम परमेश्वर से कहेंगे,अब से मैं आपको अपना समय, अपना मन, अपना पैसा, अपना परिवार, और अपना सब कुछ अर्पण करता हूँ। परमेश्वर एक विशिष्ट तरीके से सभी को छूता है। कुछ लोगों के साथ, परमेश्वर एक बिन्दु पर छूता है_ दूसरों के साथ, परमेश्वर उन्हें दूसरे बिंदु पर छूता है। कई बार परमेश्वर की मांग कठोर और गंभीर लगती है। लेकिन परमेश्वर हम से जो भी मांगता है, हमें आज्ञा माननी चाहिए। परमेश्वर चाहता है कि हम प्रमाणित करें कि हम उसकी आज्ञा मानेंगे। उसके लिए इसहाक से ज्यादा कीमती कुछ भी नहीं है। यह सिर्फ मौखिक रूप से कहना पर्याप्त नहीं है, मैं एक बलिदान के रूप में इसहाक को प्रस्तुत करता हूँ।य् हमें वास्तविकता में बलिदान के रूप में इसहाक को प्रस्तुत करना चाहिए। यदि हम ऐसा करते हैं, तो हम उस मेमने को देखेंगे जो परमेश्वर ने तैयार किया है। जब तक हम पूरी तरह से आज्ञा नहीं मानते परमेश्वर संतुष्ट नहीं है। हमें परमेश्वर के साथ विशेष व्यवहार को अनुभव करना चाहिए।

विश्वास के बिना

आज्ञाकारिता शक्तिहीन है_

आज्ञाकारिता के बिना

विश्वास कल्पनामय है

हमें विश्वास करना चाहिए और आज्ञा भी माननी चाहिए। हमें न केवल एक बार आज्ञा मानने की जरूरत है, बल्कि हमें लगातार आज्ञा माननी चाहिए। अन्यथा, हम असंतुलित होंगे। बिना विश्वास के आज्ञाकारिता शक्तिहीन है। आज्ञाकारिता के बिना विश्वास कल्पनामय है। विश्वास के बिना आज्ञाकारी होना बहुत ही क”दायक है। कृप्या हमारे जीने के लिए बाइबल संबंधित सिद्धांतों को याद रखें: विश्वास करना और आज्ञा मानना।

TRUST AND OBEY

Experience of Christ— Obeying Him – 582

  • 1. When we walk with the Lord
    In the light of His Word,
    What a glory He sheds on our way;
    While we do His good will,
    He abides with us still,
    And with all who will trust and obey.

Trust and obey,
For there’s no other way
To be happy in Jesus,
But to trust and obey.

  • 2. Not a shadow can rise,
    Not a cloud in the skies,
    But His smile quickly drives it away;
    Not a doubt or a fear,
    Not a sigh or a tear,
    Can abide while we trust and obey.
  • 3. Not a burden we bear,
    Not a sorrow we share,
    But our toil He doth richly repay;
    Not grief or a loss,
    Not a frown or a cross,
    But is blest if we trust and obey.
  • 4. But we never can prove
    The delights of His love,
    Until all on the altar we lay;
    For the favor He shows,
    And the joy He bestows,
    Are for them who will trust and obey.
  • 5. Then in fellowship sweet
    We will sit at His feet,
    Or we’ll walk by His side in the way;
    What He says we will do;
    Where He sends, we will go,
    Never fear, only trust and obey.