चरवाही

श्रृंखला 3

भरोसा और आज्ञाकारिता

पाठ दस – शैतान का विरोध करना

1 पत- 5:8-9-संयमी और सचेत रहो। तुम्हारा शत्रु शैतान गर्जने वाले सिंह की भांति इस ताक में रहता है कि किसको फाड़ खाए। विश्वास में दृढ़ रहकर उसका विरोध करो, और यह जान लो कि तुम्हारे भाई जो संसार में हैं इसी प्रकार की यातना सह रहे हैं।

पहला पतरस 5:8-9 कहता है, ‘‘ संयमी और सचेत रहो। तुम्हारा शत्रु शैतान गर्जने वाले सिंह की भांति इस ताक में रहता है कि किसको फाड़ खाए। विश्वास में दृढ़ रहकर उसका विरोध करो।’’ परमेश्वर का वचन हमें स्प” रूप से दिखाता है कि शैतान का विरोध करने का तरीका विश्वास से है।

विश्वास करना कि

प्रभु का प्रकटीकरण

शैतान के कार्य को

नष्ट करना है

परमेश्वर के पुत्र धरती पर आये थे; वह प्रकट हुए थे। जब वह पृथ्वी पर थे, जहां भी वह गये, वहां उन्होंने शैतान के कार्य को नष्ट कर दिया। अक्सर शैतान का काम स्पष्ट नहीं था_ वह प्राकृतिक घटनाओं के पीछे छिपा था। हालांकि, प्रभु ने हर बार उसे डांटां। यह स्पष्ट है कि जब उसने पतरस के बोलने को डांटा (मत्ती- 16:22-23), जब पतरस की सास के बुखार को डांटा (लूका 4:39) और जब उसने हवाओं और लहरों को डांटा, तब वह शैतान को ड़ाट रहा थे। यद्यपि शैतान कई प्राकृतिक घटनाओं के पीछे छिपा था, प्रभु ने उसे डांटा। जहां भी प्रभु यीशु गया, शैतान की शक्ति बिखर गई। यही कारण है कि उसने कहा, ‘‘परन्तु यदि मैं परमेश्वर की आत्मा के द्वारा दुष्टात्माओं को निकालता हूं, तो परमेश्वर का राज्य तुम्हारे मध्य आ पहुंचा है’’ (मत्ती- 12:28)। दूसरे शब्दों में, जहां भी प्रभु गया, शैतान को बाहर निकाल दिया गया था, और परमेश्वर का राज्य प्रकट हुआ था। जहां प्रभु था, वहां शैतान नहीं रह सका। इसलिए उसने यह कहा कि वह प्रकट हुआ कि वह शैतान के कार्य को नष्ट करे (1 यूहन्ना 3:8)।

हमें यह भी विश्वास करना चाहिए कि धरती पर खुद को प्रकट करने में, प्रभु ने न केवल शैतान के कार्यों को नष्ट कर दिया, बल्कि अपने चेलों को दुष्टात्माओं को उनके नाम में निकालने का भी अधिकार दिया। प्रभु ने कहा, ‘‘देखो, मैंने तुम्हें सर्पों और बिच्छुओं को कुचलने तथा शत्रु की सारी सामर्थ्य पर अधिकार दिया है’’ (लूका 10:19)। उसने कलीसिया को अपना नाम दिया ताकि उसके आरोहण के बाद उसकी कलीसिया पृथ्वी पर उसका काम जारी रख सके। प्रभु ने दुष्टात्माओं को बाहर निकालने के लिए पृथ्वी पर अपने अधिकार का इस्तेमाल किया। उसने कलीसिया को भी यह अधिकार दिया।

हमें इस बात के बीच अंतर करना चाहिए कि शैतान के पास क्या है और हमारे पास क्या है। शैतान के पास शक्ति है। हमारे पास अधिकार है। शैतान के पास केवल शक्ति ही है। लेकिन प्रभु यीशु ने हमें अधिकार दिया है, जो शैतान की सभी शक्तियों पर जय पा सकता है। शक्ति, अधिकार पर प्रबल नहीं हो सकती है। परमेश्वर ने हमें अधिकार दिया है, और शैतान निश्चित रूप से विफल हो जाएगा।

विश्वास करना कि प्रभु की मृत्यु ने

शैतान को नष्ट कर दिया है

क्रूस पर प्रभु की मृत्यु न केवल हमारे पापों को बल्कि पूरी पुरानी सृष्टि को भी उठा लेती है। हमारा पुराना मनुष्य उनके साथ, क्रूस पर चढ़ाया गया है। यद्यपि शैतान मृत्यु द्वारा राज्य करता है, जितना अधिक वह मृत्यु द्वारा राज्य करता है, उतना बुरा हो जाता है, क्याोंकि उसका राज्य मृत्यु पर रुक जाता है। क्योंकि हम पहले से ही मर चुके हैं, मृत्यु अब हमें डस नहीं सकती। उसका हम पर और कोई शासन नहीं है।

मसीह के साथ हमारा क्रूस पर चढ़ाया जाना एक पूरा किया गया तथ्य है; यह परमेश्वर का कार्य करना है। बाइबल यह नहीं कहती कि प्रभु के साथ हमारी मृत्यु भविष्य के लिए कुछ है। यह कोई वो अनुभव नहीं है जिसे एक दिन पाने के लिए उम्मीद रखते हैं। बाइबल हमें यह नहीं बताती है कि हमें मृत्यु का पीछा करना है। यह हमें दिखाती है कि हम पहले से ही मर चुके हैं। एक व्यक्ति मृत नहीं है, अगर वह अभी भी मृत्यु का पीछा कर रहा है। हालांकि, मसीह के साथ हमारी मृत्यु परमेश्वर से एक उपहार है जैसे कि हमारे लिए उसकी मृत्यु एक उपहार है। यदि कोई व्यक्ति अभी भी क्रूस पर चढ़ने का पीछा कर रहा है, तो वह शारीरिक आधार पर खड़ा है, और शैतान को शारीरिक आधार पर खडे़ रहने वालों पर पूरा नियंत्रण है। हमें प्रभु की मृत्यु में विश्वास करना चाहिए। हमें अपनी मृत्यु पर भी विश्वास करना चाहिए। जैसे कि हम हमारे लिए प्रभु की मृत्यु पर विश्वास करते हैं, वैसे ही हमें उसमें हमारी मृत्यु में भी विश्वास करना चाहिए। दोनों विश्वास के कार्य हैं, और मानव खोज से कुछ लेना देना नहीं है। जैसे ही हम इन तथ्यों को समझने का प्रयास करते हैं, हम खुद को शैतान के हमले के लिए बेनकाब करते हैं। हमें इन पूर्ण तथ्यों को पकड़ना होगा और घोषित करना होगाः ‘‘प्रभु की स्तुति और धन्यवाद करो, मैं पहले से ही मर चुका हूं।’’

विश्वास करना कि

प्रभु के पुनरुत्थान ने

शैतान को शर्मिंदा किया है

कुलुस्सियों 2:12 कहता है, ‘‘और बपतिस्मा में तुम उसके साथ गाड़े गए और उसी के साथ जिलाए भी गए। यह उस विश्वास के द्वारा हुआ जो परमेश्वर के सामर्थ्य पर है जिसने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया’’—और आयत 15 कहती है कि प्रभु यीशु ने प्रधानों और अधिकारियों को निरस्त्र कर दिया और ‘‘उन पर विजय प्राप्त करके उनका खुल्लम-खुल्ला तमाशा बनाया।’’ आयत 20 कहती है, ‘‘यदि आप मसीह के साथ मर चुके हो,’’ और 3:1 कहती है, ‘‘इसलिए यदि आप तुम मसीह के साथ जीवित किए गए।’’ ये आयतें पुनरुत्थान से शुरू होती हैं और पुनरुत्थान के साथ समाप्त होती हैं, और बीच की आयत क्रूस में विजय की बात करती है। हम पुनरुत्थान के स्थान में खड़े हैं, और हम क्रूस में विजय प्राप्त करते हैं।

हम शैतान का विरोध कर सकते हैं क्योंकि हमारा जीवन पुनरुत्थान का जीवन है। शैतान के साथ इस जीवन का कोई लेना देना नहीं है। हमारा जीवन परमेश्वर के जीवन से निकलता है; यह एक वो जीवन है जो मृत्यु से बाहर आता है। शैतान की शक्ति सिर्फ मृत्यु तक ही जाती है। जो भी यह हमारे साथ करता है, वह मृत्यु के इस पक्ष तक सीमित है। लेकिन हमारा जीवन मृत्यु से बाहर आ चुका है। हमारे पास एक ऐसा जीवन है जो वह छू नहीं सकता। हम पुनरुत्थान के आधार पर खडे़ हैं और हम क्रूस के माध्यम से विजय में पीछे देखते हैं।

हम आशा के आधार पर शैतान से निपट नहीं सकते। हम केवल पुनरुत्थान के आधार, प्रभु के आधार पर, खड़े हो सकते हैं। यह एक बहुत ही बुनियादी सिद्धांत है।

विश्वास करना कि

प्रभु का स्वर्गारोहण

शैतान की शक्ति के बहुत ऊपर है

इफिसियों 1:20-22 कहता है, ‘‘जिसे उसने मसीह में पूरा किया जब उसने उसे मरे हुओं में से जिलाकर अपनी दाहिनी ओर स्वर्गीय स्थानों में, अर्थात् सब—के ऊपर, जो न केवल इस युग में, परन्तु आने वाले युग में भी लिया जाएगा, बैठाया। उसने सब कुछ उसके पैरों तले कर दिया और उसे सब वस्तुओं पर शिरोमणि ठहराकर कलीसिया को दे दिया।’’ इसका मतलब यह है कि प्रभु यीशु स्वर्गीय स्थानों में पहले से ही बैठा है और शैतान की सारी शक्ति के ऊपर है।

इफिसियों 2:6 कहता है, ‘‘और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया और स्वर्गीय स्थानों में बैठाया।’’ यह हमारा स्थान है, एक मसीही का स्थान। प्रभु यीशु पुनरुत्थित हुआ है_ वह स्वर्गीय स्थानों में बैठकर शैतान की सारी शक्ति से ऊपर है। हम एक साथ मसीह के साथ उठाए गए हैं और शैतान की सभी शक्तियों से बहुत ऊपर, स्वर्गीय स्थानों में एक साथ उसके साथ बैठे है।

इफिसियों 6:11 और 13 कहता है, ‘‘परमेश्वर के सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्र धारण करो जिस से तुम शैतान की युक्तियों का दृृढ़तापूर्वक सामना कर सको और सब कुछ पूरा करके स्थिर रह सको।’’ अध्याय 2 हमें दिखाता है कि हम एक साथ स्वर्गीय स्थानों में प्रभु के साथ बैठे हैं। अध्याय 6 हमें बताता है कि हमें दृढ़ता से खड़े होने की आवश्यकता है। अध्याय 2 कहता है कि हमें बैठना है, जबकि अध्याय 6 कहता है कि हमें खड़े होना चाहिए। बैठने का क्या मतलब है? बैठने का मतलब आराम करना है। इसका मतलब है कि प्रभु ने विजय प्राप्त की है और अब हम उनकी जीत में आराम कर सकते हैं। यही प्रभु की विजय पर निर्भर रहने का मतलब है। खड़े होने का क्या मतलब है? खड़े होने का मतलब यह है कि आत्मिक युद्ध हमले का मामला नहीं है बल्कि प्रतिरक्षा का है। खडा़ होना हमला करना नहीं है_ इसका मतलब प्रतिरक्षा है। क्योंकि प्रभु पूरी तरह से जयवंत हुआ है, हमें फिर से हमला करने की जरूरत नहीं है। क्रूस की जीत पूरी हो गई है और हमला करने की कोई और जरूरत नहीं है।

मसीही युद्ध हार से बचाव करने की बात है_ यह जीत के लिए लड़ने की बात नहीं है। हम पहले से ही जयवंत हैं। हम जीत के स्थान में से लड़ते हैं और हम अपनी जीत बनाए रखने के लिए लड़ते हैं। हम जीत जीतने के लिए नहीं लड़ रहे हैं। हम विजय में से लड़ते हैं_ विजय कुछ ऐसी चीज है जो हमारे हाथों में है। इफिसियो में बताया गया युद्ध जयवंतों का युद्ध है। हम लडा़ई के द्वारा जयवंत नहीं बनते। हमें इन दोनों चीजो के बीच के अंतर करने की आवश्यकता है।

सभी परिस्थितियों में

शैतान को यह कहना सीखें,

‘मुझसे दूर हो जाओ!’’

हम प्रभु यीशु के काम के साथ शैतान के काम का विरोध करते हैं। हम प्रभु के प्रकटीकरण, मृत्यु, पुनरुत्थान और अरोहण के द्वारा शैतान का विरोध करते हैं। आज हम प्रभु के पूरे किये गये काम पर खड़े हैं। इस बात के लिए वास्तव में प्रकाशन की आवश्यकता है। हमें प्रभु के प्रकटीकरण को देखने की जरूरत है। हमें उनकी मृत्यु, पुनरुत्थान और आरोहण को देखने की जरूरत है। हमें इन सभी चीजों को जानना होगा। हमें सभी परिस्थितियों में शैतान से कहना चाहिए, ‘‘मुझसे दूर हो जाओ!’’ परमेश्वर हम पर दयालु हो ताकि हम सभी को इस तरह का विश्वास हो सकें। हम इन चार बातों पर विश्वास कर सके जो प्रभु हमारे लिए पूरी कर चुका है, और शैतान का विरोध करने और उसके द्वारा हम पर किये गये कार्यो को इनकार करने के लिए हम अपने दृढ़ विश्वास का अभ्यास करें।

 

THE NAME OF JESUS IS OUR STAND

Spiritual Warfare— With God’s Armor – 887

1. The name of Jesus is our stand,
It is our victory;
Not on ourselves do we rely,
But, mighty Lord, on Thee.
Our weapons are not arms of flesh,
But ours the Spirit’s sword,
And God’s whole armor putting on,
We battle in the Lord.

2. Behold, the foe doth meet and plot,
Stand firm in one accord!
Though war be fierce and darkness thick,
Resist him in the Lord!
If one thru fear should backward turn,
He undermines the rest.
Oh, do not let your brothers down,
Nor by you be distressed.

3. The devil knows his time is short,
He is the more enraged,
And by his wiles would weaken us
Before the battle’s waged.
The trials now more numerous are,
The suff’ring e’en more sore,
The force of hell opposing us
More dreadful than before.

4. What should our posture be today
In such a desperate hour?
Should we our ease and pleasure seek
And let the foe devour?
Or with increasing conflict strong,
Courageous to endure?
‘Tis here that life or death is won!
Who will God’s praise secure?

5. For Christ the Lord we then would stand,
He is the Conqueror!
For Him we would endure the pain
Until the fight is o’er.
The hour of triumph soon we’ll see-
The Lord will come again;
If now we suffer for His sake,
Then we with Him shall reign.