चरवाही

श्रृंखला 1

उच्च सुसमाचार

पाठ पाँच – परमेश्वर है

उत- 1:1-आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।

रो- 1:20-क्योंकि जगत कि सृष्टि से ही परमेश्वर के अदृश्य गुण, अनन्त सामर्थ्य और परमेश्वरत्व उसकी रचना के द्वारा समझे जाकर स्पष्ट दिखाई देते हैं, इसलिए उनके पास कोई बहाना नहीं।

बाइबल संसार में एकमात्र पुस्तक है। बाइबल में शामिल पहला विषय परमेश्वर है। परमेश्वर बाइबल का मुख्य विषय है। बाइबल की पहली आयत कहती है, आदि में परमेश्वर ने आकाश ओर पृथ्वी की सृष्टि की। वैज्ञानिकों ने लंबे समय तक हमारे भौतिक ब्रह्माण्ड का पता लगाया है। अपने अध्ययन के माध्यम से उन्होंने पता लगाया है कि हमारा ब्रह्माण्ड एक सुव्यवस्थित प्रणाली है जो पूरी तरह से रूपांकित है। परमेश्वर के बारे में बाइबल क्या कहती है, इस पर विचार करने से पहले, हम पहले विचार करे कि ब्रह्माण्ड परमेश्वर के बारे में क्या कहता है।

परमेश्वर ब्रह्माण्ड के

माध्यम से घोषित है

रात को अपने ऊपर आकाश को देखो। खगोलविदों का अनुमान है कि हमारी आकाश गंगा में एक सौ अरब से अधिक सितारे है, और ब्रह्माण्ड में अरबों आकाशगंगाएं हो सकती हैं। प्रत्येक तारा जो हम देखते हैं, ब्रह्माण्ड में एक सौर मंडल का प्रतिनिधित्व करता है। हमारे अपने सौर मंडल के केंद्र के रूप में सूर्य है, और इसके पास सुस्पष्टता में घड़ी के समान घूमते नौ ग्रह हैं। पृथ्वी ग्रहों में से एक के रूप में, अंतरिक्ष में 67,000 मील प्रति घंटा की गति से और सूर्य के चक्कर लगाने में 365 दिन लेती है। यह तथ्य आश्चर्यजनक होता है जब कोई विचार करता है कि इस गति की एक हजारवां पर यात्रा करने वाली एक रेलगाड़ी कई बार अपने कार्यक्रम में विफल होती है।

इतिहास के दौरान कुछ लोगों ने कभी-कभी परमेश्वर के विचार का विरोध किया है। तथ्य कि उन्होंने इसका विरोध किया है इसका मतलब यह है कि परमेश्वर है। तथ्य यह है कि कुछ विद्रोही पुत्र अपने पिता को अस्वीकार करते हैं इसका अर्थ है कि उनके पास एक पिता है। तथ्य यह है कि कुछ लोग परिवार को तोड़ने का प्रयास करते हैं, इसका अर्थ है कि परिवार एक वास्तविकता है। निष्कर्ष का नियम हमें बताता है कि किसी भी चीज का विरोध पूर्व निर्धारित करता है कि यह बात खुद मौजूद है। इतिहास में यह साबित हो चुका है कि परमेश्वर के विचार का विरोध करना व्यर्थ है, कोई फर्क नहीं पड़ता कि संस्कृतियों और मानवीय सरकारों में क्या बदलाव होता है, परंतु परमेश्वर में विश्वास हमेशा अंत में प्रबल रहता है।

आइए देखें कि ब्रह्माण्ड हमें परमेश्वर के बारे में क्या बताता है। बाइबल हमें बाताती है कि परमेश्वर की अनन्त शक्ति और दिव्य विशेषताओं को सृष्टि के माध्यम से देखा जा सकता है (रो- 1:20)। जैसे एक चित्र चित्रकार की विशेषताओं को प्रदर्शित करता है, इसी तरह रचयिता के गुण उसके रचित ब्रह्माण्ड के माध्यम से प्रकट होते हैं।

मानवजाति द्वारा परमेश्वर अभिव्यक्त है

मानव जाति का अस्तित्व परमेश्वर के अस्तित्व के बारे में बोलता है। मानव शरीर एक वास्तविक चमत्कार है। यद्यपि आधुनिक औषधियों ने मानव अंगों और जोड़ों की नकल करने व बदलने के लिए कई मशीनों का आविष्कार किया है, लेकिन कोई भी मशीन मानव अंगों की निपुणता और प्रभावकारिता के करीब नहीं आ सकी। मानवीय हृदय एक मिनट में 72 बार या एक साल में 40 मिलियन बार धड़कता है, चाहे कोई सोया हो या जागा हो। हर दिन एक वयस्क हृदय रक्त वाहिकाओं के 100,000 मील की दूरी के माध्यम से रक्त को पंप करता है, जो कि चार बार दुनिया में चारों ओर यात्र करने के लिए पर्याप्त है। यह दिन-प्रतिदिन 2000 गैलन टंकी को भरने के लिए पर्याप्त रक्त पंप करता है। मनुष्य के अंदर इतने अदभुत अंग को कौन डिजाइन कर सकता था? अगर किसी को अपने शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं को संचय करना होता, तो ऊंचाई पांच हजार बार एवरेस्ट पर्वत से अधिक हो जाती! नाक एक मिनट में 17 बार हवा अंदर लेती है। हर दिन इसे लगभग 14,000 लीटर हवा की प्रक्रिया करनी होती है। हवा के तापमान को समायोजित करने के अलावा, इसकी नमी को भी कम करना और उसकी धूल को निथारना पड़ता है। एक मानव निर्मित मशीन जो इस सभी तीन कार्यों को संभालती है, एक सौ पाउंड वजन की हो सकती है। क्या होगा अगर हमारे चेहरे पर इस तरह की मानव निर्मित नाक स्थापित की जाए! ये मानव शरीर के चमत्कारों के कुछ उदाहरण हैं। अगर हम एक शीशे के आगे खड़े होते हैं, तो हम रोक नहीं सकते लेकिन बाइबल में भजनकार ने जो कहा है उससे सहमत हो सकते हैं: मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिए कि मैं कमाल और अदभुत रीति से रचा गया हूँ। तेरे काम तो आश्चर्य के हैं, और मैं इसे भली-भाँति जानता हूँ (भज. 139:14)।

पवित्रशास्त्र में प्रकट परमेश्वर

इस्रएल के राष्ट्र को पुनःस्थापित किया जाएगा और यरूशलेम नगर को यहूदियों को वापस कर दिया जाएगा। हम इसे 1948 में इस्राएल के राष्ट्र की पुनःस्थापना और 1967 में यरूशलेम की यहूदियों के लिए वापसी के साथ अपने समय में देख सकते हैं। मध्य पूर्व में उस छोटे राष्ट्र की स्थापना इतिहास में परमेश्वर के कार्य का जीवित प्रमाण है।

मनुष्य के लिए परमेश्वर की योजना

परमेश्वर का इरादा है कि हम उन्हें जाने। अपने आप को छिपाने का परमेश्वर का कोई इरादा नहीं है। उसकी इच्छा है कि मनुष्य उसे पहले सृष्टिकर्ता के रूप में जाने, और उसके बाद अपने परमेश्वर और पिता के रूप में जाने।

परमेश्वर चाहता है कि मनुष्य उसकी आराधना करें। यूहन्ना 4:23 हमें बताता है कि परमेश्वर सच्चे आराधकों को ढूढंता है, जो आत्मा और सच्चाई से उसकी आराधना करें। उसका यह इरादा नहीं है कि मनुष्य उन वस्तुओं की आराधना करें जिसे उन्होंने रचा है। परमेश्वर की सच्ची आराधना अपनी आत्मा के साथ आराधना करना है। अतीत में, मनुष्य ने कई मूर्तियों को स्थापित किया और परमेश्वर के बदले इन चीजों की आराधना की। लेकिन पुराने नियम और नये नियम दोनों में, परमेश्वर सभी प्रकार की मूर्ति पूजा को रोकता है (निर्ग. 20:4-5; 1 कुर. 10:14; 1 थिस- 1:9) । वह एकमात्र परमेश्वर है। कोई भी अन्य वस्तु हमारी आराधना की मांग करने के योग्य नहीं है।

परमेश्वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसकी आराधना करने वाले आत्मा और सच्चाई से आराधना करें (यूहन्ना 4:24)। यदि एक व्यक्ति रेडियों की तरंगों को प्राप्त करना चाहता है, तो उसे एक रेडियों रिसीवर का उपयोग करना चाहिए। यदि एक व्यक्ति टेलीफोन काल को प्राप्त करना चाहता है, तो उसे एक टेलीफोन रिसीवर को लेना चाहिए। उसी तरह, यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर की आराधना करना चाहता है और उनसे संपर्क करना चाहता है, तो उसे आत्मा का इस्तेमाल करना चाहिए। कोई अपने कानों से रंग नहीं सुन सकता है, न ही अपनी आंखों से संगीत देख सकता है। हमें सही वस्तु के लिए सही अंग की आवश्यकता है। परमेश्वर आत्मा है और यह कोई वस्तु नहीं है। यही कारण है कि हमें किसी भी वस्तु के साथ उनकी आराधना नहीं करनी चाहिए लेकिन अपनी आत्मा के साथ उनकी आराधना करनी चाहिए।

अपनी आत्मा का उपयोग करने का तरीका प्रभु के नाम को पुकारने के द्वारा प्रार्थना करना है (रो. 10:12-13) । यदि हम अपना मुंह और हृदय खोलेंगे और परमेश्वर से प्रार्थना करेंगे, तो हमारी आत्मा उसे छूएगी, और परमेश्वर हमारे लिए वास्तविक होगा।

मनुष्य के लिए परमेश्वर की अंतिम योजना यह है कि मनुष्य परमेश्वर को अभिव्यक्त करेगा। परमेश्वर को अभिव्यक्त करने का तरीका परमेश्वर से भरना है। यदि हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं और उसे ग्रहण करते हैं, तो परमेश्वर हमारे भीतर आएगा और हमें भर देगा। अब वह हमारे बाहर एक वस्तुपरक परमेश्वर नहीं होगा, बल्कि हमारे भीतर एक व्यक्तिपरक परमेश्वर होगा। वह हमें अपने आप से भर देगा और हमारे पूरे अस्तित्व को बदल देगा। मसीही होना केवल कुछ धर्मों में विश्वास करना या कुछ शिक्षाओं को सीखना नहीं है। यह परमेश्वर को जानना है, उनकी आराधना करना है, और उनके साथ भरने के द्वारा उनको अभिव्यक्त करना है।

मेरे पिता परमेश्वर,

जब तेरी विशाल सृष्टि पर

पिता की आराधना- उसकी महानता

17

  • खुदा पिता जब देखूं सृष्टि विशाल
    स्वर्ग और पृथ्वी का मैं निहारूं
    बड़ी छोटी चीज़ें जो हैं बेशुमार
    प्रकट करते अवर्णीत सामर्थ तेरी;

तो मेरा जी तेरी प्रशंसा में गाए
कितना अद्भुत कितना महान
और मैं गाऊँ अनन्त तक यही
कितना अद्भुत कितना महान

  • जब उद्धार के अनुग्रह को आनंद करूं
    और ध्यान करूं कैसे पुत्र भेजा
    जो मरा कि हम नई सृष्टि बनें
    कि जीवन विस्तार में प्रकट करें;
  • जब कलीसिया, सहभागिता में देखूं
    लाखों जन तेरा जीवन है रखते
    कैसे निवास स्थान में बनते जाते
    रखते तुझको, पूर्णता प्रकट करते
  • उम्मीद यही कि पूर्णता के युग में
    नये यरूशलेम में भाग बनूं
    स्वर्गो और पृथ्वी के नये होने से
    तू सब में प्रकट हो जाए;