चरवाही

श्रृंखला 1

उच्च सुसमाचार

पाठ दस – मसीह का उद्धार

यूहन्ना 3:16 क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, कि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।

रो- 5:10-क्योंकि जब हम शत्रु ही थे, हमारा मेल परमेश्वर के साथ उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हुआ, तो उससे बढ़कर, अब मेल हो जाने पर हम उसके जीवन के द्वारा उद्धार क्यों न पाएंगे!

इसलिए, मनुष्य के सृजन में उन्होंने मनुष्य को अपने स्वरूप में और अपनी समानता के अनुसार बनाया ताकि मनुष्य उन्हें समाने के लिए एक पात्र बने—सृजे गये आदम के पास परमेश्वर का स्वरूप और समानता थी। इसलिए, रचना के समय पर, परमेश्वर-मनुष्य से संबंधित विचार पहले से ही वहां था।

नए नियम में परमेश्वर मनुष्य को जीवन के रूप में स्वयं के साथ नया जन्म देने के लिए आये। युहन्ना 1:12 कहता हैं, ‘‘परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास करते हैं।’’ जब हम परमेश्वर की सन्तान बन जाते हैं, तो हमारे पास परमेश्वर का जीवन और स्वभाव हैं। जो पैदा हुआ है उसे पैदा करने वाले के समान होना चाहिए। ऐसी कोई चीज नहीं है कि गाय गदहे को जन्म देती है या बकरी कुत्ते को जन्म देती है। परमेश्वर के हृदय का इरादा हमें उसके समान बनाना है कि हम पूरी तरह से उसकी तरह हों न केवल उनके आंतरिक स्वरूप और बाहरी समानता में, बल्कि उनके जीवन और स्वभाव में भी।

परमेश्वर ने जगत के लोगों से इतना प्रेम किया कि वह मनुष्य को अपने जीवन के द्वारा उनके समान बनाना चाहता था।फिर भी, मनुष्य शैतान द्वारा बहकाया गया और पाप करके पतित हो गया;  इस प्रकार, मनुष्य ने परमेश्वर की धर्मिता का उल्लंघन किया—इसलिए, हम यहाँ दो चीजें देखते हैंः परमेश्वर का प्रेम ओर परमेश्वर की धार्मिकता। अपने प्रेम के अनुसार, परमेश्वर मनुष्य को अपने समान बनाना चाहता है। हालांकि, मनुष्य ने पाप किया और परमेश्वर की धार्मिकता का उल्लंघन किया।

इसलिए, अपने जीवन के अनुसार जैविक रूप से जो कुछ परमेश्वर मनुष्य के लिए करना चाहता है यह माँग करता है कि परमेश्वर न्यायिक रूप से अपनी धर्मी आवश्यकता के अनुसार पतित पापियों को वापस छुडाए। परमेश्वर की धार्मिकता मांग करती है कि परमेश्वर पापियों को छुड़ाए। यह ऐसा है जैसे परमेश्वर की धार्मिकता परमेश्वर से कहती है, हे परमेश्वर, यह अच्छा है कि आप उनसे प्रेम करते हैं, और यह भी अच्छा है कि आप जैविक रूप से उनमें कई चीजों को पूरी करना चाहते हैं। लेकिन आपको  अपनी धार्मिक व्यवस्था की मांग को संतुष्ट करने के लिए उन्हें पहले छुड़ाना होगा। यह छुटकारा है। न्यायिक रूप से पापियों को छुड़ाने के द्वारा परमेश्वर अपने जीवन के माध्यम से जैविक रूप से अपने हृदय की इच्छा के अनुसार स्वत्रंत रूप से जो भी वह चाहता है कर सकता है। इसलिए, परमेश्वर के सम्पूर्ण उद्धार में न्यायिक रूप से आवश्यक छुटकारा और जैविक रूप से परमेश्वर के जीवन द्वारा पूरा किया गया उद्धार शामिल है।

प्रक्रिया के रूप में

परमेश्वर की न्यायिक आवश्यकता की पूर्ति

और उद्देश्य के रूप में

परमेश्वर जो जैविक रूप से करना चाहता है,

उसकी परिपूर्ती

परमेश्वर के सम्पूर्ण उद्धार में, जो वह न्यायिक पहलू से करता है, वह प्रक्रिया है और जो वह जैविक पहलू से करता है वह उद्देश्य है।

परमेश्वर की न्यायिक आवश्यकता

प्रक्रिया के पहलू में, परमेश्वर ने जो अपनी न्यायिक आवश्यकता के अनुसार पूरा किया, वह छुटकारा है जिसमें पापों की क्षमा, पापों से धोया जाना, न्यायी ठहराया जाना, परमेश्वर के साथ मेल मिलाप, और स्थितीय पवित्रीकरण शामिल हैं—-हालांकि, परमेश्वर का सम्पूर्ण उद्धार केवल इतना ही नहीं है—परमेश्वर के सम्पूर्ण उद्धार का पहला पहलू न्यायिक पहलू है—-ये सभी विषय प्रक्रिया, योग्यता, और स्थान की एक बात है। न्यायिक पहलू हम पापियों को परमेश्वर के अनुग्रह में प्रवेश करने के लिए योग्य बनाता है और सही स्थान पर लाता है ताकि हम उस उद्धार को आनंद कर सकें जो परमेश्वर ने हमारे लिए जैविक रूप से अपने जीवन के अनुसार, उद्देश्य के पहलू में पूरा किया है (रो- 5ः10)।

परमेश्वर का जैविक उद्धार

परमेश्वर के सम्पूर्ण उद्धार का दूसरा पहलू उद्देश्य का पहलू है। उद्देश्य के पहलू में, जो परमेश्वर ने जैविक रूप से अपने जीवन के द्वारा पूरा किया, उद्धार है, जिसमें यह सब शामिल हैः (1) नया जन्म,—, (2) चरवाही, —(3) हमारे स्वभाव में पवित्रीकरण, (4) हमारे मन में नवीनीकरण, (5) हमारे स्वरूप में रूपांतरण जिसका परिणाम (6) परमेश्वर का निर्माण (7) परमेश्वर के पहलौठे पुत्र के स्वरूप में अनुरूप होना, —और (8) महिमाकरण—(8ः30)। जबकि जो न्यायिक रूप से पूरा किया गया है, वह पांच विषयों के साथ छुटकारे के रूप में प्रारंभिक कदम है और जैविक रूप से जो पूरा किया गया है वह उद्धार के रूप में एक और कदम है, जो छुटकारे से अलग है और जिसमें आठ विषय सम्मिलित हैं। छुटकारा न्यायिक रूप से पूरा किया गया है जबकि उद्धार जैविक रूप से पूरा किया गया है। जैविक पहलू के इन आठ विषयों का परिणाम मसीह की देह को गठित करने के लिए, परमेश्वर की कलीसिया है, जो नये यरूशलेम में परिपूर्ण होगी, जो परमेश्वर के अनन्त गृृह प्रबंध का अंतिम लक्ष्य है, जो कि, अनन्त काल में परमेश्वर का विस्तार और अभिव्यक्ति होने के लिए एक के रूप में जुडे़ और मिश्रित हुए, प्रक्रिया से गुजरे त्रिएक परमेश्वर और उसके नए जन्मे, पवित्र किए, रूपांतरित किए और महिमाविन्त किए लोगों के साथ गठित एक जीव है।

न्यायिक पहलू के रूप में छुटकारा परमेश्वर के उद्धार के उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकता, क्योंकि यह केवल प्रक्रिया है, उद्देश्य नहीं। उदाहरण के लिए, एक रसोइया एक दावत तैयार करने के लिए रसोई घर में खाना पकाने में कापफ़ी समय खर्च करता है। हालांकि, खाना पकाना उसका उद्देश्य नहीं है बल्कि केवल एक प्रक्रिया है। बाद में जब अतिथियों को दावत का आनंद लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है, तो यह खाना पकाने का उद्देश्य है। इसी तरह, परमेश्वर के उद्धार में हमें न्यायिक पहलू, प्रक्रिया के पहलू में, नहीं रहना चाहिए, बल्कि हमें जैविक पहलू, उद्देश्य के पहलू में आगे बढ़ना चाहिए।

लूका 15 में वस्त्र और बछड़ा

परमेश्वर की न्यायिक आवश्यकता

और परमेश्वर के जैविक उद्धार का

उदाहरण देता है

लुका 15 एक ऐसे बेटे के बारे में बोलता है जो विदेश में घूमने के लिए घर छोड़कर एक खर्चीला पुत्र बन गया। एक दिन, फटे कपड़े पहनकर खर्चीला पुत्र घर लौट आया। यद्यपि वह अभी भी अपने पिता का पुत्र था, वह बाहर से एक खर्चीले पुत्र के रूप में दिखाई दिया। जब वह अभी दूर ही था, तो उसके पिता ने उसे देखा और उसे गले लगाने और चूमने के लिए दौड़े। इसके बाद, उसके पिता ने तुरंत दासों को आदेश दिया, ‘‘अच्छे से अच्छे वस्त्र शीघ्र निकाल लाओ और उसे पहनाओ’’(आ- 22)—जब पुत्र ने विदेश में घूमने के लिए घर छोड़ा, तो उसने एक बेटे के रूप में अपना स्थान खो दिया और एक खर्चीला पुत्र बन जाता है। जब पिता ने उसे वस्त्र पहनाये, तो वह तुरंत फिर से एक पुत्र बन गया। यह परमेश्वर के उद्धार के न्यायिक पहलू को संदर्भित करता है।

हालांकि, केवल वस्त्र पहन कर पुत्र बनना पर्याप्त नहीं है। इस समय, एक तरफ, पुत्र खुश था, लेकिन दूसरी तरफ, उसने अपने हृदय में कहा होगा, ‘‘पिताजी, अब मेरी जरूरत बाहरी रूप से वस्त्र पहनना नहीं है। मुझे अंदर से खिलाया नहीं गया है। मैं कई सालों से उन फलियों को खा रहा था। आज मैं एक खाली पेट के साथ वापस आया हूँ। कृपया जल्दी करें और मुझे कुछ खाना दो।’’ शायद पुत्र यह कहने में शर्मिंदा था, लेकिन पिता ने कहा, ‘‘और मोटा बछड़ा लाकर काटो कि हम खाएं और आनन्द मनाएं’’(आ-23)। उस समय पुत्र खुशी से नाच रहा होगा। मोटे बछड़े को खाने के बाद, पुत्र संतुष्ट था और अब भूखा नहीं था। इसलिए, वस्त्र परमेश्वर के उद्धार के न्यायिक पहलू को दर्शाता है और बछड़ा परमेश्वर के उद्धार के जैविक पहलू को दर्शाता है।

मसीह के उद्धार की आवश्यकता

न्यायिक पक्ष के सभी पांच विषयों के बारे में हमें काफी जानकारी है। हम जानते हैं कि हम पापमय हैं और जब हम पश्चाताप करते हैं, परमेश्वर के सामने हमारे पापों को स्वीकार करते हैं और प्रभु में विश्वास करते हैं, हमें पापों से क्षमा मिलती है और हमारे पापों को धोया जाता है, हम परमेश्वर द्वारा न्यायी ठहराये जाते हैं ताकि हम उसके साथ मेल-मिलाप कर सकते हैं और स्थितीय रूप से हमें पवित्र किया गया है। हम यह सब चीजें जानते हैं। इसलिए, कुछ लोग कह सकते हैं कि ‘‘स्वर्ग जाने के लिए ये पांच चीजें पर्याप्त हैं। परमेश्वर हमारी फिर से निंदा नहीं करेंगा। उसने हमें हमेशा के लिए माफ किया है, इसलिए हम शांति में रह सकते हैं।’’ इसलिए, वे दूसरों को सुसमाचार का प्रचार करते हुए कहते हैं, ‘‘यीशु में भरोसा करके बस शांति और आनन्दित रहो। एक अच्छे व्यक्ति बनने की कोशिश करो, और दूसरों की मदद करने का प्रयास करो, फिर एक दिन आप स्वर्ग जाएंगे।’’—लेकिन बाइबल कहती है कि यह पर्याप्त नहीं है। इन पांच वस्तुओं के अतिरिक्त, बाइबल मे आठ और विषय शामिल किए गए हैंः नया जन्म, चरवाही, स्वभाव में पवित्रीकरण, नवीनीकरण, रूपांतरण, निर्माण, अनुरूप होना और महिमाकरण।

हमें न्यायिक पक्ष के पांच विषयों से घृणा नहीं करनी चाहिए और हमें जैविक पक्ष के आठ विषयों से भी घृणा नहीं करनी चाहिए। पांच विषयों के पूर्व समूह आधार हैं, जैसे एक घर की नींव। हमें आठ विषयों के दूसरे समूह को पांच विषयों का पूर्व समूह के आधार पर निर्माण करना जरूरी है—ताकि हमारे पास इन आठ जैविक विषयों के बारे में ज्यादा पूर्ण ज्ञान और ज्यादा अनुभव हो।

“ABBA, FATHER,” WE APPROACH THEE

Worship of the Father— His Redemption

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  1. “Abba, Father,” we approach Thee
    In our Savior’s precious name.
    We, Thy children, here assembling,
    Now the promised blessing claim.
    From our guilt His blood has washed us,
    ’Tis through Him our souls draw nigh,
    And Thy Spirit too has taught us
    “Abba, Father,” thus to cry.
  2. Once as prodigals we wandered,
    In our folly, far from Thee;
    But Thy grace, o’er sin abounding,
    Rescued us from misery.
    Clothed in garments of salvation
    At Thy table is our place;
    We rejoice, and Thou rejoicest,
    In the riches of Thy grace.
  3. Thou the prodigal hast pardoned,
    “Kissed us” with a Father’s love;
    “Killed the fatted calf,” and made us
    Fit Thy purpose to approve.
    “It is meet,” we hear Thee saying,
    “We should merry be and glad;
    I have found My once-lost children,
    Now they live who once were dead.”
  4. “Abba, Father,” we adore Thee,
    While the hosts in heaven above
    E’en in us now learn the wonders
    Of Thy wisdom, grace, and love.
    Soon before Thy throne assembled,
    All Thy children shall proclaim
    Abba’s love shown in redemption,
    And how full is Abba’s name!