चरवाही

श्रृंखला 1

उच्च सुसमाचार

पाठ चार – बाइबल

2 तीम- 3:16-सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और शिक्षा, ताड़ना और सुधार और धार्मिकता की शिक्षा के लिए उपयोगी है।

बाइबल संसार की सभी अन्य पुस्तकों से ऊपर है। यह एक अद्वितीय पुस्तक है। अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने एक बार कहा था कि बाइबल परमेश्वर द्वारा मनुष्यों को दिया गया सर्वश्रेष्ठ उपहार है। जो भी अच्छाई उद्धारकर्ता ने संसार को दी हैं इस पुस्तक के माध्यम से संचारित की गयी हैं। यह दुनिया की सबसे व्यापक रूप से पढ़ी गयी पुस्तक है और संसार में किसी भी अन्य पुस्तक की तुलना में इसका एक हजार से अधिक भाषाओं में अनुवाद किया गया है। मुसीबत और अनिश्चितता के समय में अनगिनत लोग आराम, आशा और मार्गदर्शन के लिए बाइबल की ओर मुडे़ं हैं। बाइबल शब्द यूनानी शब्द बिब्लॉस से आता है, जिसका अर्थ है वह पुस्तक। इसका अर्थ है कि संसार में अन्य सभी पुस्तकों के बीच बाइबल ही एकमात्र किताब है।

सभी शास्त्रीय लेखनों के बीच

बाइबल का

सबसे ऊँचा होना

बाइबल इसके अभिलेख में

सर्वोच्च होना

पहला तथ्य यह है कि सभी पुस्तकों के बीच बाइबल अपनी प्रमाणिकता के अभिलेख में अकेली है। अन्य धर्मों के कई सिद्धांत मिथकों और पौराणिक कथाओं से भरे हैं। लेकिन बाइबल के पन्नों के भीतर हमें वास्तविक घटनाओं, लोगों, और स्थानों के अनगिनत संदर्भ मिलते हैं। पुरातत्व का विज्ञान, धर्मनिरपेक्ष ऐतिहासिक अभिलेखों के साथ, बाइबल संबधी विभिन्न पुस्तकों में संदर्भों की सुस्पष्टता की पुष्टि करता है।

बाइबल हमें सर्व-शक्तिशाली, अनन्त रचयिता के बारे में बताती है जिसने अनस्तित्व से आकाश, पृथ्वी और सभी सृजित चीजों सहित ब्रहमाण्ड की सृष्टि की। सृष्टि की उत्पत्ति का विवरण, जबकि अपने आप में एक वैज्ञानिक कथा नहीं है, वैज्ञानिक साक्ष्य के साथ पूरी तरह से सामंजस्यपूर्ण है।

बाइबल का अपने ज्ञान और

गहनता में सर्वोच्च होना

दूसरा, बाइबल परमेश्वर के साथ और उसके साथी मनुष्य के साथ मनुष्यों के संबंध, उसके विचार, उसके इरादे, उसके व्यवहार और उसके दैनिक जीवन के विषय में उत्तम ज्ञान वहन करती है। पुराने नियम के समय में, पृथ्वी पर अधिकतर संस्कृतियां बहुदेववाद पर विश्वास करती थीं, एक से अधिक परमेश्वरों में विश्वास। तथाकथित देवताओं में से अधिकांश को क्रूर, क्रूद्ध, और कभी-कभी अनैतिक रूप में भी दिखाया गया है। परंतु बाइबल एक एकमात्र परमेश्वर को प्रकट करती है जो असीम और व्यक्तिगत है, जो एक पिता और पति के रूप में मनुष्य की परवाह करता है, और जो प्रेम, सम्मान, न्याय और दया को व्यक्त करता है।

बाइबल में सभी प्रकार के ज्ञान भी शामिल हैं, जैसे कि ईश्वरीयशास्त्र, मानविकी, खगोल विज्ञान, भूविज्ञान, विज्ञान, दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र, शासन, शिक्षा, संस्कृति और अंतिम समयों का अध्ययन।

बाइबल का अपने नीतिशास्त्र

और नैतिकता में सर्वोच्च होना

बाइबल जैसी कोई अन्य पुस्तक नैतिकता और नीतिशास्त्र के उच्च स्तर को नहीं रखती है। यह मानवीय गुणों के रूप में उचित प्रेम का वर्णन करती है, जो धीरजवंत है, दयालू है, ईर्ष्या नहीं करता, बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं (1 कुर- 13:4)। यह किसी के दुश्मन को भी माफ करने की हद तक प्रेम की परिभाषा करती है (मत्ती- 5:44)। यह मनुष्य के लिए अपने इकलौते पुत्र को देने में परमेश्वर का अपने कार्य में प्रेम का उदाहरण देती है (यूहन्ना 3:16)। मसीही लोग वे हैं जो प्रेम में चलते हैं (इफ. 5:2), और कलीसिया प्रेम में निर्मित एक समुदाय है (इफ. 4:16)।

बाइबल का अपने प्रभाव में

सर्वोच्च होना

इतिहास के दौरान कई मशहूर लोग बाइबल पढ़कर मसीह में विश्वास करने के लिए प्रेरित हुए हैं। फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन ने, पराजित और सेंट हेलेना द्वीप के लिए निर्वासित होने के बाद, स्वीकार किया कि हालांकि उसने और अन्य महान नेताओं ने बल पर अपने साम्राज्यों की स्थापना की, यीशु मसीह ने प्रेम के साथ अपने राज्य का निर्माण किया। उसने यह भी स्वीकार किया कि यद्यपि, वह अपने लिए मरने के लिए मनुष्यों को इकट्ठा कर सकता था, लेकिन वह उनसे आमने-सामने बात करने के द्वारा ऐसा करता, जबकि अठारह शताब्दियों से अनगिनत स्त्री और पुरूष आनंद के साथ यीशु मसीह के लिए उसे एक बार भी देखे बिना अपनी इच्छा से अपने जीवन का त्याग करने को तैयार रहे हैं। इतने सारे लोग मसीह का अनुसरण करने और उनके लिए शहीद होने के लिए सब कुछ छोड़ने को तैयार हैं, इसका कारण यह है कि उन्होंने बाइबल में प्रकट मसीह को देखा है।

बाइबल परमेश्वर का

पवित्र वचन होना

बाइबल का अन्य पुस्तकों से अगल होने का कारण यह है कि इसका स्वभाव दिव्य है। पवित्रशास्त्र परमेश्वर की सांस है (2 तीम- 3:16)। यह बताता है कि पवित्रशास्त्र मनुष्य के विचार, मनुष्य के दिमाग से नहीं आया, बल्कि, यह परमेश्वर के आत्मा के माध्यम से लेखकों के भीतर और बाहर उनके विचार और उनके वचन की सांस छोड़ना है। इसलिए, बाइबल परमेश्वर के तत्व को शामिल करता है और उनके स्वाद को वहन करता है। एक मसीही का महानतम आनंद और आशीष परमेश्वर के सांस के वचन के माध्यम से उन्हें रोज चखने और संपर्क करने में सक्षम होना है।

चूंकि पवित्रशास्त्र मनुष्य से परमेश्वर की आत्मा के द्वारा उसके वचन की सांस छोड़ना है, पवित्रशास्त्र का कोई भी वचन मनुष्य की इच्छा का नहीं हो सकता, बल्कि, मनुष्य आत्मा के द्वारा वहन किया गया और परमेश्वर की ओर से बोला गया। शब्द मनुष्य पवित्र आत्मा के द्वारा वहन किये जाकर परमेश्वर की ओर से बोले गये थे (2 पत. 1:21) का दोहरा अर्थ हैः पहला, मनुष्य आत्मा से उभारे गये_ दूसरा, मनुष्य परमेश्वर की ओर से बोले। मूल युनानी में, पवित्र आत्मा द्वारा वहन किये जाना हवा के द्वारा एक जहाज को ले जाने को संदर्भित करता है। बाइबल के लेखकों ने परमेश्वर की प्रेरणा प्राप्त की, और वे परमेश्वर के वचन को बोलने के लिए उसके द्वारा वहन किये गये और लाये जाने के नाते पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के अधीन थे। इसके अलावा, जब वे बोलते थे, तो वे परमेश्वर के भीतर से बोले। यह परमेश्वर का आत्मा था जिसने मनुष्यों को बोलने के लिए वहन किया, और यह मनुष्य भी थे जो परमेश्वर के भीतर से बोल रहे थे। दूसरे शब्दों में, यह परमेश्वर था जो अपने स्वयं के वचन को मनुष्यों के भीतर से उनके मुंह के माध्यम से बोल रहा था।

बाइबल के मुख्य विषय

1- परमेश्वर अपनी योजना के साथ 

बाइबल में प्रकट किया गया परमेश्वर बुद्धि और उद्देश्य का परमेश्वर है। जैसे कि कोई भी बुद्धिमान और उद्देश्यपूर्ण व्यक्ति हमेशा योजनाओं से भरा होता है, हमारा परमेश्वर, जो सबसे बुद्धिमान है, के पास अनन्त योजना है, जिसका मनुष्य और संसार के साथ बहुत कुछ संबंध है।

2-मनुष्य और उसकी मंजिल

बाइबल हमें बताती है कि मनुष्य कहां से आया, वह कैसे बनाया गया और वह कहां जा रहा है। यह मनुष्य के लिए परमेश्वर की योजना के बारे में भी बताती है।

3-मसीह

मसीह बाइबल का केंद्रीय व्यक्ति है। पुराना नियम उसके बारे में भविष्यवाणी है, और नया नियम इस भविष्यवाणी की पूर्ति है। बाइबल हमें बताती है कि मसीह ने मानव जाति के लिए छुटकारे और उद्धार को कैसे पूरा किया है।

4-पवित्र आत्मा

पवित्र आत्मा परमेश्वर का तीसरा व्यक्ति है। मनुष्य के परमेश्वर के अनुभव के संबंध में इसका उल्लेख बहुत ज्यादा किया गया है।

5-दिव्य जीवन

दिव्य जीवन परमेश्वर का जीवन है, जिसे एक व्यक्ति तब प्राप्त करता है जब वह मसीह में विश्वास करता है। यह दिव्य जीवन उन लोगों के भीतर रहता है, जो मसीह में विश्वास करते हैं और उनके चाल चलन को निर्देशित और रूपांतरित करता है।

6-मसीह में विश्वासी

नया नियम हमें मसीह में एक विश्वासी होने का अर्थ और उचित मसीही जीवन जीने का मार्ग बताती है।

7-कलीसिया

कलीसिया आज पृथ्वी पर विश्वासियों का परमेश्वर का समुदाय है। बाइबल व्याख्या करती है कि कलीसिया क्या है और कैसे कलीसिया के रूप में विश्वासियों को मिलना चाहिए।

8-परमेश्वर का राज्य

परमेश्वर का राज्य, वह क्षेत्र है जहां परमेश्वर इस युग में और आने वाले युगों में अपने शासन और अधिकार का अभ्यास करता है।

9-नया स्वर्ग

और नयी पृथ्वी

नया स्वर्ग और नयी पृथ्वी, उन चीजों के बारे में बताती है जो भविष्य में अनंत काल में होगी।

बाइबल पढ़ने के द्वारा

यीशु मसीह से मिलना

यदि आप ऐसे व्यक्ति हैं जो सत्य की तलाश कर रहे हैं और अपने जीवन के अर्थ को जानना चाहते हैं, तो आपको बाइबल पढ़ने की जरूरत है, और आपको उस मसीह को पुकारना चाहिए जिसे आपके लिए बाइबल में प्रस्तुत किया गया है। परमेश्वर ने हर व्यक्ति को एक आत्मा दी है (अययूब 32:8) ताकि वह परमेश्वर की चीजों को समझ सकें और प्राप्त कर सकें। हम आशा करते हैं कि आप नये नियम को पढ़ने के द्वारा इस अद्भुत पुस्तक, बाइबल को पढ़ना शुरू करेंगे, और हम यह भी उम्मीद करते हैं कि आज आप इस पुस्तक में यीशु से मिलने के द्वारा फलदायी और बहुतायत का जीवन शुरू करेंगे।

ALL SCRIPTURE  IS THE VERY BREATH OF GOD

Study of the Word—The Function of the Word

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  1. All Scripture is the very breath of God,
    And by His Spirit into words was breathed;
    By godly men the words were written down,
    With all God’s fulness unto man bequeathed.
  2. It is the breath of God as light to man,
    With rays divine man to illuminate;
    It shines in darkness and to man reveals
    What is his truest need and actual state.
  3. It is the breath of God as life to man,
    Nature divine to man it doth impart;
    The dead it quickens and regenerates,
    Transforms the soul-life and renews the heart.
  4. It is the breath of God as wisdom too,
    Knowledge divine to man it has to teach;
    Th’ eternal purpose of the Lord it shows,
    And leadeth man God’s final goal to reach.
  5. It is the breath of God as strength to man,
    Power divine to man it doth transmit,
    Strength’ning the weak, empowering the faint,
    Enabling man God’s purpose full to fit.
  6. It is the breath of God for us to breathe,
    That as our portion God we may enjoy;
    Receiving it by spirits exercised,
    Our need is met, His wealth we may employ.