चरवाही

श्रृंखला 1

उच्च सुसमाचार

पाठ सोलह – सताव का सामना करना

1 पतरस  4ः14 यदि मसीह के नाम के कारण तुम्हारी निन्दा की जाती है तो तुम धन्य हो, क्योंकि महिमा का आत्मा, जो परमेश्वर का आत्मा है, तुम में वास करता है।

धन्य होना

यदि मसीह के नाम में

आपकी निंदा किया जाना

‘‘यदि मसीह के नाम के कारण तुम्हारी निन्दा की जाती है तो तुम धन्य हो, क्योंकि महिमा का आत्मा, जो परमेश्वर का आत्मा है, तुम में वास करता है’’ (1 पत- 4ः14)। वास्तव में ‘‘मसीह के नाम में’’ मसीह के व्यक्ति में है, स्वयं मसीह में है, क्योंकि नाम व्यक्ति को सूचित करता है। विश्वासी मसीह में विश्वास करते हुए (यूहन्ना 3ः15) और उसके नाम में अर्थात, उसमें (गल- 3ः27) बपतिस्मा लेते हुए (प्रेः19ः5) मसीह में हैं (1 कुर 1ः30) और उनके साथ एक हैं (1 कुर 6ः17) जब उनके नाम में विश्वासियों की निंदा की जाती है, तो विश्वासियों की उसके साथ निंदा की जाती है, उसकी पीड़ाओं में भाग लेते हुए, वे उसके दुःखों की सहभागिता में हैं (फिल- 3ः17)।

जो सताव हम सहते हैं, मसीह के नाम में सहने के कारण, मसीह की पीड़ाएं हैं। आयत 14 में, पतरस के वचन के अनुसार यदि हमारी मसीह के नाम में निंदा की जाती है तो हम धन्य हैं। ऐसा मत सोचिए कि मसीह के नाम में निंदा होना एक श्राप है। यह धन्य होना है। हालांकि, यदि लोग हमारी बहुत ज्यादा प्रशंसा करें, यह श्राप हो सकता है। इस मामले केे संबंध में, हमें अवधारणा में एक बदलाव की जरूरत है।

जितना अधिक हम पीडित़

और सताये जाते हैं,

उतनी अधिक महिमा हम पर होती है

जितना अधिक हम पीड़ा सहते हैं और सताये जाते हैं, उतनी अधिक महिमा हम पर होगी। यह वास्तव में एक आशीष है। मैं साक्षी दे सकता हूँ कि जितना ज्यादा मुझे सताया गया और बुरा कहा गया, उतना ज्यादा मैं सामर्थी हुआ। सताव और निन्दा मुझे दबाकर नहीं रख सकतीं। इसके विपरीत, ये मुझे उठाते हैं। इसलिए, जब भी हमारी मसीह के नाम में निन्दा की जाती है, हमें खुशी मनानी है क्योंकि महिमा की आत्मा हमारे ऊपर है।

जब एक व्यक्ति परमेश्वर की ओर मुड़ता है

उसे सताने के लिए

शैतान दूसरों को उकसाता है

सारा संसार उस दुष्ट शैतान के वश में पड़ा है (1 यूहन्ना 5ः19)। शैतान लगातार हर संभव तरीके से परमेश्वर का विरोध करता है। जब भी लोग परमेश्वर की ओर मुड़ते हैं, शैतान अप्रसन्न है और वह इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता। एक बार जब एक व्यक्ति परमेश्वर की ओर मुड़ता है, तो शैतान दूसरों को उकसाता है कि उसे सतायें। एक बार पौलुस ने यह कहा कि हम मसीही सताव सहने के लिए नियुक्त किए गए हैं (फिल-1ः29)। इसलिए, मसीह में विश्वासियों के रूप में सताव हमारे लिए नियुक्त भाग हैं। इसलिए, व्यावहारिक मसीही सिद्धता का पहला पहलू परीक्षण को सहना है, एक शब्द जिसमें सताव शामिल हैं।

सताव एक पीड़ा है। हालांकि, परीक्षण केवल पीड़ा नहीं है; क्योंकि परीक्षण एक वह पीड़ा है जो हमें परखने और जांचने के उद्देश्य को पूरा करती है। हम विद्यालय के अंतिम परीक्षा को एक उदाहरण के रूप में प्रयोग करेंगे। छात्रें को पता है कि अंतिम परीक्षाएं एक वास्तविक पीड़ा और परीक्षण हो सकती है। लेकिन ऐसे परीक्षण वास्तव में छात्रें के लिए एक मदद हैं। यदि स्कूल में कोई अंतिम परीक्षा नहीं होती, तो छात्र शायद अपनी पढ़ाई के विषय में लापरवाह होंगे। किंतु जब उन्हें पता चलता है कि अन्तिम परीक्षा आ रही है, तो वे अपनी पढ़ाई पर बहुत मेहनत के साथ ध्यान केंद्रित करेंगे। इसलिए, एक अंतिम परीक्षा एक छात्र को आवश्यक सामग्री सीखने में मदद करती है। इस कारण से,छात्रों  के माता-पिता को अंतिम परीक्षाओं के लिए आभारी होना चाहिए, यह जानकर कि ये उनके बच्चों को उनकी शिक्षा से लाभ लेने में मदद करती हैं।

‘‘आत्मिक शिक्षा के विद्यालय’’ में  भी ‘‘अंतिम’’ और दूसरे प्रकार कीे ‘‘परीक्षाएं’’ होती हैं। इस विद्यालय का फ्प्रधानाचार्यय् हमारा स्वर्गीय पिता है। उन्होंने हमारे लिए भिन्न प्रकार के परीक्षण, विभिन्न इम्तिहान का प्रबन्ध किया है। यह सब परीक्षण हमारे लिए भले हैं। जैसे परीक्षा विद्यार्थियों के लिए भली है, वैसे ही मसीही के रूप में अनेक परीक्षणों का सामना करना हमारे लिए लाभ है।

एक अंतिम परीक्षण विद्यार्थी को परखने, परीक्षा लेने और जांचने में तीनगुणा उद्देश्य को पूरा करता हैं। उसी प्रकार विश्वासी होने के नाते हमें विभिन्न परीक्षणों से गुजरना पड़ता है। जो हमें परखने, परीक्षा लेने और जांचने के उद्देश्य को पूरा करता है। ये परीक्षण निश्चय ही हमारी व्यवहारिक मसीही सिद्धता में एक मदद हैं, क्योंकि परमेश्वर हमें सिद्ध बनानेे के लिए इनका उपयोग करता है।

विरोधियों का मुलाकात के दिन में

परमेश्वर की महिमा करना

1 पतरस 2ः12 में पतरस कह रहा है कि यदि हमारे पास राष्ट्रों के बीच एक श्रेष्ठ चाल चलन है तो अखिरकार, मुलाकात के दिन में, वे हमारे विषय में परमेश्वर की महिमा करेंगे। इस आयत में ऐसा लगता है कि पतरस संतों को कह रहा है, ‘‘विरोधी अब आपके विरूद्ध बुरा बोलते हैं। परंतु यदि उनके बीच आप एक श्रेष्ठ जीवन जीते हैं, एक जीवन जो गुणवत्ता में सुन्दर और चाल चलन में श्रेष्ठ है, वे आपके भले कामों को देखकर मुलाकात के दिन परमेवर की महिमा करेेंगे। जैसे वे आपको देखेंगे, वे एहसास करेंगे कि आप परमेश्वर की मुलाकात के अधीन हैं। आखिरकार, परिणाम परमेश्वर की महिमा होगी क्योंकि विरोधी मुलाकात के दिन परमेश्वर की महिमा करेंगे।

मैं गवाही दे सकता हूँ कि वर्षों से मैंने बहुत बार पतरस के शब्दों को पूरे होते हुए देखा है। क्योंकि उन्होंने संतो के साथ परमेश्वर की मुलाकात को देखा, कई विरोधी अपने किए हुए कार्यों पर पछताए और पश्चाताप किया। उनके मुलाकात के दिन संत परमेश्वर की प्रेममय देखभाल के तहत थे। भले ही इन संतों को बुरा कहा जाता था, वे परमेश्वर के अनुग्रहपूर्ण देखभाल के तहत एक अद्भुत और श्रेष्ठ जीवन जीते थे। इसलिए परमेश्वर ने उनसे बार बार मुलाकात की। उनके जीवन के श्रेष्ठ चाल चलन और परमेश्वर की मुलाकात आखिरकार विरोधियों के पश्चाताप करने और परमेश्वर को महिमा देने का कारण बना।

हमारे जीवन के रूपांतरण की वजह से

विरोधियों का

अपने रवैये को बदलना

प्रभु की पुनःप्राप्ति में कुछ जवान लोगों का उनके माता पिता द्वारा विद्रोह किया गया है। कई वर्ष पहले, एक विशेष जवान व्यक्ति का उसके माता पिता ने सख्ती से विरोध किया होगा। वे सोचते थे कि वह इतना ज्यादा समय कलीसिया और सेवकाई की सभाओं में शामिल होने में क्यों बिताता था। हालांकि, उन्हाेंंने उसके जीवन के चालचलन में धीरे से एक बदलाव, एक रूपान्तरण को देखना शुरू किया। यद्यपि उनके पास इसका वर्णन करने के लिए शब्द नहीं था, वे अपने बेटे में प्रभु के रूपांतरण कार्य देख रहे थे। आखिरकार, उन्होंने एहसास किया कि वह एक व्यक्ति था जो परमेश्वर की देखभाल, परमेश्वर की मुलाकत के तहत था।

कुछ ही समय पहले, कई संतों ने एक सभा में इस प्रभाव कि गवाही दी। उन्होंने कहा कि पूर्व में उनका अपने माता पिता के द्वारा विरोध किया गया, और कुछ मामलों में, सताए भी गए थे। परन्तु धीरे से, एक समय के दौरान, उनके माता पिता का रवैया बदलने लगा। जब कभी जवान लोग अपने परिवार से मिलने घर जाते थे, उनके माता पिता लगातार उनका विरोध करते थे। परन्तु वे अपने बच्चों को ध्यानपूर्वक देख भी रहे थे। थोड़ा थोड़ा करके, कम विरोध और ज्यादा देखना था। आखिरकार माता पिता के रवैया में एक पूर्ण बदलाव हुआ और कुछ मामलों में उन्होंने भी कलीसिया जीवन में प्रवेश किया। उन्होंने अपने बच्चों के जीवन के श्रेष्ठ चालचलन को देखा और उन्हाेंने मुलाकात के दिन परमेश्वर की महिमा की।

VIA BETHLEHEM WE JOURNEY

The Way of the Cross—

The Way of Following the Lord – 628

  1. Via Bethlehem we journey,
    We whose hearts on God are set;
    Babelike souls of Jesus learning,
    While our cheeks with tears are wet;
    For the manger and the stable
    Are not pleasant to our eyes,
    But our feet must follow Jesus,
    If our hands would grasp the prize.
  2. Via Nazareth! The pathway
    Narrows still as on we go,
    Years of toil none understanding,
    Yet God teaches us to know
    That the servant is not greater
    Than the Lord, who through long years
    Hid Himself from this world’s glory,
    Follow Him! Count not the tears.
  3. Via Galilee, we see Him!
    Stones are hurled, and cursed hissed
    By the men who gather round Him,
    Has He not the pathway missed?
    No! Unharmed the Savior passes,
    And this rough bit of the way
    We must travel, since like Jesus,
    Nothing can our purpose stay.
  4. Via too, the awful anguish
    Of the hours beneath the trees,
    Where the hosts of Satan linger,
    Awful hours of anguish these!
    Yet we fail not, for God’s angels
    Minister to us, and say,
    “Look, beloved, at the glory,
    Conflict is but for a day!”
  5. Then the Cross! For via Calvary
    Every royal soul must go;
    Here we draw the veil, for Jesus
    Only can the pathway show;
    “If we suffer with Him,” listen,
    Just a little, little while,
    And the memory will have faded
    In the glory of His smile!
  6. Then the grave, with dear ones weeping,
    Knowing that all life had fled;
    (Fellow-pilgrims, art thou numbered
    With the men the world calls dead?)
    Thence we rise, and live with Jesus,
    Throned above the world’s mad strife,
    Gladly forfeiting forever,
    All that worldlings count as life.
  7. On we press! And yonder gleaming,
    Nearing every day, we see
    The great walls of that fair city,
    God has built for such as we;
    And we catch the tender music
    Of the choirs that sing of One
    Who once died to have us with Him
    In His kingdom, on the throne.
  8. Just a few more miles, beloved!
    And our feet shall ache no more;
    No more sin, and no more sorrow,
    Hush thee, Jesus went before;
    And I hear Him sweetly whispering,
    “Faint not, fear not, still press on,
    For it may be ere tomorrow,
    The long journey will be done.”