चरवाही

श्रृंखला 1

उच्च सुसमाचार

पाठ तेरह – यीशु पापियों का मित्र है

मत्ती- 11:19-मनुष्य का पुत्र खाता-पीता आया और वे कहते हैं, ‘‘देखो, एक पेटू और पियक्कड़ चुंगी लेने वालों और पापियों का मित्र।’’ फिर भी बुद्धि अपने कार्यों से प्रमाणित होती है।

सुसमाचारों में प्रभु यीशु पापियों के मित्र के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से वह सबसे पहले मनुष्य के बीच उनके मित्र के रूप में पाये गये थे, और फिर वह उनके उद्धारकर्ता बने। लेकिन क्या आपको पता है कि पहले स्थान पर वह आज भी हमारा मित्र है, ताकि वह हमारे उद्धारकर्ता बन सके? इससे पहले कि हम उस बिंदु तक पहुंचे जहां हम उद्धारकर्ता के रूप में उसे ग्रहण करने के लिए तैयार हैं-या वास्तव में सक्षम हैं-वह एक मित्र के रूप में हमारे पास आता है, ताकि हमारे लिए निजी संपर्क रोका नहीं जाता और हमारे लिए दरवाजा खुला रखा जाता है ताकि हम उद्धारकर्ता के रूप में उसे ग्रहण करें। यह एक बहुमूल्य खोज है।

जब से मैंने उद्धारकर्ता को पापियों के मित्र के रूप में देखा, मैंने यह देखा है कि बहुत से असामान्य और कठिन लोग परमेश्वर के पास लाए जाते हैं। मुझे याद है कि एक जगह पर एक युवा महिला आई और यह कहते हुए उसने मुझ पर हमला किया कि वह बचना नहीं चाहती है। उसने कहा कि वह जवान थी और एक अच्छा समय रखने का उसका इरादा था और वह नही चाहती थी कि वह अपने तौर-तरीके छोड़ दे और शांत और गंभीर बने, क्योंकि उसके बाद जीवन में कोई खुशी नहीं होगी। उसने कहा कि उसे अपने पापों को त्यागना का कोई इरादा नहीं था और उद्धार के लिए उसके पास इच्छा ही नहीं थी! ऐसा प्रतीत होता है कि वह सुसमाचार के बारे में बहुत कुछ जानती थी, क्योंकि वह एक मिशन विद्यालय में जाती थी और यह उसके खिलाफ, प्रतिक्रिया थी। उसने कुछ देर के लिए मुझसे शिकायत की, फिर मैंने कहा, ‘‘क्या हम प्रार्थाना करें?’’ उसने तिरस्कार से पूछा, ‘‘मैं क्या प्रार्थाना करूं?’’ मैंने कहा, ‘‘मैं आपकी प्रार्थना के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकता, लेकिन मैं पहले प्रार्थना करूँगा और फिर आप जो कुछ मुझसे कह रही थी वह प्रभु को बता सकती हैं।’’ कुछ हद तक अश्चर्य होते हुए उसने कहा ‘‘ओह, मैं ऐसा नहीं कर सकती!’’ मैंने जवाब दिया ‘‘हाँ, आप कर सकती हैं। क्या आप नहीं जानती कि वह पापियो का मित्र है?’’ इसने उसे छुआ। उसने प्रार्थना की-एक बहुत ही अपरंपरागत प्रार्थना-लेकिन उसी घंटे से प्रभु उसके हृृदय में काम करने लगा और कुछ दिनों में वह बचाई गई।

प्रभु से मिलने के लिए लोगों की अगुवाई करना

अक्सर वह जो केवल ज्ञान के द्वारा बचाए गए हैं वे घमंडी बनते हैं। वे परमेश्वर की जरूरत को ज्यादा महसूस किये बिना प्रगति करते हैं। वे सब जानते हैं और वे खुद को प्रचारक के तथ्यों की प्रस्तुति की आलोचना करने के लिए योग्य भी समझते हैं। लेकिन कोई संकट आता है जिसमें वे अपने जाने हुई आचरण को खोते हैं और उन्हें प्रभु पर भरोसा रखना है, वे कर नहीं पाते हैं। वे उसके साथ एक जीवित संपर्क में नहीं हैं। फिर भी वहाँ अन्य होंगे जो बहुत कम जानते हैं लेकिन खुद से बाहर आ चुके हैं और उन्होंनें जीवित परमेश्वर को छुआ है जो विश्वास में विकसित और बढ़ रहे हैं चाहे कितना गंभीर परीक्षण के माध्यम से भी हो। यही कारण है कि हमारा पहला उद्देश्य लोगों को उनसे मिलने के लिए अगुवाई करना है।

यह जीवित प्रभु ही है जो हमारा उद्धारकर्ता बनता है। यीशु अब केवल क्रूस पर चढ़ाया गया व्यक्ति ही नहीं बल्कि एक राज्य करने वाला व्यक्ति भी है और आज उद्धार के लिए हम क्रूस के निचले सिरे के पास नहीं जाएंगे बल्कि सिंहासन के पास जाते हैं ताकि प्रभु के रूप में उसमें विश्वास करें। शायद हमें छुटकारे और उद्धार के बीच के अंतर को और अधिक स्पष्ट रूप से देखने की आवश्यकता है। दो हजार साल पहले क्रूस पर प्रभु यीशु के द्वारा छुटकारा संरक्षित किया गया था। आज हमारा उद्धार उस छुटकारे पर निर्भर है जो समय में एक बार सम्पूर्ण रूप से पूरा हो गया है।

एक निजी और

व्यक्तिपरक अनुभव के रूप में उद्धार

ऐसा कहा जा सकता है कि उद्धार जो एक निजी और व्यक्तिपरक अनुभव है प्रभु की मृत्यु से ज्यादा उसके पुनरुत्थान पर निर्भर हो सकता है। मसीह की मृत्यु वस्तुपरक रूप से परमेश्वर के सामने प्रायश्चित के लिए जरूरी थी। लेकिन उद्धार के लिए नया नियम उसके पुनरुत्थान में हमारे विश्वास पर जोर डालता है, क्योंकि पुनरुत्थान सबूत है कि उसकी मृत्यु स्वीकार की गई हैं। हम निजी रूप से पुनरुत्थित और महिमा में आरोहित प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करते हैं और हम पापियों को अब उसके साथ तत्कालिक संपर्क में लाने की खोज में हैं।

उद्धार समझ या इच्छा का सवाल भी नहीं है। जैसे की हम ने देखा है, यह परमेश्वर से मिलने का सवाल है-मनुष्य का उद्धारकर्ता मसीह के साथ प्रत्यक्ष संपर्क में आना है। इसलिए आप मुझसे पूछ सकते हैं कि उस संपर्क को संभव बनाने के लिए मनुष्य की न्यूनतम आवश्यकता क्या है?

मेरे जबाव मैं आपको बोनेवाले के दृष्टान्त में मोड़ना चाहता हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि यहाँ हमें एक बात स्पष्ट रूप से बताई गई है जिसकी परमेश्वर मांग करता है। ‘‘अच्छी भूमि के बीच वे हैं, जो वचन सुनकर अपने शुद्ध (ईमानदार) और अच्छे हृदय में दृढ़ता से रखते और बड़े धैर्य से फल लाते हैं।’’ (लूका 8:15) परमेश्वर मनुष्य से जो मांग करता है, वह ‘‘एक ईमानदार और अच्छा हृदय है’’-अच्छा क्योकि यह ईमानदार है। अगर वह परमेश्वर के साथ इस बारे में ईमानदार होने के लिए तैयार हैं तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई आदमी उद्धार पाना चाहता है या नहीं या वह समझता है या नहीं, परमेश्वर उससे मिलने के लिए तैयार है।

एक पापी के उद्धार की बुनियादी स्थिति विश्वास या पश्चाताप नहीं हैं, लेकिन परमेश्वर की ओर हृदय की ईमानदारी है। परमेश्वर उससे और कुछ नहीं मांगता केवल यह कि वह इस रवैये में आए। बहुत से छल के बीच में ईमानदारी के उस स्थान में अच्छा बीज गिरता है और फल लाता है। प्रभु के साथ क्रूस पर चढाए गए दो व्यक्ति पूरी तरह से बेईमान चोरों में से, एक में थोड़ा सी ईमानदार इच्छा थी। कर वसूल करने वाला जिसने मंदिर में प्रार्थना की थी, वह कुटिल व्यक्ति था, लेकिन उसमें भी ईमानदारी थी कि वह अपने पाप को स्वीकार करे और दया के लिए परमेश्वर के प्रति रोए।

जैसे कि कई घटनाओं में पहले बताया गया है, हमें हर पापी को घुटने झुका के एक ईमानदार हृदय से प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि वह परमेश्वर को स्पष्टता से कहें कि वह कहाँ स्थित है। मसीही के रूप में हमें बताया गया है कि हमें प्रभु यीशु के नाम में प्रार्थना करनी है (यूहन्ना 14:14; 15:16; 16:23, 24) जिसके द्वारा, अवश्य ही हम समझते हैं कि ये केवल शब्दों का एक तरीका नहीं बल्कि उनमें विश्वास का एक कार्य है। लेकिन पापियों के साथ यह अलग है, क्योकि ऐसी प्रार्थनाएं हैं जो परमेश्वर सुनेगा, जो यीशु के नाम में नही की गयी हैं। प्रेरितों 10:4 में स्वर्गदूत ने कुरनेलियुस से कहाः ‘‘तेरी प्रार्थनाएं और तेरे दान स्मरण के लिये परमेश्वर के सामने पहुँचे हैं।’’ यदि हृदय से एक सच्ची पुकार है, तो परमेश्वर सुनता है। एक पापी का हृदय परमेश्वर को छू सकता है।

सहायक निकट है

पतरस द्वारा दोहराये गये योएल के शब्दों में: ‘‘और जो कोई प्रभु का नाम लेगा वह उद्धार पाएगा।’’ यह कैसे संभव है? क्योंकि परमेश्वर ने अन्य वादों को (जो पतरस ने उसी भविष्यवाणी से दोहराया) पूरा किया हैः ‘‘मैं अपना आत्मा सब मनुष्यों पर उँडेलूगा’’(प्रे- 2:17, 21)। क्योंकि पवित्र आत्मा सब मानवजाति पर उँडेला गया है, एक पुकार ही पर्याप्त है।

मैं हमेशा विश्वास करता हूँ कि जब मैं प्रचार करता हूँ, पवित्र आत्मा उस मनुष्य पर होता है। मेरे कहने का मतलब यह नहीं है कि आत्मा अविश्वासियों के दिलों के अंदर है, लेकिन वह बाहर है। वह क्या कर रहा है? वह प्रतीक्षा कर रहा है,  मसीह को उनके दिलो में लाने के लिए वह प्रतीक्षा कर रहा है। पवित्र आत्मा सुसमाचार सुनने वालों के दिल में प्रवेश करने के लिए प्रतीक्षा कर रहा है। वह प्रकाश की तरह है। जो खिड़कियों को थोड़ा सा खोलने से भी अंदर आता है और रोशनी करता है। परमेश्वर की ओर दिल की केवल एक पुकार होने दो और उस क्षण में आत्मा प्रवेश करेगा और दोषसिद्धि और पश्चाताप और विश्वास का रूपांतरण कार्य शुरू करेगा-नया जन्म का चमत्कार।

ओह! जो हमारा परमेश्वर कर सकता है यह अद्भुत है! वह एक जीवित परमेश्वर है, जो दया में कार्य करने के लिए तैयार है। यहां तक कि अगर मनुष्य जो हैं उससे थोड़ा बेहतर हो सकते हैं तो बातो में मदद नहीं मिलेगी और यदि वे बहुत खराब होते हैं तो भी इससे कोई बाधा नहीं आती। वह केवल एक ‘‘ईमानदार और अच्छे हृदय’’ को ढूंढते हैं। और यह कभी नहीं भूलें कि मनुष्यों के दिल को परमेश्वर की ओर मुड़ने की सामर्थ में पवित्र आत्मा मौजूद है।

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IF YOU ARE TIRED OF THE LOAD OF YOUR SIN

Gospel—Persuasion

  1. If you are tired of the load of your sin,
    Let Jesus come into your heart;
    If you desire a new life to begin,
    Let Jesus come into your heart.
  2. Just now, your doubtings give o’er;
    Just now, reject Him no more;
    Just now, throw open the door;
    Let Jesus come into your heart.
  3. If ’tis for purity now that you sigh,
    Let Jesus come into your heart;
    Fountains for cleansing are flowing near by,
    Let Jesus come into your heart.
  4. If there’s a tempest your voice cannot still,
    Let Jesus come into your heart;
    If there’s a void this world never can fill,
    Let Jesus come into your heart.