चरवाही
श्रृंखला 1
उच्च सुसमाचार
पाठ ग्यारह – विश्वास द्वारा जीवन
यूहन्ना 3ः16 क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, कि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।
मृत्यु ने जीवन को मुक्त किया
प्रभु ने खुद की तुलना गेहूं के दाने के साथ की (यूहन्ना 12ः24)। बीज में जीवन सम्मिलित है। बीज जब जमीन पर गिरता है और मरता है, तो भीतर का जीवन मुक्त हो जाता है और बहुत फल उत्पन्न होते हैं।
इसलिए, परमेश्वर देहधारण पर नहीं रूका। वह मृत्यु के माध्यम से गुजरा ताकि उसका जीवन शरीर से स्वतंत्र हो जाये और पवित्र आत्मा में मुक्त हो जाये। अब वह समय और स्थान द्वारा सीमित नहीं हैं। उनका जीवन अब निष्कपटता से विश्वास करने वालों में प्रदान हो सकता है। क्रूस पर मसीह की मृत्यु केवल पाप से छुटकारे के लिए ही नहीं बल्कि दिव्य जीवन की मुक्ति के लिए भी थी।
उद्धार का शिखर- नया जन्म
पापों की क्षमा प्राप्त करने से हम केवल आदम के पतन से पहले की स्थिति में वापस आते हैं। वह सिर्फ एक मनुष्य था, और उसका जीवन उचित स्तर पर केवल एक मानव जीवन था। लेकिन परमेश्वर का इरादा है कि वह अपने एकलौते पुत्र को हमें दे ताकि हम अनन्त जीवन पा सकें। यह परमेश्वर के उद्धार का शिखर है—आदम ने जीवन के वृक्ष से नहीं खाया। यदि उसने बिल्कुल पाप नहीं किया, तो भी वह केवल मनुष्य होता। परमेश्वर के जीवन के साथ उसका कोई संबध नहीं था। लेकिन मसीह में हमें कुछ और उत्तम चीज विरासत में मिली है। मानव जीवन के अतिरिक्त हम में एक नया जीवन है, परमेेश्वर से एक जीवन, जो स्वयं परमेश्वर का पुत्र है। यह अनन्त जीवन है।
मानव जीवन के लिए परमेश्वर का समाधान सुधार करना नहीं है बल्कि क्रूसीकरण है। परमेश्वर ने क्रूस पर मसीह के साथ हमारे पुराने मनुष्य को चढ़ाया है_ वह समाप्त हो गया है। अब हम मसीह के साथ जीवित हैं; मसीह हमारा नया जीवन बन गया है। हम एक नया मनुष्य हैं; हमारे पास एक नई शुरुआत है और हम चालचलन का एक नया तरीके से आचरण कर सकते हैं। ये सब मसीह में परमेश्वर का पूरा किया गया कार्य है—मनुष्य यहाँ कुछ नहीं कर सकता। वह सिर्फ विश्वास और स्वीकार कर सकता है।
संदेह के बिना बस प्राप्त करें
यूहन्ना 3ः16 को उसी किताब के 1:12 के साथ पढ़ा जाना चाहिए। यूहन्ना 3ः16 हमें बताता है कि परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को मनुष्य को दिया है, और 1:12 कहता है, ‘‘परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास करते हैं।’’ हम इस जीवन को कैसे प्राप्त कर सकते हैं? यह बहुत ही सरल है। परमेश्वर ने हमें दिया और हम ग्रहण करते हैं, बस इतना ही। परमेश्वर ने जो दिया है, संदेह और डर के बिना बस प्राप्त करें और स्वीकार करें। हम जितना सरल होंगे उतना बेहतर होगा।
मिस्टर सी-एच स्पर्जन एक प्रसिद्ध ब्रिटिश प्रचारक थे। एक बार, वह प्रार्थना के बारे में अपने कुछ विद्यार्थियों से बात कर रहे थे। उनमें से एक ने पूछा कि अगर प्रार्थना का जबाव दिया जाए तो वह कैसे जान सकते हैं। उन्होंने अपनी जेब से एक सोने की घड़ी लेकर मेज पर रख दी। फिर उसने विद्यार्थियों से कहा कि जो भी चाहें उसे ले सकता है।
सभी छात्रों ने बहुत उत्साहित होना शुरू किया। कुछ इस बात पर बिल्कुल विश्वास नहीं कर सकते थे कि इतनी अच्छी घड़ी मुफ्रत में दी जाएगी। दूसरों ने सोचा, ‘‘अगर मैं इसे लेने के लिए हाथ बढ़ाता हूं और वह इसे वापस लेने का फैसला करते हैं, तो क्या यह शर्मनाक नहीं होगा?’’ एक और ने कहा, ‘‘क्या होगा अगर वह अचानक मन बदलते हैं?’’ थोड़ी देर बाद एक छोटी लड़की मिस्टर स्पर्जन के आगे आई और कहा, ‘‘मुझे यह चाहिए।’’ तुरंत उन्होंने घड़ी को उसके छोटे हाथों में रख दिया और उसे इसकी अच्छी तरह देखभाल करने का निर्देश दिया। जब अन्य सभी विद्यार्थियों ने अपनी हिचकिचाहट के लिए पछतावा शुरू कर दिया मिस्टर स्पर्जन ने कहा, ‘‘जब मैंने कहा था कि मैं इसे देने जा रहा हूँ, मैं सच कह रहा था। तुमने विश्वास क्यों नहीं किया? इस घड़ी की तुलना में, परमेश्वर ने जो हमें दिया है वह इस से भी ज्यादा कीमती है; हमारा जीवन होने के लिए उसने हमें अपना पुत्र दिया है। जब परमेश्वर देने के लिए इतना इच्छुक है, तो हम लेने के लिए क्यों हिचकिचाते हैं? बस विश्वास करो और ग्रहण करो, और आप अनन्त जीवन प्राप्त करोगे।
विश्वास के द्वारा, अनुभूति के द्वारा नहीं
मेरे एक मित्र ने एक बार मुझसे कहा, ‘‘मिस्टर नी, मैं वास्तव में परमेश्वर के पुत्र को मेरे जीवन में ग्रहण करना चाहता हूँ। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे कहा कि मैं चाहता हूँ कि मसीह मुझ में हो। मुझे बताया गया था कि जब मसीह मेरे अंदर आता है, मेरे अंदर कुछ जलन महसूस होगी। लेकिन जब मैंने घुटने टेके, तो मेरा हृदय पत्थर के समान ठंड़ा था। और प्रार्थना करने के बाद, मुझे ऐसा लगा की कुछ भी नहीं बदला। मुझे कैसे पता चलेगा कि वास्तव में मैंने जीवन के रूप में परमेश्वर के पुत्र को अपने अंदर ग्रहण किया है?’’
मैंने कहा, ‘‘बाइबल यह नहीं कहती है कि जब कोई परमेश्वर के पुत्र को ग्रहण करता है तो उसे जलन महसूस होगी या ठंडा रहता है। सिर्फ विश्वास करने को कहती है। यह विश्वास के द्वारा है, भावना के द्वारा नहीं। यदि आप अपनी भावना पर निर्भर रहते हैं, तो आप परमेश्वर के वचनों पर विश्वास नहीं करते हैं, आप परमेश्वर को झूठा बना रहे हैं! जब परमेश्वर ने कहा कि उसने दिया है, तो वह दिया गया है। इसका आपकी अनुभूति से कुछ लेना देना नहीं हैं।
अनुभूति विश्वास के बाद आती है
एक साल मैं शेफू में था। एक भाई ने मुझसे कहा, ‘‘मेरा जीवन बनने के लिए मैंने परमेश्वर के पुत्र में विश्वास किया है। लेकिन इस के बारे में मुझे कोई महिमामय अनुभूति नहीं है। क्या मैंने वास्तव में उसे ग्रहण किया है?’’ मैंने उसे एक दृष्टांत बतायाः ‘‘तीन मनुष्य एक संकरे दीवार पर चल रहे थे। आगे चलने वाला व्यक्ति, मसीह हमारा जीवन होने के तथ्य को संदर्भित करता है। बीच का व्यक्ति, हमारे विश्वास को सूचित करता है। यह हमेशा परमेश्वर के पूरे किये गये तथ्यों के बाद आता है। आखिरी व्यक्ति हमारी महिमा की अनुभूति को संदर्भित करता है। यह अनुभूति एक मनुष्य के विश्वास करने के बाद आती है। यह इन तीन चीजों में से आखिरी है।
जब तीनों दीवार पर चलते हैं, तो बीच का व्यक्ति केवल आगे देख सकता है। जब हम स्थिरता से परमेश्वर के पूरे किए वह कार्यो को देखते हैं, तो हमारा विश्वास अस्तित्व में आता है। परमेश्वर ने हमें हमारा जीवन बनने के लिए पहले से ही अपने पुत्र को दिया है। जब हम इस तथ्य को देखते हैं, तो हमारे पास विश्वास है। दूसरा हमेशा पहले के बाद आता है।
विश्वास के बाद, महिमा की अनुभूति आती है। तीसरा मनुष्य केवल दूसरे व्यक्ति को देख सकता है, जबकि अगर दूसरा व्यक्ति तीसरे को देखने के लिए घूमने की कोशिश करता है, तो वह तुरंत दीवार से गिर जाएगा। एक विश्वास जो तथ्यों पर स्थिर नहीं है, वह एक डगमगाने वाला विश्वास है। जिस मिनट दूसरा मनुष्य गिरता है, तो तीसरा भी गिर जाएगा। तब महिमा की सभी अनुभूति खो जाएगी। इसलिए, महिमामय अनुभूति को ढूंढने के लिए पीछे मत देखो। बस तथ्यों का पीछा करें।
परमेश्वर ने मसीह में सब कुछ पूरा किया है। वह मरा और पुनरुत्थित हुआ और पवित्र आत्मा में रूपांतरित हुआ। अब वह तुम्हारे अंदर आने के लिए तैयार है। आपको बस विश्वास करना है। अगर परमेश्वर ने ये सब कार्य नहीं किये हैं, तो भले ही आप उज्जवल और चमक महसूस कर रहे हैं, इसका मतलब कुछ नहीं है।
हमारा जीवन बनने के लिए मसीह के हमारे अंदर आने के बाद, हर तरह से एक महत्वपूर्ण बदलाव आएगा। इस बदलाव को व्यवस्था के प्रतिबंध, नैतिकता का शिक्षा या सुधार और अनुशासन लागू करने से प्रेरित नहीं किया जा सकता। मैं तुरंत तीस या चालीस अत्यंत बुरे पापियों को याद कर सकता हूँ जिनका प्रबलतीव्र बदलाव हुआ था जब से उन्होंने मसीह को जीवन के रूप में स्वीकार किया था। लेकिन सैकड़ों और हजारों अन्य मसीही हैं जो मसीह की स्वीकृति के बाद से, इस अद्भुत बदलाव की गवाही दे सकते हैं, जो अनुशासन और तपस्या से नहीं शुरू की जाती है, बल्कि मसीह के इस अद्भुत शक्तिशाली जीवन से है जो हमारे अंदर कार्य कर रहा है।
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VERILY, VERILY
Gospel—Life
- Oh, what a Savior that He died for me!
From condemnation He hath made me free;
“He that believeth on the Son” saith He,
“Hath everlasting life.” - “Verily, verily, I say unto you;”
“Verily, verily,” message ever new!
“He that believeth on the Son”-’tis true!-
“Hath everlasting life!” - All my iniquities on Him were laid,
All my indebtedness by Him was paid;
All who believe on Him, the Lord hath said,
“Hath everlasting life.” - Though poor and needy, I can trust my Lord;
Though weak and sinful, I believe His word;
Oh, glad message; every child of God
“Hath everlasting life.” - Though all unworthy, yet I will not doubt;
For him that cometh He will not cast out:
“He that believeth”-oh, the good news shout!
“Hath everlasting life.”