चरवाही
श्रृंखला 6
कलीसिया जीवन
पाठ तीन – प्रभु की पुनःप्राप्ति
1 यूहन्ना 1:1-उस जीवन के वचन के संबंध में जो आदि से था, जिसे हमने सुना, जिसे हमने अपनी आंखों से देखा, वरन जिसे ध्यानपूर्वक देखा और हमारे हाथों ने स्पर्श किया। 2:24-जहां तक तुम्हारा संबंध है, तुमने जो आरम्भ से सुना है, उसे अपने में बना रहने दो। जो कुछ तुमने आरम्भ से सुना है, यदि वह तुम में बना रहे तो तुम भी पुत्र में और पिता में बने रहोगे।
प्रभु की पुनःप्राप्ति का
अर्थ
पुनःप्राप्ति शब्द का अर्थ है कि मूल रूप से कुछ वहाँ था, और फिर वह खो गया। इसलिए उस चीज को वापस अपनी मूल अवस्था में लाने की आवश्यकता है। पुनःप्राप्ति शब्द कुछ सरल है और बहुत गहरा नहीं है, लेकिन जब हम प्रभु की पुनःप्राप्ति की बात करते हैं, तो हमें इसे पूरी बाइबल के प्रकाशन पर लागू करने की आवश्यकता है। इस दृष्टिकोण से प्रभु की पुनःप्राप्ति एक गहरी और महत्वपूर्ण चीज है। एक अर्थ में सम्पूर्ण बाइबल का प्रकाशन पुनःप्राप्ति का प्रकाशन है।
सबसे पहले, प्रभु की पुनःप्राप्ति दिव्य सत्य की पुनःप्राप्ति है जैसा कि पवित्रशास्त्र, परमेश्वर के पवित्र वचन में प्रकट किया गया है (2 तीम- 3:16)। सत्य जो पवित्रशास्त्र में दर्शाये गये हैं, खो गये थे, छूट गये थे, गलत व्याख्या की गयी थी, और युगों से गलत तरीके से सिखाये जाते थे। इसलिए, प्रभु की पुनःप्राप्ति की जरूरत है। प्रारंभिक प्रेरितों के युग में, कलीसिया के पितरों के युग में, कलीसिया परिषदों के युग में, कैथोलिक धर्म में पोप प्रणाली के साथ, और प्रोटेस्टेंट अभ्यास के युग में, प्रभु ने अपने संतों के माध्यम से जो उससे और उसके पवित्र वचन से प्रेम करते हैं, हमेशा कुछ खोया हुआ, छुटा हुआ, गलत व्याख्या किया गया, और गलत तरीके से समझाया गया सत्य, पुनःप्राप्त किया है।
प्रभु की पुनःप्राप्ति का
पहला पहलू-
परमेश्वर का प्रकाशन
प्रभु की पुनःप्राप्ति के तीन पहलू हैं। पहला पहलू परमेश्वर का प्रकाशन है। परमेश्वर का प्रकाशन परमेश्वर का बोलना है। पुराने नियम में मूसा से लेकर नए नियम में प्रेरित यूहन्ना तक, परमेश्वर पंद्रह सौ से भी ज्यादा वर्षो तक बात किया था। उसका बोलना सामूहिक रूप से पूर्ण बाइबल बन गया, जो आज हमारे हाथ में है। इसलिए, बाइबल की आखिरी पुस्तक, प्रकाशितवाक्य, अंत में कहती है कि किसी को भी इन वचनों में कुछ जोड़ना या घठाना नहीं चाहिए (22:18-19)।
प्रभु की पुनःप्राप्ति का
दूसरा पहलू-
परमेश्वर-मनुष्य जीवन
अब हम प्रभु की पुनःप्राप्ति के दूसरे पहलू पर आते हैं, अर्थात् परमेश्वर-मनुष्य जीवन, जो एक प्रकार का जीवन है जो विश्वासियों को जीने की आवश्यकता है। सांसारिक लोग नैतिक और सदाचार-पूर्ण जीवन और धार्मिक जीवन पर जोर देते हैं_ फिर भी ये नहीं है जो परमेश्वर चाहता है। जो परमेश्वर चाहता है वह परमेश्वर-मनुष्य जीवन है, जो परमेश्वर और मनुष्य का एक साथ जीना है।
प्रभु की पुनःप्राप्ति का
तीसरा पहलू-
कलीसिया का अभ्यास
आखिरकार, हमें प्रभु की पुनःप्राप्ति का तीसरा पहलू देखना चाहिए, यानि कि, कलीसिया का अभ्यास—कलीसिया मसीह की सार्वभौमिक देह के रूप में परमेश्वर का सार्वभौमिक भवन है और परमेश्वर का राज्य भी है (इफ- 1:23_ 1 तीम- 3:15-16_ मत्ती- 16:18-19)। ये तीन मसीह की देह, परमेश्वर का भवन, और परमेश्वर का राज्य सिर्फ एक हैं। मसीह की देह परमेश्वर का भवन है, और परमेश्वर का भवन परमेश्वर का राज्य है।
मसीह की सार्वभौमिक देह परमेश्वर का सार्वभौमिक भवन है, यानि कि, परमेश्वर का राज्य जो प्रत्येक शहरों में स्थानीय कलीसियाओं के रूप में दिखाई देता है। बाइबल दिखाती है कि एकता को रखने और विभाजन को रोकने के लिए एक शहर में केवल एक ही कलीसिया होनी चाहिए (प्रे-8:1; 13:1; प्रक-1:4, 11)। व्यवस्थाविवरण 12:5-18 स्पष्ट रूप से हमें बताती है कि जब इस्राएली अच्छी भूमि में पहुंचे, तो वे अपनी पसंद का आराधना स्थान नहीं चुन सकते थे। उन्हें उसी जगह जाना था जहां परमेश्वर ने अपना नाम रखा था, जो वह जगह थी जहां परमेश्वर अपना निवास स्थान निर्माण करेगा। इस्त्रएलियों को परमेश्वर की आराधना वहां करनी थी।
आज कलीसिया का अभ्यास जो परमेश्वर चाहता है सिद्धांत में वही है यानि कि, एकता को बनाए रखने के लिए एक शहर में केवल एक ही कलीसिया होनी चाहिए (प्रे- 8:1; 13:1; प्रक-1:4, 11)
विभिन्न इलाकों में स्थानीय कलीसियाएं भूगोल से अलग जगह में फैली हुई हैं, लेकिन फिर भी वे किसी मत या मामले से विभाजित नहीं हुए हैं (1 कुर-1:10-13)।
कलीसिया के अभ्यास में यद्यपि परमेश्वर की अद्वितीय कलीसिया पूरी पृथ्वी में कई स्थानीय कलीसियाओं के रूप में अभिव्यक्त की गयी है, कलीसियाएं अभी भी मसीह की अद्वितीय सार्वभौमिक देह हैं और इन्हें संप्रदायों और नामिक संप्रदायों में विभाजित नहीं किया जाना चाहिए (1 कुर-10:16-17)।
WE ARE FOR THE LORD’S RECOVERY
The Church—The Lord’s Recovery 1255
1.We are for the Lord’s recovery
Of the local church;
We are for the Lord’s recovery
Of the city and the earth.
Standing on the ground of oneness,
Oneness in the Lord,
We are building up the temple
Of our glorious Lord.
2.We are for the Lord’s,
We are for the Lord’s,
We are for the Lord’s recovery!
We are for the Lord’s,
We are for the Lord’s,
We are for the Lord’s recovery!
3.We are for the Lord’s recovery,
To our hearts so dear;
When we exercise our spirit,
Our vision is so clear.
Babylon the Great is fallen,
Satan is cast down,
And the local church is builded
On the local ground.