चरवाही

श्रृंखला 6

कलीसिया जीवन

पाठ पंद्रह – मसीह की देह का सम्मिश्रण

1 कुर- 10:17-जबकि रोटी एक ही है तो हम भी जो बहुत हैं, एक देह हैं, क्योंकि हम सब उसी एक रोटी में सहभागी होते हैं।

12:24-फिर भी हमारे शोभायामान अंगों को इस का प्रयोजन नहीं परन्तु परमेश्वर ने देह को ऐसा बना दिया है कि जिस अंग को घटी थी उसी को और भी आदर हो।

सम्मिश्रण की जरूरत

सम्मिश्रण का विचार बाइबल में बहुत मजबूत है। पुराने नियम में, परमेश्वर के प्रबंध की पूर्ति के लिए सम्मिश्रण का एक प्रतीक है। हालांकि, अगर हम पुराने नियम को केवल अक्षरों में पढ़ते हैं, तो हम उसे देख नहीं पाएंगे। इस प्रकार के सम्मिश्रण को प्रेरित पौलुस ने जोरदार रूप से उल्लिखित किया। 1 कुरिन्थियों 10:17 में पौलुस कहता है, ‘‘कि एक ही रोटी है सो हम भी जो बहुत हैं, एक देह हैं, क्योंकि हम सब उसी एक रोटी में भागी होते हैं।’’ कलीसिया का एक रोटी होने वाली पौलुस की सोच उसका खुद का आविष्कार नहीं था_ बल्कि यह पुराने नियम से लिया गया है। लैव्यव्यवस्था 2:4 में अन्न बलि फुलका थी जो तेल के साथ, बारीक आटे से बना था। वह सम्मिश्रण है। पौलुस हमें कहता है कि कलीसिया एक रोटी, एक फुलका है, जो बारीक आटे से बनी है। यह आटा गेंहू के दानों से आता है, और गेंहू के दानें गेंहू के एक दाना से आते हैं, जो मसीह है। यूहन्ना 12:24 कहता है कि गेंहू का एक दाना मसीह है जो पृथ्वी पर गिरा और मरा और पुनरूत्थान मे बढ़ा ताकि अनेक गेंहूँ उत्पन्न करे, जो हम हैं, उसके विश्वासी। हम कई गेंहू हैं ताकि हमें आटे के लिए पीसा जा सके ताकि कलीसिया का फुलका, रोटी बन सकें। यहाँ हम बाइबल में सम्मिश्रण का विचार देख सकते हैं।

कलीसियाओं को

एकत्रित करने के द्वारा सम्मिश्रण

आस पास की स्थानीय कलीसिया को मसीह की देह के आपसी निर्माण में आत्मिक लाभ के लिए सम्मिश्रण के तरीके से जितना संभव हो एकत्र किया जाना चाहिए, जैसे प्रभु यीशु ने एशिया में सात आस पास की कलीसियाओं को किया।

सार्वभौमिक

मसीह की देह का

सम्मिश्रण

परमेश्वर ने देह को एक साथ सम्मिश्रित किया (1 कुर-12:24)। सम्मिश्रित शब्द का मतलब ‘‘समयोजित’’, ‘‘सुसंगत’’, ‘‘संतुलित’’ और ‘‘मिश्रित’’ है। परमेश्वर ने देह को सम्मिश्रित किया, देह को समयोजित किया, देह को सुसंगत किया, देह को संतुलित किया, और देह को मिश्रित किया। सम्मिश्रण का यूनानी शब्द का अर्थ है विशिष्टता को खोना। एक भाई की विशिष्टता तेज हो सकती है और दूसरे की धीमी हो सकती है। लेकिन देह के जीवन में धीमी गति गायब हो जाती है और तेज़ी दूर हटा ली जाती है। ऐसे सभी विशिष्टता चली जाती है। परमेश्वर ने सभी विभिन्न जातियों और रंगों के सभी विश्वासियों को सम्मिश्रित किया है। कौन काले और सफेद की विशिष्टता को गायब कर सकता है? केवल परमेश्वर ही ऐसा कर सकता है। एक पति और एक पत्नी अपने भेदों को खोने से ही अपने विवाह में एकता प्राप्त कर सकते हैं।

हमें क्रूस के द्वारा जाना होगा और आत्मा के द्वारा होना है, मसीह की देह के खातिर दूसरों को मसीह प्रदान करना है जिससे कि देह जीवन में सुसंगत, सम्मिश्रित, समयोजित, मिश्रित और संतुलन रहे। सहकर्मी और प्राचीनों को काटे जाना सीखना चाहिए। जो भी हम करते हैं, वह आत्मा द्वारा मसीह की प्रदानता के लिए किया जाना चाहिए। साथ ही, हम जो भी करते हैं, वह हमारे हित के लिए नहीं होना चाहिए और हमारी रूचि के अनुसार नहीं बल्कि कलीसिया के लिए होना चाहिए। अगर हम इन बिंदुओ का अभ्यास करते हैं, तब हमारे पास सम्मिश्रण होगा।

संगति के बिना

कुछ नहीं करना

संगति हमें संयमित करती है_ संगति हमें समयोजित करती है_ संगति हमें सुसंगत करती है_ और संगति हमें मिश्रित करती है। हमें इस बात को भूल जाना चाहिए कि हम धीमे या तेज हैं और दूसरों के साथ केवल संगति करनी चाहिए। दूसरे संतो के साथ जो हमारे साथ समन्वय कर रहे हैं, संगति के बिना हमें कुछ नहीं करना चाहिए। संगति मांग करती है कि जब हम कुछ करने जाते हैं, हम रूक जाएं। कलीसिया जीवन में और प्रभु के कार्य में हमारे समन्वय में, हम सब को सीखना है कि संगति के बिना हमें कुछ नहीं करना चाहिए।

हमारे बीच हमें मसीह की देह के सभी व्यक्तिगत अंगों का सम्मिश्रण, कुछ जिलों की कलीसियाओं का सम्मिश्रण, सभी सहकर्मियों का सम्मिश्रण और सभी प्राचीनों का सम्मिश्रण होना चाहिए। सम्मिश्रण का मतलब है कि हमें हमेशा दूसरों के साथ संगति करने के लिए रूकना चाहिए। फिर हम कई लाभ प्राप्त करेंगे। अगर हम खुद को अलग और एकांत करते हैं, तो हम बहुत आत्मिक लाभ खो देंगे। संगति करना सीखो। अब से, सम्मिश्रित होने के लिए कलीसियाओं को एक साथ मिलकर आना चाहिए। हमें ऐसी आदत तो नहीं होगी लेकिन कुछ बार सम्मिश्रण का अभ्यास शुरू करने के बाद, हम इसका स्वाद हासिल करेंगे। मसीह की सार्वभौमिक देह की एकता को बनाए रखने में यह सबसे उपयोगी बात है। आज इस आधुनिक युग के साथ आधुनिक सुविधाओं की वजह से हमारे लिए एक दूसरे के साथ सम्मिश्रित होना बहुत सुविधाजनक है।

उसकी देह के खातिर मसीह को प्रदान करने के लिए

आत्मा के माध्यम से, क्रूस के द्वारा होना

जब हम एक साथ सम्मिश्रित होते हैं, तो हमारे पास क्रूस और आत्मा होते हैं। क्रूस और आत्मा के बिना, वो सब जो हमारे पास है शरीर के साथ विभाजन है। अपने आप में क्रूस पर चढ़ना और सब चीजों को आत्मा के द्वारा करना आसान नहीं है। इसी कारण से हमें सम्मिश्रित होना सीखना चाहिए। सम्मिश्रण की आवश्यकता है कि हम आत्मा के द्वारा हों ताकि हम मसीह को प्रदान कर सकें और उसकी देह के खातिर सबकुछ करें।

अधिक सम्मिश्रित हुए बिना हम एक साथ आ सकते हैं क्योंकि हर कोई खुद में रहता है। वे दूसरों को ठेस पहुचाने और गलतियाँ करने से डरते हैं, इसलिए वे चुप रहते हैं। शरीर के अनुसार यह मनुष्य का तरीका है। जब हम एक साथ आते हैं, हमें क्रूस का समापन कार्य अनुभव करना चाहिए। फिर हमें यह सीखना है कि आत्मा का पीछा कैसे करें, मसीह को प्रदान कैसे करें और देह के लाभ के लिए कुछ चीज कैसे कहें और करें। इससे सभा के पूरे माहौल में बदलाव आएगा और माहौल को संयमित कर दिया जाएगा। सम्मिश्रण चुप होने या बोलने वाला होने का मामला नहीं है, लेकिन संयमित होने का मामला है। क्योंकि हमें संयमित किया गया है हम अनुरूपता में हो सकते हैं। आखिरकार, भिन्नता सभी खत्म हो जाएगी। सम्मिश्रण का अर्थ भिन्नता का खोना है। हम सभी को सम्मिश्रण का अभ्यास करने के लिए कुछ कीमत चुकानी होगी।

मसीह की सार्वभौमिक देह के निर्माण के लिए

सम्मिश्रण मसीह की सार्वभौमिक देह के निर्माण के लिए है (इफ-1:23) अपने भले अभिप्राय के अनुसार परमेश्वर के प्रबंध के अंतिम लक्ष्य (इफ-3:8-10; 1:9-10) के रूप में नए यरूशलेम को पूरा करना है (प्रक- 21:2)।

 

सभाएं- कार्य करना – 867

1 देह के सदस्य जैसे
व्यक्त करें मसीह को
हर एक सीखते कार्य करना
दिखाएं पूर्णता को
हम न हों केवल दर्शक
अंगों तरह चलते,
न मृत्यु व न हानि
पर दिखाए फायदा

2  दल की तरह हम कार्य ना
करें व्यक्तिगत रूप
पर हम सब तालमेल में ही
हों एक दूसरे में निर्भर
ना चुनाव के द्वारा
पर धारा के साथ चलूं
ना लाना है विकर्षण
जानें आत्मा के मार्ग

3 मसीह पे ही हो ध्यान,
ना कोई और हो केन्द्र
मसीह के साथ एकता में
सारे धन का ले भाग
वो है सिर और सार मेरा,
उसकी देह व्यक्त करें
जो भी करें सभा में
उसको ही दर्शाये

4  बनाये प्रेम में एकसाथ
ना करे आलोचना
एक दूसरे को सिद्ध बनाते
करें हम सब अभ्यास
हर एक खुद से हो मुक्त,
त्यागे स्वभाविक जीवन
आत्मा में सब प्रशिक्षित
देह जीवन में ले भाग