चरवाही

श्रृंखला 6

कलीसिया जीवन

पाठ सोलह – मसीह की देह का निर्माण करना

इफ- 4:12, 16-जिस से पवित्र लोग सिद्ध हो जाए, और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए—-जिस से सारी देह हर एक जोड़ की सहायता से एक साथ मिलकर, और एक साथ गठकर उस प्रभाव के अनुसार जो हर एक भाग के परिमाण से उस में होता है, अपने आप को बढ़ाती है, कि वह प्रेम में उन्नति करती जाए।

मसीह की देह का निर्माण देह की वृद्धि से होता है। हम सभी को बढ़ने की जरूरत है ताकि देह का निर्माण किया जाए। यदि हम बढ़ते हैं तो देह बढ़ती है, और देह उसके निर्माण के लिए बढ़ती है।

नए नियम की सेवकाई के

कार्य को करने के लिए अपने अंगों को

सिद्ध बनाये जाने के द्वारा

देह की वृद्धि देह के अंगों को सिद्ध बनाने के द्वारा नए नियम की सेवकाई के कार्य- मसीह के देह के निर्माण को पूरा करने के लिए की जा रही है (इफ-4:12)। न केवल मसीहत में बल्कि हमारे बीच में भी, बहुत बार संत सभाओं में कार्य नहीं कर सकते। इसका कारण यह है कि हमारी वृद्धि में कमी है। अगर हम दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं, तो हम जीवित रहेंगे। फिर जब हम सभाओं में आते हैं, तो हम प्रार्थना करेंगे या हम कहेंगे, ‘‘प्रभु की स्तुति हो!’’ यह इंगित करता है कि हम जीवित हैं लेकिन आज की स्थिति अधिकांश भागों पर ऐसी नहीं है। मैंने प्रार्थना सभाओं में भाग लिया है जहां संत और यहाँ तक कि अगुवाई करने वाले भी निर्धारित समय से पांच, दस या पंद्रह मिनट बाद आए हैं। नतीजा था कि पूरी सभा मरी हुई थी। ऐसी स्थिति में असंभव है कि कलीसिया निर्मित हो। हम सभी को दिन-प्रतिदिन जीवित और बढ़ने की जरूरत है। तब पूरी कलीसिया बढ़ेगी और यह बढ़त निर्माण के बराबर होगी।

देह की वृद्धि के माध्यम से सभी अंगं को नए नियम की सेवकाई के कार्य को करने के लिए सिद्ध बनाया जाता है। यह कार्य प्रेरितों, भविष्यवक्ताओं, सुसमाचार सुनानेवाले या चरवाहा-शिक्षकों द्वारा नहीं किया जाता है। बल्कि सामान्य मसीह की देह के आम अंगों द्वारा किया जाता है। जब प्रत्येक अंग नए नियम की सेवकाई के कार्य को पूरा करने के लिए सिद्ध बनाया जाता है, तो सभी अंगों को पता चलेगा कि देह को कैसे निर्मित करें। निर्माण करना नये नियम का कार्य है। यदि सभी संत सेवकाई के कार्य को पूरा कर रहे हैं, तो सभाए जीवित रहेगी।

परमेश्वर के जीवन में

परमेश्वर के जीवन में देह की वृद्धि के द्वारा देह का निर्माण होता है (कुल- 2:19)। इसलिए, यह जैविक है।

रूपांतरण की

प्रक्रिया में

देह का निर्माण रुपांतरण की प्रक्रिया में भी होता है (1 कुर- 3:12)। आज जैसे ही हम बढ़ रहे हैं, हम रूपांतरण की प्रक्रिया में हैं। स्वतः हम रूपांतरित हुए जा रहे हैं। रूपांतरित होने का मतलब बदलना, खुद को नियमित करना या स्वयं को सही करना नहीं है। ये सब केवल बाहरी परिवर्तन है। रूपांतरण चयापचय है, जीवन में, कुछ आंतरिक बात है।

हर भोजन के समय जब हम अपने पेट में आहार लेते हैं, पाचन, चयापचय प्रक्रिया, तुरंत शुरू होती है। पेट को चयापचयी रूप से चलने के लिए उसे कुछ तत्व से भरा जाना चाहिए। मैंने कई बार खाने में इस चयापचय प्रक्रिया का अनुभव किया है। एक दिन एक सभा में बोलने के बाद, मैं शारीरिक रूप से थक गया था। कुछ खाना खाने के बीस मिनट बाद, मैं सजीव हुआ। मेरे भीतर एक चयापचयी प्रक्रिया शुरू हो गई थी। दस और मिनट के बाद, मैं और भी सजीव हुआ। मैं केवल सजीव नहीं था_ मैं अपने भीतर चयापचय प्रक्रिया द्वारा बदल गया था। यह रूपांतरण का एक उदाहरण है। हमें बढ़ने की जरूरत है कि हम बदल सकें। रूपांतरित होने के बाद, हम मसीह की देह के निर्माण के लिए उपयुक्त हैं।

खुद के निर्माण द्वारा

इफिसियों 4:16 कहता है कि देह खुद के निर्माण के लिए बढ़ती है। इसका मतलब है कि देह की वृद्धि देह का निर्माण स्वयं ही है।

हर एक जोड़ की

समृद्ध आपूर्ति से

एक साथ जुड़ जाना

हर एक जोड़ की समृद्ध आपूर्ति से एक साथ जुड़ जाने के द्वारा देह खुद का निर्माण करती है (इफ- 4:16)। समृद्ध आपूर्ति के ये जोड़ वरदान दिए गए व्यक्ति हैं, जैसे कि इफिसियों 4:11 में बताया गया हैः प्रेरितों, भविष्यवक्ता, सुसमाचार प्रचारक और चरवाहे और शिक्षक। ये वरदान पाए हुए व्यक्ति समृद्ध जोड़ हैं जो जीवन की आपूर्ति के रूप में मसीह से भरे हुए हैं। वे सतों को एक साथ जोड़ने का एक कारक हैं। यह एक साथ जोड़ने का पहला प्रकार है।

हर एक भाग के

माप में कार्य करने के द्वारा

एक साथ बुना जाना

देह अपने आप को हर एक भाग के माप में कार्य करने के द्वारा भी खुद को निर्माण करती है (इफ-4:16)। यह दूसरे प्रकार का जुड़ना है। पहला प्रकार का जुड़ना समृद्ध आपूर्ति के जोड़ों के माध्यम से जुड़ना है जैसे एक इमारत के ढाचें को बनाने के लिए टुकड़ों को एक साथ रखा जाता है। एक इमारत के ढांचे को तैयार करने के बाद कई खुलेपन होते हैं जिन्हें भरने की जरूरत होती है। दूसरे प्रकार का जोड़ना प्रत्येक भाग के माप के अनुसार एक साथ बुनना, एक इमारत के ढांचे केा निर्माण के बाद सभी छेदों को भरने की तरह है। बुनना यह है कि तब तक बुनना है जब तक सभी खुले छेद बुने टुकड़ों से न भर जाएं।

देह के अंग जो जोड़े या बुने हैं, एक साथ वरदान दिए गए व्यक्ति नहीं बल्कि देह के आम अंग हैं। वरदान दिए गए व्यक्ति ढ़ांचा बनाने के लिए एक साथ जुड़े हुए हैं; सामान्य हिस्सों को सभी छेदों को भरने के लिए जोड़ा जाता है और बुनने के लिए उनके उपाय में कार्य किया जाता है। यह केवल एक सिद्धांत नहीं है_ मैंने इसका अभ्यास किया है, मैंने इसे देखा और मैंने इसका अनुभव किया है। यह संभव है। यदि आपके पास हृदय है तो प्रभु से प्रार्थना करें: ‘‘प्रभु, मुझ पर दया कर और मुझे पर्याप्त अनुग्रह प्रदान कर। मैं आपको जैविक रूप से जीना चाहता हूँ।’’ फिर जाओ और अपने स्थान में संतों के साथ मिलिए। ऐसे कई अन्य संत भी हो सकते हैं जो आपके जैसे ही हैं। जैसे आप एक साथ मिलते हैं, आपके बीच वृद्धि होगी। यह वृद्धि निर्माण के बराबर है। कुछ वरदान दिए गए व्यक्ति ढ़ांचा बनाने के लिए एक साथ जुड़ जाएंगे और बाकी अपने माप में कार्य करने के द्वारा अपना हिस्सा लेंगे। इस तरीके से कलीसिया निर्मित होगी।

प्रेम में

मसीह की देह अपने आप को प्रेम में भी निर्मित करती है (इफ-4:16)। प्रेम में का छोटा वाक्यांश इफिसियों की किताब में छः बार (1:4, 3:17; 4:2,15,16_ 5:2) इस्तेमाल किया गया है। परमेश्वर ने हमें अनंत काल में प्रेम में चुना (1:4)। उसका अनंत काल में पुत्रत्व के लिए हमें पहले से ठहराया जाना भी प्रेम में था (आ- 5)। प्रेम के बिना परमेश्वर हमें चुनता या पहले से ठहराता नहीं। आज हमें प्रेम में बढ़ने की जरूरत है, और हमें देह को प्रेम में निर्मित करने की भी जरूरत है। हम प्रभु से प्रेम करते हैं, हम कलीसिया से प्रेम करते हैं, और हम हर अंग से प्रेम करते हैं। भले ही कुछ अंग कितने भी बुरे हों, हम उन्हें प्रेम करते हैं क्योंकि वे अंग हैं। हमारा रवैया ऐसा होना चाहिए कि हम उन्हें बेनकाब करने की इच्छा नहीं रखें। बल्कि हम उन्हें प्रेम में छिपाने की इच्छा रखें। यह वृद्धि है और यह निर्माण है।

 

कलीसिया- उसका भवन 840

1 मुक्त कर आदम के स्वभाव से
कि तेरे साथ निर्मित हों
संतो साथ तेरे मंदिर में
जहां तेरी महिमा देखें
छुड़ा विचित्र लक्षणों से
मेरे स्वतंत्र राहों से
कि हम जीवन भर प्रभु
तेरे ही निवासस्थान हो

2 तेरे जीवन और बहाव से
मैं बढ़ू, रूपांतरित हों
संतो के सहयोग के साथ
तेरे अनुरूप बनूं
तेरी इच्छा में काम करने
देह में क्रम को मैं रखूं
तेरे उद्देश्य को पूर्ण करने
सदा सेवा, मदद करूं

3 अपने ज्ञान और अनुभव में
खुद को उंचा न समझूं
पर अधीन होउं, स्वीकारूं
देह मुझे स्थिर करे
सिर को थामूं और बढ़ूं मैं
उसकी बढ़त और मार्ग में
जोड़ों की सहायता से मैं
गठ जाउॅफ़ दिन प्रति दिन

4 हर दिन आत्मा के सामर्थ से
भीतरी मनुष्य बलवन्त हो
प्रेम परे को जानूं मैं
चौड़ाई, लम्बाई, उंचाई
समृद्धियों को लेकर मैं
परिपूर्णता तक भरूं
सिद्ध मनुष्य तक बढ़ू मैं
ताकि देह तूं बनाए

5 तेरे घर में, तेरी देह में
निर्मित होना चाहूं मैं
कि सामुहिक पात्र में फि़र
तेरी महिमा सब देंखे
दुल्हन, महिमामय ‘ शहर यह
इस पृथ्वी पर प्रकट हो
चमकते दीवट के रूप में
तुझे प्रकट करने का।