चरवाही

श्रृंखला 6

कलीसिया जीवन

पाठ ग्यारह – समूह की सभाएं

इफ- 5:19-और आपस में भजन, स्तुति-गान व आत्मिक गीत गाया करो, और अपने-अपने मन में प्रभु के लिए गाते तथा कीर्तन करते रहो।

कुल- 3:16- मसीह के वचन को अपने हृदय में बहुतायत से बसने दो, समस्त ज्ञान सहित एक दूसरे को शिक्षा और चेतावनी दो, अपने हृदयों में धन्यवाद के साथ परमेश्वर के लिए भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाओ।

फिल- 2:1-अतः यदि तुम्हें मसीह में कुछ प्रोत्साहन, प्रेम की सान्त्वना, आत्मा की सहभागिता, प्रीति और सहानुभूति है।

समूह की सभाओं का

कलीसिया जीवन का

अस्सी प्रतिशत गठन करना

समूह की सभाओं के अभ्यास के विषय में, मेरी सेवकाई में, मैंने कहा था कि हम स्वर्ग और पृथ्वी को भूल सकते हैं परंतु हमें समूह की सभाओं को नहीं त्यागना चाहिए। मैंने सभी कलीसियाओं से यह भी कहा कि कलीसिया जीवन अस्सी प्रतिशत समूह की सभाओं पर निर्भर रहता है।

नये नियम में स्पष्ट रूप से प्रकट किया गया है कि समूह की सभाएं परमेश्वर नियुक्त मार्ग का भाग हैं। प्रेरितों 2:46 के अनुसार, उद्धार पाये नये विश्वासी तुरंत अपने घरों में मिलने लगे। प्रेरितों 2:46 इस वाक्यांश घर घर का उपयोग करता है। यूनानी भाषा के अनुसार, इस वाक्यांश का अर्थ है कि विश्वासी घरों में मिलते थे, घरों को अपनी सभा की मूल इकाई के रूप में लेते हुए मिलते थे। इसलिए नया नियम यह सूचित करता है कि हम में से प्रत्येक को अपने घर में एक सभा रखनी चाहिए। बेशक, ये घर सभाएं सिर्फ हमारे परिवार के साथ ही नहीं होनी चाहिए_ इनमें दूसरों को भी शामिल करना चाहिए।

समूह की सभाओं का अभ्यास

भजन, गीत और स्तुतिगान को

बोलना और गाना

अभी हमें समूह की सभा रखने के तरीके पर विचार करने की जरूरत है। इफिसियों 5:18 हमें आत्मा से परिपूर्ण होने को कहता है। हम विश्वासी, जो यीशु से प्रेम करते हैं, जो उसके उद्देश्य को खोज रहे हैं और जो उसकी पुनःप्राप्ति के लिए बोझिल हैं, उन्हें ऐसे व्यक्ति होना चाहिए जो पूरे दिन अपनी आत्मा में परिपूर्ण हैं। हमें त्रिएक परमेश्वर, जो आज सर्व-सम्मिलित आत्मा है उससे परिपूर्ण होना चाहिए। जब हम भीतरी भाग में भरे हैं निश्चय हम हमारी आत्मा से कुछ बोलेंगे। इफिसियों 5 कहता है कि हमें भरे होना, बोलनेवाले और गानेवाले होना चाहिए। हमारा बोलना और गाना एक साधारण भाषा में नहीं है। हम एक भजन को बोल या गा सकते हैं, जो कविता का लंबा अंश है। हम एक स्तुतिगान बोल या गा सकते हैं, जो एक भजन से कुछ हद तक छोटा है, या हम आत्मिक गीत को बोल या गा सकते हैं, जो उस से भी छोटा है।

हमें इन भजनों, स्तुतिगानों और आत्मिक गीतों को सभा में आने से पहले से ही बोलना और गाना चाहिए। हमारे घर में भी यह बहुत अच्छा होगा अगर हम बोलें और गाएं। पति कहेगा, ‘‘यह मेरी कहानी, यह मेरा गीत, करूँ में स्तुति उद्धारकर्ता की—-’’ फिर पत्नी जवाब में गा सकती है, ‘‘जिन्दगी भर’’(गीत 50 को देखिए)। नहीं तो वह कहेगी, ‘‘मैं हूँ पर्दे के उस पार यहाँ महिमा ना ढलती’’ फिर पति जवाब में, ‘‘हाल्लेलूयाह, हल्लेलूयाह मैं जी रहा राजा की उपस्थिति में’’ (गीत 91 को देखें)। अगर हम आत्मा से भरपूर हैं तो हमारे पास कुछ बोलने के लिए रहेगा। छोटी समूह की सभा शाम को 7:30 शुरु होगी परंतु अगर दम्पति शाम के भोजन के समय, लगभग 6:00 बजे से गाने लगेंगे, वह छोटी समूह की सभा पहले से ही शुरु हुई होगी। जब वे दूसरे संतों के साथ सभा में गाड़ी चलाकर एक साथ जा रहे हैं ऐसी सभा को वे जारी रख सकते हैं।

अगर मैं सभा की जगह में पहुँचता हूँ और कोई नहीं आया है तो मुझे चुप चाप बैठकर दूसरों के आने की प्रतीक्षा नहीं करनी है। मुझे बोलना, प्रार्थना करना और गाना शुरू करना है। कम से कम मेरे साथ स्वर्गदूत तो हैं इस लिए मैं अकेला नहीं हूँ। बाइबल स्पष्ट रूप से हमें बताती है कि जब पतरस को कारागाह से छुडाया गया और वह मरियम के घर में चला गया, वहाँ कुछ लोगों को लगा कि वह उसका स्वर्गदूत है (प्रे-12:15)। प्रभु यीशु ने कहा कि राज्य में छोटों के लिए भी दूत हैं (मत्ती- 18:10)। समूह की सभा का प्रारंभ सहज तरीके से बोलने, स्तुति करने और गाने के द्वारा किया जा सकता है।

सहभागिता, मध्यस्थता,

आपसी देखभाल और चरवाही

नया नियम हमें समूह की सभाओं का विवरण नहीं देता परंतु इब्रानियों 10:24-25, 2 तीम- 2:2, इफ- 4:11-12 में समूह की सभाओं के अभ्यास में प्रवेश करनें के लिए कुछ ‘‘छोटी खिड़कियां’ हैं। यह हमें यह देखने के लिए मदद करेगा कि प्राचीन दिनों में समूह की सभाओं में क्या हुआ करता था। वचन पर विचार करने द्वारा, हम देख सकते हैं कि वहाँ बहुत सहभागिता, एक दूसरों के लिए मध्यस्थी, आपस देखभाल और चरवाही थी। सहभागिता एक दूसरे की स्थिति और परिस्थिति के बारे में जानकारी देती है। यह एक दूसरे के लिए प्रार्थना की ओर ले जाती है। इस कारण से हम दूसरों के पास आपस में देखभाल करने के लिए जाएंगे। सहभागिता द्वारा हमें यह पता चलेगा कि एक भाई की मोटर-गाड़ी से दुर्घटना हुई है। यह हमें अगुवाई देता है कि हम उसके लिए और उसके परिवार के लिए प्रार्थना करें। फिर हम उसकी आर्थिक जरूरतों के बारे में विचार करेंगे और उसके स्वास्थ्य की जरूरतों के लिए परवाह करने के लिए बोझिल होंगे। यह सब एक औपचारिक रीति में नहीं होना चाहिए। यह आत्मा का सहज परिणाम होना चाहिए। मैं आशा करता हूँ कि अब से हमारी सभी समूह की सभाएं ऐसी जैविक रीति में हो।

आपस में शिक्षा

संतों को सिद्ध किये जाने के लिए समूह की सभाओं में शिक्षा की जरूरत है, और समूह की सभाओं में सभी शिक्षक हैं। कोई विशिष्ट शिक्षक नहीं होना चाहिए। यहां तक कि वह जो दो सप्ताह पहले बचाया गया, वह भी एक छोटा शिक्षक हो सकता है। छोटी समूह की सभाओं में कुछ सहभागिता, मध्यस्थी, आपसी देखभाल और आत्मा के अभ्यास द्वारा चरवाही के बाद एक भाई अचानक से एक सवाल पूछ सकता है। वह पूछ सकता है की परमेश्वर की प्रदानता क्या है। शायद सभी आँखें सभा में सबसे अधिक उमर वाले की ओर जाएंगी परंतु यह बेहतर होगा अगर कोई भाई जिसने अभी-अभी उद्धार पाया है, इसका जवाब दे। यह नया विश्वासी कह सकता है, ‘‘परमेश्वर की प्रदानता खुद को हमारी आत्मा में वितरण करना है।’’ मान लो कि इस व्यक्ति ने सिर्फ एक या दो महीने पहले ही उद्धार पाया है। सभी उसके बोलने के कारण प्रोत्साहित किए जाएंगे। यह बेहतर होगा अगर छः या सात जन कुछ मिनटों के लिए बोलें यह नहीं कि बहुत देर के लिए एक ही व्यक्ति बोले। इस प्रकार की शिक्षा सपंन्न और सर्वसम्मिलित है। इसके कई पहलू उस सभा से काफी बेहतर हैं जिसमें एक जन बोलता है। अगर सब लोग बोलते हैं तो सभी संत लोग खुश रहेंगे और सभी सीखेंगे। सभी को सिद्ध बनाने का मार्ग यही है।

अगर संत ऐसी सभा में साल में पैंतालीस बार आएं तो सभी अधिक शिक्षा प्राप्त करेंगे। नये विश्वासी इससे सिद्ध बनाये जाएंगे। साथ ही साथ यह एक समूह की सभा है अनेक चीजें कार्य में लायी जा सकती हैं। इस प्रकार का अभ्यास सहभागिता करने मध्यस्थता करने, आपस में देखभाल, चरवाही करने और एक दूसरे को आपस में शिक्षा देते हुए सिद्ध बनाने के लिए उचित मार्ग है।

कलीसिया की सेवा को

कार्यान्वित करना

अगर हम ऐसी सभा की संपन्नता को अनुभव कर रहे हैं तो हम परमेश्वर नियुक्त मार्ग के पहले कदम को लेने और दूसरों से मिलने जाने के बोझ को उठाएंगे। फिर जिन नए विश्वासियों को हम प्राप्त करते हैं उनकी भी देखभाल करनी होगी। इसका अर्थ यह है कि समूह की सभा कलीसिया की सेवा को आगे ले जाएगी। अंत में, यह छोटी समूह की सभा कलीसिया जीवन का एक लघु रूप होगी।

 

मसीह का अनुभव- उसे आनन्द करना

1153

1 पाया मसीह को जो सब में सब
वह मेरे लिए सब कुछ है
कितना धन्य उसका नाम लेना
कितना दिव्य और महान

ये आनंद अवर्णनीय, महिमा से भरा
महिमा से भरा, महिमा से भरा
ये आनंद अवर्णनीय, महिमा से भरा
और आधा कहा न गया

2 पाया मसीह जो आत्मा है
आत्मा में यह रहता है
कितना उपलब्घ कितना नजदीक
उसकी मधुरता श्रेष्ठ है

3 पाया मसीह के द्वारा जीना
वचन अधययन, उसका नाम लेना
खाना पीना संतुष्टि देता
वह घोषणा के योग्य है

4 पाया स्थानीय कलीसिया, घर
हम वाकई घर पर हैं
अब न और बाबूल में भटकते
कलीसिया जरूरी है

5पाया हमने संतो की सभा
पृथ्वी पर महान आनंद
इससे आत्मा कभी न बुझती
जीवन मूल्यो से भरी