चरवाही
श्रृंखला 5
सत्य को जानना
पाठ पाँच – दिव्य और अनंत जीवन
1 यूहन्ना 1:2-यह जीवन प्रकट हुआ, हमने उसे देखा है और उसकी साक्षी देते हैं, और तुम्हें उस अनन्त जीवन का समाचार सुनाते हैं जो पिता के साथ था और हम पर प्रकट हुआ।
रो- 8:2-क्याेंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया।
अनंत जीवन
अनंत जीवन केवल समय से संबंधित नहीं बल्कि गुणवत्ता से भी संबंधित है। यह जीवन उसके मण्डल से संबंधित भी अनंत है। इसलिए, अनंत शब्द तीन चीजों को दर्शाता हैः समय, जगह और गुणवत्ता। समय के तत्व के नाते, यह जीवन हमेशा रहेगा। जगह या मण्डल के नाते यह जीवन व्यापक अर्थात असीमित है। गुणवत्ता के नाते अनंत जीवन सिद्ध और पूर्ण है, किसी दोष या कमी के बिना। अनंत जीवन का मण्डल या क्षेत्र पूरे विश्व को घेरता है। अनंत जीवन इतना व्यापक है कि यह जीवन के पूरे क्षेत्र को घेरता है। जो भी जीवन के क्षेत्र में है वे इस अनंत जीवन के द्वारा घेरा जाता है। हमारा मानव जीवन हालांकि, अलग है। हमारा जीवन केवल अस्थायी ही नहीं बल्कि यह सीमित भी है। लेकिन अनंत जीवन अस्थायी नहीं है और सीमित भी नहीं है; बल्कि यह समय के अनुसार अनंतता के लिए है और जगह के अनुसार असीमित है। इसके अलावा, हमारे जीवन में कई दोष और कमियां हैं। हालांकि, दिव्य जीवन, अनंत जीवन में कोई दोष और कोई कमी नहीं है।
अविनाशी
अनंत जीवन अविनाशी जीवन है (इब्र-7:16)। कुछ भी इस जीवन को नष्ट या घुल नहीं सकता। यह जीवन अन्तहीन है क्योंकि यह अनंत, दिव्य, असृजित जीवन और पुनरुत्थान का जीवन है जो मृत्यु और अधोलोक के परिक्षण से गुजरा है (प्रे- 2:24_ प्रक-1:18)। शैतान और उसका अनुसरण करने वालों ने सोचा कि उसने इस जीवन को क्रूस पर चढ़ाने के द्वारा इसे समाप्त किया था। हालांकि, क्रूसीकरण ने इस जीवन को श्रेष्ठ अवसर दिया कि वह गुणित और प्रचारित हो। क्योकि यह जीवन असीमित है, इसे कभी भी पराजित, हराया या नष्ट नहीं किया जा सकता।
पिता अनंत जीवन का स्रोत है जिनसे और जिनके साथ अनंत जीवन की अभिव्यक्ति के रूप में पुत्र उनके लिए प्रकट हुआ था जिन्हें पिता ने इस जीवन को आनंद करने और हिस्सा लेने के लिए चुना था।
अनंत जीवन के इन पहलुओं का विश्लेषण करने के बजाय हमें इन्हें आत्मिक भोजन के ‘‘कोर्स’’ के रूप में आनंद करना चाहिए। अनंत जीवन परमेश्वर का जीवन है, यह परमेश्वर का पुत्र है और यह अनंतता में पिता के साथ था।
मनुष्य के तीन भागों में
दिव्य जीवन का प्रदान होना
रोमियों 8 मनुष्य के तीन भागों में दिव्य जीवन की प्रदानता को प्रकाशित करता है। आयत 2 जीवन की आत्मा की व्यवस्था के बारे में बात करती है। आयत 6 कहती है कि आत्मा पर मन लगाना जीवन है। आयत 10 कहती है की यदि मसीह हमारे अंदर है, शरीर मृत है लेकिन आत्मा जीवन है। फिर आयत 11 कहता है कि वही आत्मा जिसने मसीह यीशु को मरे हुओं मे से जिलाया, वह हमारी नश्वर देहों को जीवन देगी अपनी आत्मा के द्वारा जो हम में बसा हुआ है। इस प्रकार, आयत 2 दिव्य जीवन के बारे में बात करती है, आयत 10 कहती है कि हमारी आत्मा जीवन है, आयत 6 कहती है कि हमारा मन जीवन हो सकता है और आयत 11 कहती है की हमारे शरीर को भी जीवन दिया जा सकता है। आयत 8 परमेश्वर के बारे में, आयत 9 परमेश्वर की आत्मा और मसीह की आत्मा के बारे में और आयत 10 मसीह के बारे में बात करती है। ये आयत हमें दिखाती है कि त्रिएक परमेश्वर मनुष्य के तीन भागों में प्रदान किया गया है।
जीवन का आत्मा
रोमियों 8:2 जीवन के आत्मा के बारे में बात करता है। जीवन का आत्मा समानाधिकरण का वाक्यांश है और वास्तव में इसका अर्थ यह है कि आत्मा जीवन है। बाइबल में ऐसे कई वाक्यांश हैं। परमेश्वर के आत्मा का अर्थ आत्मा परमेश्वर है_ परमेश्वर का जीवन का अर्थ जीवन परमेश्वर है_ मसीह का आत्मा का अर्थ आत्मा मसीह है; और परमेश्वर का प्रेम का अर्थ प्रेम परमेश्वर है।
यह बिजली के प्रवाह की तरह है। दरअसल, प्रवाह ही बिजली है। यह बिजली से कुछ अलग नहीं है; यह गति में बिजली ही है। जब बिजली बह रही है और गति में है, वह बिजली का प्रवाह है। बिजली के प्रवाह की तुलना जीवन के आत्मा से की जा सकती है। जीवन के आत्मा का अर्थ आत्मा जीवन है। आत्मा जीवन है जो गति में है अर्थात त्रिएक परमेश्वर जो गति में है।
हमारी आत्मा में प्रदान होना
इस तरह का दिव्य जीवन पहले हमारी आत्मा में प्रदान होता है। रोमियों 8:10 कहता है कि क्योंकि मसीह हमारे अंदर है, हमारी आत्मा जीवन है। यह ऐसा है क्योंकि मसीह स्वयं यह जीवन है और यह जीवन हमारी आत्मा में है। इसलिए हमारी आत्मा जीवन है। यह एक बहुत ही मजबूत बिंदु है। आयत 10 यह नहीं कहती है कि क्योंकि मसीह हमारे अंदर है जीवन हमारे अंदर है। बल्कि, यह कहती है कि हमारी आत्मा जीवन है। आज हमारी नई जन्मी आत्मा जीवन है।
हमारे मन में प्रदान होना
रोमियों 8:6 कहता है कि आत्मा पर लगाया हुआ मन जीवन है। न केवल हमारी आत्मा जीवन है_ हमारे मन भी जीवन हो सकता है। लेकिन यह मन आत्मा पर लगाया जाना चाहिए। इसका मतलब है कि इस मन को आत्मा के साथ प्लावित, संतृप्त और भरा होना है ताकि यह आत्मा का मन बने। आखिरकार, आत्मा हमारे मन की आत्मा बन जाती है। यह इफिसियों 4:23 में उल्लेख किया गया है। क्योंकि हमारा मन हमारी आत्मा पर लगाया जाता है, हमारी आत्मा हमारे मन को तर-बतर करती है और हमारे मन को आत्मा का मन बनाता है। आखिरकार, हमारी आत्मा हमारे मन की आत्मा बन जाती है—यह आत्मा मिश्रित आत्मा है। यह जीवन दायक आत्मा के रूप में मसीह के साथ मिश्रित हुई हमारी आत्मा है।
क्योंकि हमारा मन हमारी आत्मा के साथ एक है अर्थात हमारी आत्मा के साथ संयुक्त, जुड़ा, तर-बतर और भरा हुआ है, हमारा मन भी जीवन है। इस तरह का मन दूसरों को जीवन प्रदान करने में कार्य कर सकता है। हमारे स्वभाविक मन से हम दूसरों को जीवन प्रदान नहीं कर सकते। यह मन जीवन नहीं है। लेकिन जब हमारा मन हमारी आत्मा से जुड़ा हुआ है और हमारी आत्मा के साथ, जो जीवन है, से संतृप्त है, इस समय में हमारा मन भी जीवन बन जाता है।
हमारे शरीर में प्रदान होना
रोमियों 8:11 कहता है कि उसी परमेश्वर का आत्मा जिसने मसीह यीशु को मरे हुओं मे से जिलाया, हमारे नश्वर शरीर, हमारे मरते हुए शरीर को, हम में निवास करने वाली आत्मा के द्वारा हमें जीवन देता है। इस आयत में शब्द नश्वर केवल मृत्यु की ही सोच नहीं देता लेकिन कमजोरी की भी सोच देती है। एक नश्वर शरीर एक कमजोर शरीर है, एक मरता हुआ शरीर। रोमियों 7 हमारे पतित शरीर को इस मृत्यु का शरीर कहा है (आ- 24) इस तरह के कमजोर, मरते हुए, नश्वर, मृत्यु के शरीर को भी जीवन दिया जा सकता है।
अब तक, हम देख सकते हैं कि रोमियों 8:2 मे उल्लेखित दिव्य जीवन आयत 10 में हमारी आत्मा में दिया अर्थात प्रदान किया जाता है और आयत 6 में हमारे मन में फैलता है। फिर आयत 11 में यह हमारे नश्वर शरीर में प्रदान किया जाता है। इस प्रकार, दिव्य जीवन हमारे अस्तित्व के तीनों भागों में प्रदान किया गया है।
गीत 1191
1 मेरी आत्मा से एक सोता है बहता
मुझमें बहता त्रिएक ईश्वर
पिता एक स्रोत है, मसीह पुत्र मार्ग है
और आत्मा देता जीवन मुझे
प्रभु अनमोल जानूं बहाव को
प्राण जीवन मैं अपना छोड़ दूं
हे प्रभु गहरा कर जीवन का बहाव
तेरे आने पर जीवन हो ताज
2 हरी चराईयों में यीशु मुझको बिठाता
ले चलता सुखदाई जल के पास
न संघर्ष न तनाव, सब कोशिशें व्यर्थ हैं
बहाव में, मैं हूं आशीषित
3 एक दिन यीशु बुलाया, पवित्र स्थान में
दिव्य उपस्थिति में जीने
हाल्लेलूयाह मैंने सुना, प्रोत्साहक वचन को
बने रहना-तुम हो दाख में लता