चरवाही

श्रृंखला 5

सत्य को जानना

पाठ सोलह – प्रभात जागृति के लिए पवित्र वचन

2 कुर-4:16- इसलिए हम साहस नहीं खोते,  यद्यपि हमारे बाहरी मनुष्यत्व का क्षय होता जा रहा है, तथापि हमारे   आन्तरिक मनुष्यत्व का दिन-प्रतिदिन नवीनीकरण होता जा रहा है।

इफ-6:17-18- आत्मा की तलवार जो परमेश्वर का वचन है ले लो। और हर समय और हर प्रकार से आत्मा में प्रार्थना और बिनती करते रहो।

1 कुर-14:4, 26-परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह कलीसिया की उत्पत्ति करता है—इसलिए हे भाइयों क्या करना चाहिए? जब तुम एकत्रित होते हो तो प्रत्येक के हृदय में भजन या उपदेश या अन्यभाषा या प्रकाश या अन्य भाषा का अनुवाद होता है। सब कुछ आत्मिक उन्नति के लिए होना चाहिए।

जागृत होने और

भविष्यद्वाणी करने का अभ्यास करना

प्रत्येक सुबह जागृत और

नया बन जाना

तीतुस 3 में पौलुस कहता है कि आज हमारा उद्धार नये जन्म के धोने से और पवित्र आत्मा के नया बनाने से है (आ- 5)। यहां उद्धार—एक दैनिक उद्धार है, जो रोज़ सभी प्रकार की कठिनाइयां, प्रलोभन, उलझन और प्रत्येक कमजोरी, निराशा और लालसा से छुडाया जाना है। हम वे हैं जिन्हें रोज़ उद्धार की जरूरत है। हर रोज़ हमें प्रभु के द्वारा बचाया जाने की जरूरत है। यह उद्धार पहले नया जन्म के धोने से है और फिर पवित्र आत्मा का नये बनाने से है।

जब पवित्र आत्मा हमें अंदर से धोता है, यह एक नवीनीकरण लाता है। हर मसीही के लिए सुबह में यह पहला पाठ है। मैं खुद इसका अभ्यास करता हूं। सुबह में, जब मैं जागता हूं—मैं किसी भी मनुष्य के प्रति मुंह खोलने से पहले परमेश्वर के प्रति मुंह खोलता हूं। मैं कहूंगा, ‘‘हे प्रभु, मैं तुम से प्रेम करता हूं! प्रभु यीशु, मैं तुम्हारे पास आ रहा हूं!’’ प्रत्येक सुबह मैं बस ये दो चीजें करता हूं: प्रभु का नाम पुकारना और उसके वचन को प्रार्थना अध्ययन करना। ये दो चीजें एक मसीही के लिए सुबह का अभ्यास है। अगर आप इन दो बातों में प्रत्येक सुबह खुद का अभ्यास करेंगे, तो आप जरूर जागृत होंगे। आप चमकते हए, उगते हुए ज्योति के साथ उगता सूरज बनोगे जो पूर्ण दिन तक ज्यादा ज्यादा चमकता जाता है।

मैंने ये सब आपको यह दिखाने के लिए कहा है कि हम मसीही संसार के लोगों से अलग हैं। सुबह में संसारिक लोग ज्यादातर ध्यान करते हैं या मनन करते हैं। लेकिन हम जो कर रहे हैं, वह ध्यान करना नहीं है। हम प्रभु के नाम को पुकार रहे हैं और उसके वचन का प्रार्थना अध्ययन कर रहे हैं। यह हमें प्रभु के साथ भरता है और हमें अंदर से ताजा करता है। उसी समय, जब हम प्रभु का नाम पुकारते हैं, पवित्र आत्मा आता है, क्योंकि आज प्रभु यीशु पवित्र आत्मा है। जब हम हर सुबह प्रभु का नाम पुकारते हैं, तो हमारे अंदर एक गहरा एहसास है कि प्रभु यीशु आया है। हमने सच में उसे  पाया है। अंत में हमारा संपूर्ण व्यक्ति बदल जाएगा। यही है जागृत होने का मतलब।

यह जागृति रोज़ खुद को धोने के समान है_ कोई इसे एक ही बार नहीं करता। एक दैनिक धोना होना चाहिए। प्रकृति के नियम के अनुसार, सूर्य चौबीस घंटों में एक बार उगता है। जब हम सूर्य के साथ चलते हैं, हमें भी चौबीस घंटों में एक बार उगना जरूरी है। इसके अलावा, हमें सूर्य के समान तेजोमय होना चाहिए जब वह अपनी पूर्ण सामर्थ से चमकता है। अगर हम आत्मिक रूप से ऐसे हैं, तो हर दिन हम एक नवीनीकृत जीवन जीएंगे। पौलुस के शब्दों में, हमारा आंतरिक मनुष्य दिन प्रति दिन नया होता जाएगा (2 कुर- 4:16)। आंतरिक मनुष्य हमारे अंदर नयी जन्मी आत्मा को सूचित करता है। यह आत्मा, हमारे सभी आंतरिक भागों के साथ दैनिक चयापचाय के द्वारा नवीनीकृत हो रही है, जो पुनरुत्थान जीवन की आपूर्ति के साथ आती है।

प्रकाश प्राप्त करना

और कलीसिया सभा के लिए

भविष्द्वाणी तैयार करना

हाल के वर्षो में हमने एक मार्ग पाया है कि प्रभात जागृति के लिए वचन का एक अंश उपयोग करें। प्रार्थना अध्ययन करने और प्रभात जागृति के लिए पवित्र वचन से कुछ अंश पढ़ने के अभ्यास ने कई संतों की बहुत मदद की है—जब से उन्होंने प्रभात जागृति के लिए पवित्र वचन का उपयोग करना शुरू किया है, उनकी आत्माएं उत्त्तेजित की गयी हैं, उनकी सोच प्रेरित हुई है और उनके पास अब बात करने के लिए एक विषय है, खाने, पचाने, संक्षिप्त व्याख्या बनाने और प्रार्थना अध्ययन करने के लिए कुछ सामग्री है।

बाइबल पढ़ने का सबसे उपयोगी तरीका संक्षिप्त व्याख्या करना है—भजन 119:105 कहता है, ‘‘तेरा वचन मेरे पांव के लिए दीपक और मेरे मार्ग के लिए उजियाला है’’ और उसी भजन की आयत 130 कहती है, ‘‘तेरे वचन के खुलने से प्रकाश होता है।’’ वचन में प्रवेश करके इसकी चमक की ज्योति प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका वचन की संक्षिप्त व्याख्या करना है—यह हमें बाइबल समझने में, ज्योति प्राप्त करने और भविष्यद्वाणी करने में मदद करता है।

पुराने नियम में, वचन पर ध्यान लगाने का अभ्यास कई बार उल्लखित है—लेकिन नए नियम में पुराने नियम के तरीके में ध्यान लगाने का कोई संदर्भ नहीं है—आज हमारे पास न केवल बाहरी रूप से बाइबल हमारे हाथों में है, लेकिन हमारे पास हमारे अंदर अंतर निवासी आत्मा भी है। जब हम वचन को प्रार्थना अध्ययन करते हैं, हम अपनी आत्मा का अभ्यास करते हैं और अंतरनिवासी आत्मा हमारे प्रार्थना अध्ययन से उत्त्तेजित हो जाता है—जब हम कहते हैं, ‘‘आदी में। हे प्रभु, आदी में वचन था। आमीन। वचन। हाल्लेलूयाह, वचन!’’ यह हमारी आत्मा को उत्त्तेजित करता है। फिर अंतरनिवासी आत्मा हमारे अंदर कूदता है और प्रेरणा आती है।

यह अच्छा है कि हम एक छोटी किताब हमेशा रखें जिसमें हम वो प्रेरणा लिख सकते हैं जिसे हम ग्रहण करते हैं। प्रेरणा प्राप्त करने के बाद हमें तुरंत कुछ लिखना होगा, यहां तक कि एक अनुस्मरक के रूप में केवल एक ही मुख्य शब्द भी, जब हमारे पास ज्यादा लिखने का समय नहीं है। उसके बाद, भविष्यद्वाणी के हमारे अभ्यास के लिए, यह अच्छा होगा कि हम अपने ग्रहण किए प्रेरणाओं से भविष्यद्वाणी को तीन मिनिट से ज्यादा न बनाएं। अगर हमारी भविष्यद्वाणी तीन मिनिट से ज्यादा है, तो हम इसे कम कर सकते हैं। अगर यह बहुत छोटी है, तो हम कुछ जोड़ सकते हैं। अभ्यास करने और सीखने के लिए हम दूसरे संतों के साथ भी कार्य कर सकते हैं।

भविष्यद्वाणी के लिए हम ने जो संदेश लिखा है उसे हमें प्रार्थना करने के द्वारा भी अभ्यास करने की जरूरत है। भविष्यद्वाणी के लिए एक संदेश लिखने के बाद, हमें अपने लेख को प्रार्थना अध्ययन करना होगा। इसे करने से, यह हमारे अस्तित्व में गठित हो जाएगा। फिर हमें सभा में जाना है और भविष्यद्वाणी करनी है। मुझे यकीन है कि ऐसी एक भविष्यद्वाणी बहुत अच्छी होगी।

अंत में, हम सभी को हमारे प्रभाव के लिए आत्मा के आंतरिक भराव और सामर्थ के रूप में ऊपर से आत्मा के बाहरी उंडेलने की जरूरत है (प्रे- 6:10; 7:5; 4:31)। इसके लिए हमें प्रार्थना करनी होगी। जब हम सभा में भी होते हैं, एक तरफ जैसे हम दूसरों को सुन रहे हैं, दूसरी तरफ हमें प्रार्थना करनी होगी ताकि हम आत्मा से खुद भर सकें और हमारे सामर्थ और अधिकार होने के लिए हम पर आत्मा का उंडेलना हो सके।

 

Longings—For Living in the Lord’s Presence – 389

1. Lord Jesus, I long in Thy presence to live,
From morning to evening my one world Thou art;
O let not my heart be contented or rest
When loving or seeking what with Thee doth part.
Each moment, each day, throughout suff’ring and pain,
When nought in the world can give comfort or cheer,
When sighing and weeping encompasses me,
Lord, still all my sighing and wipe every tear.

2. Each time when I dream of the goodness of life,
I pray Thee, dear Lord, that Thou in it may be;
O do not allow me to choose by myself,
Nor seek any pleasure that’s other than Thee.
Each night when alone in the stillness I lie,
I pray Thee, Lord Jesus, that Thou wilt be near;
Each morning ere dawn comes, while still in my sleep,
Then whispering call me and open my ear.

3. Each time, Lord, when reading in Thy holy Word,
I pray that Thy glory may shine on each line,
That clearly I’ll see what a Savior I have
And how great salvation that Thou hast made mine.
When helpless I come, Lord, to kneel at Thy throne,
I pray Thee to hear me and grant me Thy grace;
If thru my shortcomings Thou hear not my prayer,
Withdraw not Thy presence, O hide not Thy face.

4. Each time when of heavenly blessings I think,
O let my heart long to be raptured to Thee;
My only hope here is Thy coming again,
My only joy there, Lord, Thy presence will be.
Lord, teach me each day in Thy presence to live,
From morning to evening my one world Thou art;
O let not my heart be contented or rest
When loving or seeking what with Thee doth part.