चरवाही
श्रृंखला 5
सत्य को जानना
पाठ तेरह – बाइबल का पुनःप्राप्ति संस्करण
2 तीम- 3:16- सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और शिक्षा, ताड़ना, सुधार और धार्मिकता की शिक्षा के लिए उपयोगी है।
एक संक्षिप्त विवरण
सदियों के दौरान, बाइबल के अनुवाद में लगातार सुधार हुआ है। सामान्य तौर पर, प्रत्येक नए अनुवाद पिछले वाले से प्राप्त करता है और आने वालों के लिए रास्ता खोलता है। जबकि एक नया अनुवाद अपने पूर्ववर्तियों से सहायता प्राप्त करता है, इसे आगे जाना होगा। नये नियम का पुनःप्राप्ति संस्करण, प्रमुख आधिकारिक अंग्रेज़ी संस्करणों द्वारा निर्धारित पूर्ववर्ती के अनुसार और इन संस्करणों को संदर्भ के रूप में लेते हुए, न केवल दूसरों की प्रथाओं की परीक्षा से सीखे गए पाठों को शामिल करता है बल्कि पूर्वाग्रहों और गलत अनुमानों को त्यागने का भी प्रयास करता है। यह संस्करण, अन्य संस्करणों द्वारा अक्सर निर्देशित होता है, दिव्य वचन में प्रकाशन के लिए सबसे अच्छा कथन प्रदान करने का प्रयास करता है, कि इसे अंग्रेजी भाषा में सबसे बड़ी सटीकता के साथ व्यक्त किया जा सके।
दो हजार सालों के
दिव्य प्रकाशन की
उचित समझ पर आधारित
बाइबल का अनुवाद केवल मूल भाषा की पर्याप्त समझ पर नहीं बल्कि पवित्र वचन में दिव्य प्रकाशन की उचित समझ पर भी निर्भर करता है। सदियों के दौरान संतों द्वारा प्राप्त किये गये दिव्य प्रकाशन की समझ हमेशा से ही उनके द्वारा प्राप्त किये गये प्रकाश पर आधारित होती है और यह समझ लगातार प्रगति कर रही है। इस समझ की परिणति इस अनुवाद और उसकी टिप्पणी के आधार बनती है। इसलिए यह अनुवाद और उसके साथ टिप्पणी दिव्य प्रकाशन की समझ का क्रिस्टलीकरण कहा जा सकता है जो पिछले दो हजार वर्षो में संतों ने हर जगह प्राप्त किया है। यह हमारी आशा है कि पुनःप्राप्ति संस्करण उस विरासत को जारी रखेगा जो इसे प्राप्त हुआ है और भविष्य की पीढ़ियों के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा।
किसी भी नए नियम के अनुवाद के जैसे उपलब्ध हस्तलिपि के आधार पर, मूल यूनानी पाठ का निर्धारण, नए नियम के पुनःप्राप्ति संस्करण के पाठ के आधार बनता है। अधिकांश भाग के लिए पुनःप्राप्ति संस्करण नेस्ले-एलेण्ड यूनानी पाठ का पालन करता है जो कि नोव्यू टेस्टमेंटयूम ग्रीसे (26 वे संस्करण) में पाया जाता है। हांलाकि किसी भी आयत के मूल रूप को निर्धारित करने में, पुनःप्राप्ति संस्करण के अनुवादकों ने अध्याय और पुस्तक के बडे़ संदर्भ और नए नियम के समान हिस्से पर सावधानीपूर्वक विचार किया। ये जरूरी नहीं कि सबसे हाल ही में खोज की गई हस्तलिपियों या सबसे पुरानी तारीख की हस्तलिपियां सबसे सटीक या विश्वासनीय हों_ इसलिए इस संस्करण के पाठ का निर्धारण ऊपर वर्णित सिद्धांत पर काफी हद तक आधारित था। जो नेस्ले-एलण्ड पाठ से विचलित हुआ है कभी-कभी टिप्पणी में दिखया गया है। आयतों में तिरछे शब्द प्रदान किए गए शब्दों को संकेत करते हैं जो यूनानी पाठ में नहीं पाये गये है, पुनःप्राप्ति संस्करण मूल पाठ के अर्थ में व्यापक शोध का देहरूप है और अंग्रेजी में इस अर्थ को अभिव्यक्त करने का प्रयास करता है जो उस बिंदु के मुद्दे पर हो, समझने में आसान हो और पठनीय हो। उन जगहों पर जहां मूल यूनानी के सटीक अर्थ को व्यक्त करना मुश्किल है, व्याख्यात्मक टिप्पणी दी गई है।
पादटिप्पणियां सत्य के प्रकाशन,
आत्मिक प्रकाश और
जीवन की आपूर्ति पर जोर देती हैं
प्रत्येक पुस्तक की शुरूआत में दिए गए विषय और प्रत्येक पुस्तक की रूपरेखा ऐतिहासिक तथ्यों को अपने आधार के रूप में लेती है और प्रत्येक पुस्तक में आत्मिक अर्थ व्यक्त करती है। इतिहास, भूगोल और व्यक्तियों से ज्यादा पादटिप्पणियां सत्य का प्रकाशन, आत्मिक प्रकाश और जीवन की आपूर्ति पर जोर देता है। प्रति संदर्भ न केवल दूसरी आयतों से ले जाता है जो समान अभिव्यक्ति और तथ्य हैं, बल्कि दिव्य वचन में आत्मिक प्रकाशन से संबंधित अन्य बातों में भी ले जाता है।
GOD’S OWN WORD MUST NOT BE TAKEN
Study of the Word— Knowledge and Life – 816
1. God’s own Word must not be taken
Just as knowledge but as life,
Not alone God’s thought conveying,
But Himself to us as life;
Not alone God’s mind revealing,
But His Christ as life within,
Not alone the teaching giving,
But experience of Him.
2. It is only knowledge to us
If we in the letter read,
But when reading in the spirit
It is truly life indeed.
All the knowledge in the letter
Only brings us into death,
But the Word in spirit taken
Gives to us the quickening breath.
3. If we miss the Lord in Scripture,
It is just as knowledge vain;
But when Christ we touch within it,
Then His life we may obtain.
When we read, the Lord not touching,
‘Tis but mental stimulus;
But when Christ we touch by reading,
It becometh life in us.
4. All the knowledge of the Scriptures
Into life must be transformed,
All the mental understanding
In the spirit must be formed;
All the Scriptural understanding
Must become the life received,
All the knowledge of the letters
In the spirit be conceived.
5. Just to touch the Word for knowledge
Is to take the very way
By which Eve was lured by Satan
And by knowledge led astray;
But as life to take the Scripture
Is the tree of life to eat;
Thus the Word we must be taking
In the spirit as our meat.