चरवाही
श्रृंखला 2
उद्धार पाने के बाद
पाठ सात – जीवन का वचन
यूहन्ना-6:63 आत्मा ही है जो जीवन देता है, शरीर से कुछ लाभ नहीं। जो वचन मैं ने तुम से कहे हैं, वे आत्मा और जीवन हैं।
2 तीम- 3:16- सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने और सुधारने और धार्मिकता की शिक्षा के लिए उपयोगी है।
बाइबल को जानने की आवश्यकता
हमारे उद्धार के बाद, आत्मिक विकास के लिए हमें बाइबल को जानना चाहिए। दो हजार साल के लिए मसीहियों ने एक बात को स्वीकार किया है कि कोई भी बाइबल को जाने बिना प्रभु को अच्छी तरह से नहीं जान सकता।
परमेश्वर ने हमें जो आत्मिक विरासत दी है, उसमें एक तरफ अदृश्य पवित्र आत्मा है और दूसरी तरफ दृश्य पवित्र बाइबल है। एक ओर, आत्मा हमारे भीतर है_ दूसरी ओर, पवित्रशास्त्र हमारे बाहर है। एक उचित मसीही को इन दोनों पक्षों में संतुलित होना चाहिए।
यदि आप अंदर से पवित्र आत्मा से भरे हैं और बाहर से पवित्रशास्त्र को भी जानते हैं, तो, एक मसीही के रूप में, आप जीवित और स्थिर हैं, और आप सक्रिय और सही हैं। आप एक मसीही हैं जो जीवित और स्थिर हैं और सक्रिय और अचूक भी हैं।
समस्त पवित्रशास्त्र-
परमेश्वर का साँस है
2 तीम- 3:16 कहता है, सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने और सुधारने और धार्मिकता की शिक्षा के लिए उपयोगी है। ‘‘सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा (साँस) से रचा गया है और लाभदायक है’’ इसका यूनानी शब्द में ऐसे भी अनुवाद किया जा सकता है ‘‘हर पवित्रशास्त्र जो परमेश्वर-सांस है, लाभदायक भी है।’’
कलीसिया की गिरावट में मृत्यु, भ्रष्टाचार और भ्रम का सामना करने के लिए, अध्याय 1 पर आधारित अनन्त जीवन (आ- 1,10) अध्याय 2 में जोर दिया गया दिव्य सत्य (आ- 15,18,25) और अध्याय 3 में अत्यधिक माना गया पवित्रशास्त्र (आ- 14-17) सभी की जरूरत है। अनन्त जीवन न केवल मृत्यु को निगलता है, बल्कि जीवन की आपूर्ति भी देता है_ दिव्य सत्य सभी दिव्य धन की वास्तविकता के साथ भ्रष्टाचार की व्यर्थता को बदल देता है_ और पवित्रशास्त्र न केवल भ्रम को दूर करता है बल्कि दिव्य ज्योति और प्रकाशन भी देता है। इसलिए, इस पुस्तक में प्रेरित इन तीन चीजों पर बल देता है।
पवित्रशास्त्र, परमेश्वर का वचन, परमेश्वर का सांस है। परमेश्वर का बोलना परमेश्वर का सांस है। इसलिए उसका वचन आत्मा है (यूहन्ना 6:63) न्यूमा, या सांस है। इस प्रकार, पवित्रशास्त्र आत्मा के रूप में परमेश्वर की देहरूप है। आत्मा इसलिए पवित्रशास्त्र का सार और पदार्थ है, जैसे कि फास्फोरस माचिसों में आवश्यक पदार्थ है। हमें दिव्य आग को जलाने के लिए हमारी आत्मा के साथ पवित्रशास्त्र की आत्मा को ‘‘घर्षण करना’’ चाहिए।
परमेश्वर आत्मा के देहरूप के रूप में, पवित्रशास्त्र मसीह का भी देहरूप है। मसीह परमेश्वर का जीवित वचन है (प्रक- 19:13) और पवित्रशास्त्र परमेश्वर का लिखित शब्द है (मत्ती- 4ः4)।
लिखित वचन
जीवित वचन बनता है
प्रभु जीवित वचन है और बाइबल लिखित वचन है। क्या लिखित वचन और जीवित वचन दो प्रकार के वचन हैं? अगर हम लिखित वचन को जीवित वचन से कुछ अलग सोचते हैं, तो लिखित वचन हमारे लिए मृत ज्ञान होगा। लिखित वचन को जीवित वचन से अलग नहीं किया जा सकता है लेकिन यह जीवित वचन के साथ एक होना चाहिए।
हमें इस तरह से बाइबल के हर आयत से व्यावहार करना होगा। हम इसे अपनी आँखों से पढ़ते हैं, अपने मन के द्वारा स्वाभाविक रूप से समझते हैं, और लिखित वचन को जीवित वचन अर्थात् स्वयं मसीह में अनुवाद करने के लिए या स्थानांतरित करने के लिए, आत्मा का अभ्यास करने के द्वारा उस के साथ व्यावहार करते हैं। कभी ऐसी प्रार्थना न करें कि आप प्रभु से कुछ करने के लिए मदद माँग रहे हैं। यह गलत तरीका है। इसके बजाय, हमेशा उन्हें उनके वचन की पूर्ति के रूप मे लीजिए। मान लीजीए कि आप यूहन्ना 15:12 पढ़ते हैं, जो कहता है कि हमें एक दूसरे से प्यार करना है। प्रार्थना न करें, ‘‘प्रभु, मुझे अपने भाई से प्यार करना है। लेकिन प्रभु, आप जानते हैं कि मैं कमजोर हूं। प्रभु, मुझे प्यार करने में मदद करें।’’ इस प्रार्थना के बाद आप भाइयों से प्रेम करने का निर्णय लेंगे और आप को उजागर किया जाएगा और विफलता को देखेंगे। आपको कुछ भी नहीं, केवल विफलता की उम्मीद करनी होगी। आप थोड़े समय के लिए सफल हो सकते हैं, लेकिन अंत में आप असफल हो जायेंगे। यहां तक कि अगर आप सफल रहे, तो इसका मतलब कुछ नहीं होगा और न ही किसी चीज के लिए योग्य होगा।
हमें प्रभु को आनंद करने के तरीके से बाइबल के वचन के साथ व्यवहार करना चाहिए और अंदर लेना चाहिए। तब हम वचन को पढ़ने के माध्यम से प्रभु को वास्तव में खायेंगे और भोज करेंगे। तब लिखित शब्द जीवित शब्द बन जाऐगा, अर्थात, स्वयं मसीह। मसीह और बाइबल एक हो जाएंगे। हमें चखकर देखने की जरूरत है। हमें भाइयों और बहनों को इस तरह से प्रभु के वचन से संपर्क करने में मदद करनी होगी। प्रभु की दया से हमें बाइबल को जीवन की एक पुस्तक के रूप में, जीवन के वृक्ष की तरह रखने की जरूरत है, ज्ञान के वृक्ष के रूप में नहीं। ज्ञान घमंड़ी बनाता है (1 कुर- 8:1)। जितना अधिक कई मसीही बाइबल सीखते हैं, उतना ही अधिक वे घंमड़ी बन जाते हैं। वे सिर्फ दूसरों की निंदा और आलोचना करने के लिए ज्ञान प्राप्त करते हैं। मृत अक्षर में बहुत अधिक ज्ञान का परिणाम घमंड़ होता है। इस जीवित पुस्तक को मृत अक्षरों की एक पुस्तक न बनाएं। पौलुस ने कहा कि अक्षर तो मारता है (2 कुर- 3:6)। इसका मतलब है कि अक्षर में बाइबल मारता है। हमें बाइबल को अक्षर में किसी चीज की तरह नहीं लेना चाहिए। हमें वचन को जीवन में और आत्मा में किसी चीज की तरह लेना होगा। हम सभी चखकर देखें कि प्रभु अच्छा है।
बाइबल विश्वासियों के
जीवन की रोटी होना
पवित्रशास्त्र का वचन हमारे आत्मिक जीवन की रोटी भी है (मत्ती- 4:4) जैसे हमारे शारीरिक जीवन को पोषण की जरूरत है, वैसे ही हमारे आत्मिक जीवन को भी पोषण की आवश्यकता है। हमारे आत्मिक जीवन का पोषण केवल बाइबल के वचन द्वारा ही प्रदान किया जा सकता है। परमेश्वर के सामने जीवित और मजबूत होने के लिए हम केवल रोटी पर ही निर्भर नही रह सकते हैं, बल्कि प्रत्येक वचन पर, जो कि बाइबल का वचन है, जो परमेश्वर के मुंह से निकलता है। हमें परमेश्वर के वचन को भोजन के रूप में लेना चाहिए और इसे खाना चाहिए (यिर्म- 15:16) और यहां तक कि हमें बाइबल के वचन को अपने भोजन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण मानना चाहिए। (अययूब 23:12) अन्यथा, हमारा आत्मिक जीवन बढ़ नहीं सकता। हमें बाइबल के वचन को समझने में अपनी ज्ञानेद्रियों का अभ्यास करना चाहिए ताकि हम उन शब्दों को समझ सकें जो व्याख्या करने में कठिन हैं; अर्थात, उन लोगों की तरह जो कि परिपक्व हैं, हम ठोस भोजन खा सकते हैं। (इब्र- 5:13-14) अन्यथा, हमारा आत्मिक जीवन मजबूत नहीं हो सकता।
प्रभु का वचन
आत्मा और जीवन होना
परमेश्वर का वचन बहुत से लोगों के लिए केवल धार्मिक ज्ञान है_ यह उनके लिए जीवन नहीं है। लेकिन प्रभु कहता है कि उसका वचन आत्मा और जीवन है। परमेश्वर का वचन हमारी आत्मा और हमारे जीवन को छूता है; यह हमारे मन से संबंधित नहीं है। अगर मन समझता नहीं है तो यह ज्यादा मायने नहीं रखता। एक पुस्तक पढ़ने में या धर्मोपदेश सुनने में हम तुरंत बता सकते हैं कि हमने अंदर से आत्मा और जीवन को छुआ है या मन को छुआ है। अगर हमने केवल ज्ञान को सुना है, तो परिणाम मृत्यु है, और हम अंदर से असहज महसूस करते हैं। यदि हमने आत्मा और जीवन को सुना है, तो परिणाम हमारे अंदर शांति और आश्वासन है।
Study of the Word- Seeking for the Word
809
1 Speak, Lord, in the stillness,
While I wait on Thee;
Hushed my heart to listen,
In expectancy.
2 Speak, O blessed Master,
In this quiet hour;
Let me see Thy face, Lord,
Feel Thy touch of power
3 For the words Thou speakest,
They are life indeed;
Living bread from heaven,
Now my spirit feed!
4 All to Thee is yielded,
I am not my own;
Blissful, glad surrender,
I am Thine alone.
5 Speak, Thy servant heareth,
Be not silent, Lord;
Waits my soul upon Thee
For the quickening word.
6 Fill me with the knowledge
Of Thy glorious will;
All Thine own good pleasure
In Thy child fulfill.
7 Like a watered garden,
Full of fragrance rare,
Lingering in Thy presence,
Let my life appear.