चरवाही
श्रृंखला 2
उद्धार पाने के बाद
पाठ पाँच – प्रभु के नाम को पुकारना
2 तीम- 2:22-जवानी की अभिलाषाओं से भाग, और जो ” शुद्ध हृदय से प्रभु का नाम लेते हैं उनके साथ धार्मिकता, विश्वास, प्रेम, और मेल-मिलाप का पीछा कर।”
रो- 10:13-क्योंकि, ‘‘जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।
पुकारना ज़ोर से किसी व्यक्ति को
उसके नाम से पुकारना है
हमें प्रभु के नाम को पुकारने का अर्थ सीखने की जरूरत है? कुछ मसीही सोचते हैं कि प्रभु के नाम को पुकारना उससे प्रार्थना करने के समान है—-हां, पुकारना एक प्रकार की प्रार्थना है, क्योंकि यह हमारी प्रार्थना का एक हिस्सा है, लेकिन पुकारना केवल प्रार्थना नहीं है। पुकारने के लिए इब्रानी शब्द का अर्थ ‘‘बुलाना’’ ‘‘चिल्लाना’’ अर्थात चीखना है। पुकारने के लिए यूनानी शब्द का अर्थ है ‘‘एक व्यक्ति को आह्नान करना,’’ ‘‘एक व्यक्ति को नाम से पुकारना।’’ दूसरे शब्दों में, एक व्यक्ति को जोर से नाम लेकर बुलाना है। यद्यपि प्रार्थना शांत तरीके से हो सकती है, पुकारना जोर से होना चाहिए। ¹इसलिए प्रभु के नाम को पुकारना, जोर से ‘‘हे! प्रभु यीशु!’’ पुकारना है ।
प्रभु के नाम को
पुकारने का उद्देश्य
उद्धार पाने के लिए
हमें प्रभु के नाम को पुकारने की आवश्यक्ता क्या है? उद्धार पाने के लिए मनुष्य को प्रभु के नाम को पुकारने की जरूरत है (रो- 10:13)।
परेशानी, मुसीबत,
दुःख और दर्द से
बचने के लिए
प्रभु को पुकारने का एक और कारण यह है कि परेशानी से (भज- 18:6; 118:5) मुसीबत से (भज- 50:15; 86:7; 81:7) दुःख और दर्द से बचाया जाना है (116:3-4)।
प्रभु की दया में
भाग लेने के लिए
भजन 86:5 कहता है कि प्रभु अच्छा है और क्षमा करने वाला है और जितने उसे पुकारते हैं उन सभी के लिए अति करुणामय है। प्रभु की अधिक दया में भाग लेने का तरीका उसे पुकारना है। जितना अधिक हम उसे पुकारते हैं उतना अधिक हम उनकी कृपा का आनंद लेते हैं।
प्रभु के उद्धार का
हिस्सा लेना
भजन 116 हमें यह भी बताता है कि हम प्रभु को पुकार के प्रभु के उद्धार का हिस्सा ले सकते हैं। ‘‘मैं उद्धार का कटोरा उठाकर, यहोवा से प्रार्थना करूँगा (यहोवा के नाम को पुकारूँगा) (आ-13) इस एक भजन में प्रभु को पुकारने का चार बार उल्लेख किया गया है (आ- 2, 4, 13, 17)। यहां पर, पुकारने का उद्देश्य प्रभु के उद्धार का हिस्सा लेने के लिए हैं–उद्धार के सोतों से जल भरने का तरीका प्रभु के नाम को पुकारना है (यश- 12:2-4 )।
आत्मा को प्राप्त करने के लिए
प्रभु को पुकारने का एक और कारण आत्मा को प्राप्त करना है (प्रे- 2:17, 21)। पवित्र आत्मा से पूरी तरह से भरे जाने का श्रेष्ठ और सबसे आसान तरीका प्रभु यीशु के नाम को पुकारना है। आत्मा पहले ही उंडेल दिया गया है। हमें बस प्रभु को पुकार कर उसे प्राप्त करने की आवश्यकता है। हम इसे कभी भी कर सकते हैं। यदि आप प्रभु के नाम को कई बार पुकारते हैं, तो आप आत्मा के साथ भर जाऐंगे।
संतुष्टि के लिए
आत्मिक जल पीना
और आत्मिक भोजन खाना
यशायाह 55:1 कहता है, ‘‘ओह सब प्यासे लोगों, पानी के पास आओ_ और जिनके पास रुपया न हो, तुम भी आकर मोल लो और खाओ! दाखमधु और दूध बिन रुपए और बिना दाम ही आकर ले लो।’’ प्रभु को खाने और पीने का तरीका क्या है? यशायाह हमें उसी अध्याय के आयत 6 में बताता हैः ‘‘जब तक यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहो, जब तक वह निकट है तब तक उसे पुकारो।’’ इस प्रकार, संतुष्टि के लिए आत्मिक जल पीने और आत्मिक भोजन खाने का तरीका प्रभु की खोज करना और उनके नाम को पुकारना है।
प्रभु की समृद्धियों का
आनंद लेने के लिए
रोमियो 10:12 कहता हैं कि प्रभु अपने सब नाम लेने वालों के लिये उदार है। प्रभु धनी है और उनके नाम पुकारने वालों के लिए धनी है। प्रभु की समृद्धियों का आनंद लेने का तरीका उसे पुकारना है।
खुद को उत्तेजित करने के लिए
प्रभु का नाम पुकारने से हम खुद को उत्तेजित कर सकते हैं। यशायाह 64:7 कहता है, ‘‘कोई भी तुझ से प्रार्थना नहीं करता (आपका नाम पुकारने वाला कोई नहीं), न कोई तुझ से सहायता लेने के लिये चौकसी (उत्तेजित) करता है कि तुझ से लिपटा रहे।’’ जब हमें लगता है कि हम उदास या मंद हैं, तो हम प्रभु यीशु के नाम को पुकारने के द्वारा अपने आप को उकसा सकते हैं और उत्तेजित कर सकते हैं।
प्रभु के नाम को
पुकारने का अभ्यास
अब हमें यह विचार करने की आवश्यकता है कि हमें प्रभु को कैसे पुकारना चाहिए। सबसे पहले हमें उसे एक शुद्ध हृदय से पुकारना चाहिए (2 तीम- 2:22)। हमारे हृृदय जो स्रोत है, शुद्ध होना चाहिए और स्वयं प्रभु के अलावा किसी और चीज को खोजना नहीं चाहिए। दूसरा, हमें एक शुद्ध होंठ से पुकारना चाहिए (ज़क- 3:9) हमें अपने बोलने पर ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि लापरवाह बातों से ज्यादा कुछ भी हमारे होठों को दूषित नहीं करता है। यदि हमारे होंठ लापरवाह बातों के कारण अशुद्ध हैं, तो हमारे लिए प्रभु को पुकारना मुश्किल होगा। शुद्ध हृदय और शुद्ध होंठ के साथ हमें खुले मुंह की जरूरत है (भज- 81:10) प्रभु को पुकारने के लिए हमें अपना मुंह खोलने की जरूरत है। इसके अलावा, हमें प्रभु को सामूहिक तरीके से पुकारना होगा। 2 तीमुथियुस 2:22 कहता है, ‘‘जवानी की अभिलाषाओं से भाग, और जो शुद्ध हृदय से प्रभु का नाम लेते हैं उनके साथ धार्मिकता, विश्वास, प्रेम, और मेल-मिलाप का पीछा कर।’’ हमें प्रभु के नाम को पुकारने के उद्दश्य के लिए एक साथ आने की जरूरत है। भजन 88:9 कहता है, हे यहोवा मैं लगातार तुझे पुकारता हूँ इसलिए हमें उनके नाम को प्रतिदिन पुकारना चाहिए। प्रभु के नाम को पुकारने की यह बात एक सिद्धांत नहीं है। यह बहुत व्यावहारिक है। हमें इसे प्रतिदिन और प्रति घंटा अभ्यास करने की आवश्यकता है। हमें साँस कभी रोकनी नहीं चाहिए। हम सब जानते हैं कि साँस रोकने पर क्या होता है। इसके अतिरिक्त, भजन 116:2 कहता है, ‘‘इसलिए मैं जीवन भर उसको पुकारा करूँगा।’’ जब तक हम जीते हैं, तब तक हमें प्रभु के नाम को पुकारना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि प्रभु के लोग, विशेष रूप से कई नए विश्वासी, प्रभु को पुकारने के इस अभ्यास को शुरू करेंगे। यदि आप ऐसा करते हैं, तो आप देखेंगे कि यह प्रभु की समृद्धियों का आनंद लेने का सबसे अच्छा तरीका है।
HOW SWEET THE NAME OF JESUS SOUNDS
Praise of the Lord—His Name
66
1 How sweet the name of Jesus sounds
In a believer’s ear!
It soothes his sorrow, heals his wounds,
And drives away his fear.
(Repeat the last two lines of each stanza)
2 It makes the wounded spirit whole,
And calms the troubled breast;
Tis manna to the hungry soul,
And to the weary rest.
3 Dear Name! the Rock on which we build;
Our shield and hiding place;
Our never-failing treasury, filled
With boundless stores of grace.
4 Jesus, our Savior, Shepherd, Friend,
Our Prophet, Priest, and King;
Our Lord, our Life, our Way, our End,
Accept the praise we bring.
5 Weak is the effort of our heart,
And cold our warmest thought;
But when we see Thee as Thou art,
We’ll praise Thee as we ought.
6 Till then we would Thy love proclaim
With every fleeting breath;
And triumph in that blessed name
Which quells the pow’r of death.