चरवाही

श्रृंखला 2

उद्धार पाने के बाद

पाठ सोलह – परमेश्वर का जैविक उद्धार

रो- 5:10 क्योंकि जब हम शत्रु ही थे हमारा मेल परमेश्वर के साथ उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हुआ, तो उससे बढ़कर, अब मेल हो जाने पर हम उसके जीवन के द्वारा उद्धार क्यों न पाएंगे।

परमेश्वर के उद्धार का

जैविक पहलू

परमेश्वर के उद्धार का जैविक पहलू परमेश्वर के जीवन के माध्यम से है (रो- 1:17;  प्रे-11:18;  रो- 5:10; 17,18, 21)। जबकि न्यायिक पहलू परमेश्वर के छुटकारे को पूरा करने के लिए परमेश्वर की धार्मिकता के अनुसार है, जैविक पहलू परमेश्वर के जीवन के माध्यम से, परमेश्वर के उद्धार को पूरा करने के लिए है जिसमें नया जन्म, चरवाही, स्वभाव संबधी पवित्रीकरण, नवीनीकरण, रूपांतरण, निर्माण होना, अनुरूपीकरण, और महिमाकरण शामिल है। यह परमेश्वर के उद्धार का उद्देश्य है, वह सब पूरा करना जो  परमेश्वर अपने दिव्य जीवन के माध्यम से अपने गृहप्रबंध में विश्वासियों में प्राप्त करना चाहता है।

नया जन्म

नया जन्म छुड़ाये गये विश्वासियों को दिव्य जीवन के साथ उत्पन्न करना है ताकि वे परमेश्वर की प्रजाति की संतान होने के लिए उससे जन्म ले सकें (यूहन्ना 1:12-13; 3:6)।

चरवाही

चरवाही में खिलाना शामिल है, जैसे 1 पत- 2:2 में उल्लिखित पालन करने वाली मां बच्चों की वृद्धि के लिए बच्चों को खिलाती है।

पवित्रीकरण

स्वभाव संबंधी पवित्रीकरण उन विश्वासियों को पवित्र करने के लिए है जो परमेश्वर के पवित्र स्वभाव के साथ अपने स्वभाव में दिव्य जीवन में बढ़ रहे हैं (रो- 15:16; 6:19, 22; 1 थिस- 5:23)।

नवीनीकरण

नवीनीकरण पवित्रशास्त्र के प्रकाशन के साथ सच्चाई की आत्मा द्वारा ब्रह्माण्ड, मानवता, और परमेश्वर आदि से संबंधित हमारे, धर्म, तर्क और दर्शन में हमारे मन को बदलना है (तीतुस- 3:5; रो-12:2;  इफ- 4:23; रो-8:6; फिल- 2:5;  2 कुर- 4:16)।

रूपांतरण

रूपांतरण एक बाहरी परिवर्तन या सुधार नहीं है, बल्कि विश्वासियों में परमेश्वर के जीवन का चयापचयी कार्य है।

निर्माण

निर्माण करना दिव्य जीवन में उसकी वृद्धि के द्वारा परमेश्वर-मनुष्यों का दिव्य जीवन में दूसरे परमेश्वर-मनुष्यों के साथ जुड़ना और बुनना है।

अनुरूपीकरण

अनुरूपीकरण अधिकांश पुनरूत्पादन के लिए आदर्श के रूप में पहिले परमेश्वर-मनुष्य अर्थात परमेश्वर के पहिलौठे पुत्र के पूर्ण विकसित स्वरूप में अनुरूप होना है।

महिमाकरण

महिमाकरण विश्वासियों से मसीह के जीवन में परिपक्वता तक बढ़ने के द्वारा मसीह की महिमा का आगे फैलना है।

परमेश्वर के सम्पूर्ण उद्धार की

अंतिम परिपूर्ति

नया यरूशलेम होना

परमेश्वर का जैविक कार्य नये जन्म से महिमाकरण तक है, परमेश्वर के मनुष्य में प्रवेश करने से मनुष्य के व्यावहारिक रूप से परमेश्वर में लाया जाने तक है। नया जन्म परमेश्वर का मनुष्य में प्रवेश करना है, जबकि महिमाकरण मनुष्य का परमेश्वर में प्रवेश करना है। इस प्रकार, मनुष्य परमेश्वर के स्वरूप को अभिव्यक्त करने के लिए पूरी तरह से परमेश्वर के साथ जुड़ा हुआ और मिश्रित है। यह महिमाकरण है। परमेश्वर के संपूर्ण उद्धार की अंतिम परिपूर्ति नया यरूशलेम है-मनुष्य के साथ परमेश्वर के जुड़ने और मिश्रित होने का क्रिस्टलीकरण अर्थात् अपने नये जन्मे, रूपांतरित, अनुरूपी, और महिमाविंत त्रिभागी चुने हुए जन के साथ प्रक्रिया से गुजरा और परिपूर्ण त्रिएक परमेश्वर है।

O GLORIOUS CHRIST, SAVIOR MINE

Experience of Christ—As Life

501

1 O glorious Christ, Savior mine,
Thou art truly radiance divine;
God inf inite, in eternity,
Yet man in time, finite to be.

Oh! Christ, expression of God, the Great,
Inexhaustible, rich, and sweet!
God mingled with humanity
Lives in me my all to be.

2 The fullness of God dwells in Thee;
Thou dost manifest God’s glory.
In f lesh Thou hast redemption wrought;
As Spirit, oneness with me sought.

3 All things of the Father are Thine;
All Thou art in Spirit is mine.
The Spirit makes Thee real to me,
That Thou experienced might be.

4 The Spirit of life causes Thee
By Thy Word to transfer to me.
Thy Spirit touched, Thy word received,
Thy life in me is thus conceived.

5 In spirit while gazing on Thee,
As a glass reflecting Thy glory,
Like to Thyself transformed I’ll be,
That Thou might be expressed through me.

6 In no other way could we be
Sanctified and share Thy vict’ry;
Thus only spiritual we’ll be
And touch the life of glory.

7 Thy Spirit will me saturate,
Every part will God permeate,
Deliv’ring me from the old man,
With all saints building for His plan.